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21वीं सदी डाॅ बीआर आंबेडकर की सदी है

रामदेव विश्वबंधु सामाजिक कार्यकर्ता डॉ बीआर आंबेडकर एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री राजनीतिज्ञ और विधिवेत्ता थे. वे समाज के वंचित, शोषित जमात को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और कानूनी अधिकार दिलाने के लिए आजीवन संघर्ष करते रहे. उन्हांने इंग्लैंड और अमेरिका से उच्च शिक्षा प्राप्त की. अछूत समाज में पैदा होने के चलते उन्हें काफी अपमान सहना […]

रामदेव विश्वबंधु
सामाजिक कार्यकर्ता
डॉ बीआर आंबेडकर एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री राजनीतिज्ञ और विधिवेत्ता थे. वे समाज के वंचित, शोषित जमात को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और कानूनी अधिकार दिलाने के लिए आजीवन संघर्ष करते रहे. उन्हांने इंग्लैंड और अमेरिका से उच्च शिक्षा प्राप्त की. अछूत समाज में पैदा होने के चलते उन्हें काफी अपमान सहना पड़ा. यह अपमान उन्हें संघर्ष के लिए प्रेरित करता रहा. उनका अधिकतर शोध पत्र ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ था. उन्होंने ‘दि प्रॉब्लम ऑफ रुपी: इट्स ऑरिजिन एंड सॉल्यूशन’ (1923) लिख कर साबित किया कि किस तरह भारतीय रुपये का बहाव ब्रिटिश खजाने की ओर जाता है.
साल 1930 में प्रथम गोलमेज सम्मेलन में आंबेडकर दलित प्रतिनिधि के रूप में शामिल हुए.गांधी इस सम्मेलन में नहीं गये. आंबेडकर ने भारत के दलितों का सवाल उठाया और कहा- ‘अंगरेजों के 150 साल के भारत में दलितों को मुक्ति नहीं मिली. यहां कुत्ते-बिल्ली आजाद हैं, लेकिन अछूत आजाद नहीं हैं. तुमने (अंगरेज) हिंदुओं तथा नौकरशाहों से हाथ मिला कर दोहरा खेल खेला है. भारतीयों में हजार भेद रहने दो और अब हम सबों पर शासन करने की बेशर्मी मत करो. अब तुम्हें भारत छोड़ देना चाहिए.’ अंगरेजों ने आंबेडकर की दलील मान ली, और पृथक निर्वाचन प्रणाली को मान्यता दी. हालांकि, 23 साल बाद आंबेडकर के विचार बदले. 27 अगस्त, 1955 को उन्होंने कहा कि पृथक निर्वाचन तथा सीटों के आरक्षण की जरूरत नहीं है.
साल 1942-46 तक वे वायसराय के एक्जिक्यूटिव काउंसिल के श्रम सदस्य के रूप में रहे, उस वक्त उन्होंने मजदूरों के हित के लिए काफी काम किया. महिलाओं के लिए 10 घंटे के बजाय 8 घंटे काम, मातृत्व अवकाश, मजदूरों के लिए कल्याण कोष का गठन आदि काम किये. साल 1946-49 तक स्वतंत्रता, समानता तथा भाईचारे पर आधारित संविधान का निर्माण किया. डॉ आंबेडकर भारत के प्रथम कानून मंत्री भी थे.
आंबेडकर महिलाओं को शिक्षा, सत्ता, संपत्ति में अधिकार दिलाना चाहते थे. तलाक का अधिकार, विधवा पुनर्विवाह का अधिकार महिलाओं को मिले. हिंदुओं का सवर्ण नेतृत्व हिंदू कोड बिल के खिलाफ था. हिंदू कोड बिल में हिंदू सिख तथा बौध वर्ग की महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक अधिकार दिये गये थे. जनसंघी नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने संसद में कहा कि यदि हिंदू कोड बिल पास हो जाता है, तो हिंदू धर्म का ढांचा ध्वस्त हो जायगा.
आंबेडकर ने इसके जवाब में कहा कि ‘हिंदू धर्म जिया है और पददलित, निष्काषित और गुलामों की तरह जिया है. रही बात विधवा विवाह और तलाक की, तो यह देश के 90 प्रतिशत जनसंख्या में रिवाज के रूप में मौजूद है.’ हिंदू कोड बिल पास नहीं होने पर उन्होंने कानून मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.
छह नवंबर, 1951 को पटना गांधी मैदान में पिछड़ा वर्ग के सम्मेलन में आंबेडकर ने कहा, ‘दलित पिछड़े एवं अल्पसंख्यकों को मिल कर एक राजनीतिक वृक्ष बनाना होगा, जिसमें उन सवर्णों को भी रखना है, जिन्होंने हमेशा से अपने छांव से दूर रखा है. लोग मेरी बात सुनेंगे जरूर, लेकिन इस सदी के अंत तक.’ उनकी भविष्यवाणी सच निकली. वर्ष 1990 में बीपी सिंह की सरकार में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया. 14 अप्रैल को राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया गया. वर्ष 2000 में देश के कई दलित संगठनों ने 21वीं सदी को आंबेडकर की सदी घोषित की.
वर्ष 2004, अमेरिका स्थित कोलंबिया विवि का 250 वर्ष पूरा होने पर एक स्मारिका का प्रकाशन हुआ था. स्मारिका में वैसे लोगों का जिक्र था, जिन्होंने कोलंबिया विवि से शिक्षा प्राप्त कर अपने देश में बड़ा काम किया हो. इस स्मारिका में एक अध्याय आंबेडकर पर था, उनके बारे में लिखा था- आधुनिक भारत के निर्माता, मानवाधिकार का चैंपियन. लेकिन, वर्णवादी मीडिया ने भारत में अब तक उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता नहीं कहा.
आंबेडकर अर्थशास्त्र के ज्ञाता थे, एक बड़े योजनाकार थे, उनकी सोच के आधार पर ही फाइनेंशियल कमीशन ऑफ इंडिया तथा रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का निर्माण हुआ. वे भूमि सुधार के समर्थक थे. भूमि का राष्ट्रीयकरण करना चाहते थे. छोटे जोत के किसानों के समर्थक थे. प्रोफेसर अमर्त्य सेन ने भी लिखा है- ‘अांबेडकर इज माय फादर इन इकोनॉमिक्स.’ इक्कीसवीं सदी में लोकप्रियता के पहले पायदान पर डॉ आंबेडकर ही हैं.

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