दलगत प्रतिबद्धता के दिन लद गये!

लोकसभा चुनाव का बिगुल बजते ही झारखंड में राजनीतिक उथल-पुथल शुरू हो गयी है. स्वहित के लिए विभिन्न दलों के पुराने से पुराने नेता दल बदल रहे हैं. इस सबके बीच झारखंड सरकार भी फंसती नजर आ रही है. खुद सत्तारूढ़ झामुमो में अंदरूनी कलह मचा है. हेमलाल जैसे कद्दावर नेता पार्टी छोड़ चुके हैं. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 11, 2014 5:11 AM

लोकसभा चुनाव का बिगुल बजते ही झारखंड में राजनीतिक उथल-पुथल शुरू हो गयी है. स्वहित के लिए विभिन्न दलों के पुराने से पुराने नेता दल बदल रहे हैं. इस सबके बीच झारखंड सरकार भी फंसती नजर आ रही है. खुद सत्तारूढ़ झामुमो में अंदरूनी कलह मचा है. हेमलाल जैसे कद्दावर नेता पार्टी छोड़ चुके हैं. आंकड़ों का जोड़-घटाव होने लगा है. चाहे राष्ट्रीय दल हो या क्षेत्रीय, सभी जगह ऐसे लोगों की बहुतायत है, जो खुलेआम अपनी स्वार्थपरता का प्रदर्शन कर रहे हैं.

अब सवाल है कि क्या आज पार्टी के सिद्धांत कोई मायने नहीं रखते? जिस सिद्धांत के रास्ते लोग दल में शामिल होते हैं, चुनाव लड़ते हैं, फिर विधायक-सांसद व मंत्री बनते हैं, समय आने पर ये लोग उसी सिद्धांत का दामन छोड़ देते हैं. महज उम्मीदवारी के लिए दल से पुराने रिश्ते तोड़ लेते हैं. यह भी नहीं देखते कि इसका परिणाम क्या होगा. इसका साफ मतलब है कि ऐसे नेताओं में पार्टी के प्रति प्रतिबद्धता नहीं है. यह भी सच है कि राजनीति में कोई संत बनने नहीं आता. लेकिन, पद और सत्ता पाने के लिए कुछ तो सिद्धांत होना चाहिए. इन दिनों जो हो रहा है, उसे राजनीतिक उथलापन तो कहा ही जा सकता है. सैद्धांतिक राजनीतिक मूल्यों का हृास हुआ है. यही कारण है संगठन की शक्ति में कमी आयी है. राजनीतिक में आज भी सिद्धांत व दर्शन का अपना स्थान है.

इसी से प्रभावित होकर बहुसंख्य लोग दलों में आते हैं और संगठन मजबूत होता है. लेकिन, अभी जो हो रहा है, वह राजनीति के लिए कतई उचित नहीं. झारखंड के परिदृश्य में देखें, तो इस उथल-पुथल में तृणमूल कांग्रेस की लॉटरी लग गयी है. कई निर्दलीय व अपनों दलों से बागी नेता तृणमूल में जा रहे हैं. इसे झारखंड में एक नये राजनीतिक दल का उदय माना जा रहा है. यह देखने वाली बात होगी कि असंतुष्ट होकर किसी भी दल में आने-जानेवाले नेताओं से इस राज्य का कितना भला होगा. 2014 का लोकसभा चुनाव कई दलों के नेताओं की नीयत व नियति को उजागर करनेवाला होगा, इसमें कतई संदेह नहीं है. अभी भी वक्त है कि राजनीति में एक अदद उम्मीदवारी के लिए मर्यादा को दावं पर लगानेवाले लोग चेतें और इसके दुष्परिणाम से डरें. नहीं तो जनता सब कुछ जानती है.

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