दागियों का भविष्य मतदाताओं के हाथ

निचली अदालतों द्वारा दोषी करार दिये जाने के बाद जनप्रतिनिधियों की सदस्यता तुरंत रद्द करने के पिछले साल के अपने फैसले की कड़ी में अब सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों को सांसदों एवं विधायकों पर चल रहे आपराधिक मुकदमों का निपटारा आरोप-पत्र दाखिल होने के साल भर के भीतर करने का निर्देश दिया है. एक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 11, 2014 5:16 AM

निचली अदालतों द्वारा दोषी करार दिये जाने के बाद जनप्रतिनिधियों की सदस्यता तुरंत रद्द करने के पिछले साल के अपने फैसले की कड़ी में अब सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों को सांसदों एवं विधायकों पर चल रहे आपराधिक मुकदमों का निपटारा आरोप-पत्र दाखिल होने के साल भर के भीतर करने का निर्देश दिया है.

एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया गया यह निर्देश विधि आयोग की रिपोर्ट पर आधारित है, जिसमें कहा गया है कि सदस्यता रद्द करने का सुप्रीम कोर्ट का निर्णय मुकदमों के लंबे समय तक लंबित रहने के कारण प्रभावी नहीं है. आयोग ने यह भी कहा है कि आरोप-पत्र दायर होने पर ही सदस्यता खत्म करने का विचार विधिसम्मत नहीं है. दरअसल, राजनीति का बड़े पैमाने पर अपराधीकरण भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है. देश में शायद ही कोई पार्टी है, जिसके प्रतिनिधियों पर आपराधिक मामले नहीं चल रहे हैं. सांसदों और विधायकों द्वारा चुनाव आयोग के समक्ष जमा शपथ-पत्रों के पिछले साल के एक सर्वेक्षण के अनुसार 30 प्रतिशत से अधिक के विरुद्ध आपराधिक मुकदमे लंबित थे, जिनमें से आधे से अधिक गंभीर प्रकृति के अपराधों से संबद्ध थे.

झारखंड विधानसभा में ऐसे विधायकों की संख्या देश में सबसे अधिक है, जहां करीब 74 प्रतिशत सदस्यों के विरुद्ध आपराधिक मामले लंबित हैं. बिहार विधानसभा में यह आंकड़ा 58, जबकि यूपी में 47 प्रतिशत है. मणिपुर ऐसा अकेला राज्य है, जहां किसी भी विधायक के खिलाफ आपराधिक मामला लंबित नहीं है. उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट के ही 2002 के एक निर्णय के बाद चुनाव में नामांकन के वक्त उम्मीदवार को उस पर दर्ज मुकदमों का ब्योरा देना जरूरी बना दिया गया है.

इससे पहले हमें जनप्रतिनिधियों की आपराधिक पृष्ठभूमि की सही जानकारी नहीं मिल पाती थी. अफसोस की बात है कि जनप्रतिनिधित्व कानून और चुनाव प्रक्रिया में सुधार को लेकर राजनीतिक दलों का रवैया नकारात्मक रहा है. इस कड़ी में जो कदम विधायिका और कार्यपालिका को उठाने थे, वह काम न्यायालय को करना पड़ रहा है. आसन्न चुनाव एक अवसर है, जब मतदाता अपने विवेक से आपराधिक छवि के उम्मीदवारों के राजनीतिक भविष्य का फैसला कर सकते हैं.

Next Article

Exit mobile version