रीयल एस्टेट में मंदी
रीयल एस्टेट सेक्टर अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा है. बीते दिनों में इसमें विकास सुनिश्चित करने के लिए कुछ बेहतर उपाय किये गये हैं. प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत मध्यवित्त परिवारों को घर के कर्ज पर ब्याज में कमी की घोषणा हुई है. चंद दिनों के भीतर इस योजना के अंतर्गत सरकार को 1.66 करोड़ आवेदन […]
रीयल एस्टेट सेक्टर अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा है. बीते दिनों में इसमें विकास सुनिश्चित करने के लिए कुछ बेहतर उपाय किये गये हैं. प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत मध्यवित्त परिवारों को घर के कर्ज पर ब्याज में कमी की घोषणा हुई है. चंद दिनों के भीतर इस योजना के अंतर्गत सरकार को 1.66 करोड़ आवेदन मिले हैं. रिजर्व बैंक ने बैंकों को रीयल एस्टेट निवेश ट्रस्ट (रेइट) और बुनियादी ढांचा निवेश ट्रस्ट (इनविट) में निवेश की अनुमति दी है. वैश्विक पूंजी के निवेश के लिहाज से भी यह क्षेत्र आकर्षक साबित हुआ है.
ग्राहकों को जोखिम से सुरक्षा प्रदान करने और लेन-देन को पारदर्शी बनाने के लिए नियामक प्राधिकरण भी अस्तित्व में आ गया है. इससे कंपनियों की मनमानी और लापरवाही पर रोक लगने की उम्मीद है. लेकिन, मुश्किल यह है कि इतने सारे उपायों और बेहतर स्थितियों के बावजूद रीयल एस्टेट का क्षेत्र अपेक्षित गति से नहीं बढ़ रहा है. खबरों के मुताबिक इस सेक्टर के कारोबार के तीन बड़े केंद्र- दिल्ली, मुंबई और बंगलुरु में मकानों की मात्र पांच फीसदी इकाइयां ही बिक्री के लिए पूर्ण रूप से तैयार हो पायी हैं.
एक तो डेवलपर नयी आवास परियोजनाओं की घोषणा से कतरा रहे हैं, दूसरे निर्माणाधीन परियोजनाओं पर काम जिस गति से हो रहा है, वह बेहद निराशाजनक है. बिक्री में मंदी के कारण डेवलपर को पहले की तुलना में अपने कर्जे पर ज्यादा सूद चुकाना पड़ रहा है और हासिल होनेवाले सालाना राजस्व में भी कमी आयी है. जाहिर है, यह स्थिति एक दिन में नहीं पैदा हुई. संकेत 2016 के अक्तूबर से मिलने लगे थे. नोटबंदी के दौरान चौथी तिमाही में रीयल एस्टेट में खरीदारी में 40 फीसदी की कमी आयी. तीसरी तिमाही की तुलना में नयी आवास परियोजनाओं की घोषणा में भी 45 फीसदी की गिरावट आयी.
नोटबंदी के दौरान आये नाइट फ्रैंक रिपोर्ट के मुताबिक, रीयल एस्टेट क्षेत्र को नकदी की किल्लत के कारण 22 हजार करोड़ रुपये का घाटा लगा. मांग और पूर्ति का चक्र बाधित होने से आपसी विश्वास कायम करने में देर लगती है. चूंकि सरकार ने विश्वास बहाली के नये सांस्थानिक उपाय किये हैं, सो उम्मीद की जानी चाहिए कि रीयल एस्टेट कारोबार मंदी से जल्दी ही उबरेगा.
लेकिन सरकार और बैंकों के साथ नये बने नियामक प्राधिकरण को भी पूरे हिसाब-किताब पर मुस्तैद नजर रखनी चाहिए तथा ग्राहकों और डेवलपर के जरूरी हितों का ख्याल रखना चाहिए. यदि रीयल एस्टेट में तेजी आती है, तो इससे न सिर्फ ग्राहकों के सिर पर छत की व्यवस्था हो सकेगी, बल्कि अर्थव्यवस्था के पटरी पर बने रहने का भरोसा भी बरकार रहेगा.