फरिश्ता बनने से बेहतर है इनसान बनना
बाबा साहब भीमराव आंबेडकर ने जीवन के अंतिम दिनों में बौद्ध धर्म को अपना लिया था. बौद्ध धर्म अपनाने का मतलब है, मानव मात्र के प्रति करुणामय, आदरभाव एवं मैत्रीपूर्ण सरोकार. क्षेत्र, भाषा, जाति, धर्म, वर्ग, समुदाय, नस्ल और राष्ट्रीयता से परे पूर्ण रूप से सेक्यूलर होना. वहीं, आंबेडकरवादी होने का मतलब है, बड़ा-छोटा, ऊंच-नीच, […]
बाबा साहब भीमराव आंबेडकर ने जीवन के अंतिम दिनों में बौद्ध धर्म को अपना लिया था. बौद्ध धर्म अपनाने का मतलब है, मानव मात्र के प्रति करुणामय, आदरभाव एवं मैत्रीपूर्ण सरोकार. क्षेत्र, भाषा, जाति, धर्म, वर्ग, समुदाय, नस्ल और राष्ट्रीयता से परे पूर्ण रूप से सेक्यूलर होना.
वहीं, आंबेडकरवादी होने का मतलब है, बड़ा-छोटा, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब, समर्थ-असमर्थ, सुविधा-असुविधा आदि विभाजक रेखाओं को समझना और उसे दूर करना और इन सबको समाजवाद या समतावाद की तरफ मोड़ देना यानी सच्चे अर्थ में बौद्ध हो जाना. जो भी बुद्ध के विचारों को नहीं मानता, वह आंबेडकरवादी नहीं हो सकता. वैसे ही जो आंबेडकरवाद को नहीं मानता, वह बुद्ध का अनुयायी नहीं हो सकता है. ‘फरिश्ता बनने से बेहतर है इनसान बनना, मगर इसमें है, कुछ मुश्किल ज्यादा’.
बृजलाल राम, कोकर, रांची