देश बदल रहा है आगे बढ़ रहा है
बकौल वित्त मंत्रालय सकल घरेलू उत्पाद एवं अर्थ व्यवस्था सात फीसदी से भी ऊपर जा रहा है. यानी सरकार के ओर से जारी आंकड़े देश की अर्थव्यवस्था की रंगीन तसवीर पेश कर रहे हैं. आरबीआई का जो आंकड़ा सामने आ रहा है वह बिलकुल उलट रूप दिखा रहा है. पिछले छह दशकों में पहली बार, […]
बकौल वित्त मंत्रालय सकल घरेलू उत्पाद एवं अर्थ व्यवस्था सात फीसदी से भी ऊपर जा रहा है. यानी सरकार के ओर से जारी आंकड़े देश की अर्थव्यवस्था की रंगीन तसवीर पेश कर रहे हैं.
आरबीआई का जो आंकड़ा सामने आ रहा है वह बिलकुल उलट रूप दिखा रहा है. पिछले छह दशकों में पहली बार, देश का क्रेडिट वृद्धि दर अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है. बैंक पहले से ही एनपीए को लेकर परेशान है. ऊपर से नए ऋण की मांग एक दम नहीं के बराबर है. फिर देश में रोजगार कहां से बढ़ेगा? वैसे भी आधुनिकीकरण एवं मांग में कमी के कारण, कामगारों की छुट्टी हो रही है. अर्थव्यवस्था के नकारात्मक तथ्यों का सामना कैसे किया जाये, इस पर भी मंथन करना होगा.
जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी