15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

चमेली के किस्से

क्षमा शर्मा वरिष्ठ पत्रकार आजकल गाय की चर्चा हर तरफ है, जबकि देश में सबसे दुधारू पशु भैंस को कोई नहीं पूछ रहा. शहरों और गांव में रहनेवाले अधिकतर लोगों की दूध की जरूरत भैंस से ही पूरी होती है. कुछ दिन पहले एक साइट पर कार्टून देखा था, जिसमें भैंस ने कहा था- दूध […]

क्षमा शर्मा

वरिष्ठ पत्रकार

आजकल गाय की चर्चा हर तरफ है, जबकि देश में सबसे दुधारू पशु भैंस को कोई नहीं पूछ रहा. शहरों और गांव में रहनेवाले अधिकतर लोगों की दूध की जरूरत भैंस से ही पूरी होती है. कुछ दिन पहले एक साइट पर कार्टून देखा था, जिसमें भैंस ने कहा था- दूध तो हमारा भी पीते हो, रिश्ता सिर्फ गाय से रखते हो. कैसे इनसान हो तुम लोग. सचमुच गाय को बचाने की बातें चारों ओर हो रही हैं और बाल्टी भर-भर कर दूध देनेवाली भैंसें टुकुर-टुकुर ताक रही हैं.

भैंस के बारे में सोचती हूं, तो बचपन याद आता है. पिता जी की पोस्टिंग उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में थी. रेलवे स्टेशन पर ही घर था. घर के पास कुआं और काफी खाली जगह थी.

वहां पीपल, गूलर, बकनिया और बरगद के छतनार पेड़ थे. गाय, भैंस, बकरियां इन्हीं पेड़ों के नीचे बंधी रहती थीं. वहीं उनका दाना-पानी होता था. इन सबको नारियल की रस्सी से बांधा जाता था. घर के आगे सड़क थी और पीछे गली. इन पशुओं के साथ जो भैंस थी, उसका नाम चमेली था. इसे पुकारो तो जोर की बां-बां की आवाज निकालती थी. और सिर हिला कर पास बुलाती थी.

एक बार मां को किसी काम से बाजार जाना था. मां घर से बाहर निकली और जाने लगी, तो चमेली मां को जोर से आवाज देने लगी. जैसे पूछना चाहती हो कि कहां जा रही हो. लेकिन, मां ने उसको देखा ही नहीं और वो आगे बढ़ गयी.

पीछे की गली और आगे की सड़क एक चौराहे पर जाकर मिलती थीं. वहीं से बाजार शुरू हो जाता था. मां दुकानों पर जाकर खरीदारी करने लगी. लौटने लगी तो याद आया कि छोटी बेटी यानी कि मेरे लिए कुछ जलेबी खरीद ले. वह हलवाई की दुकान से जलेबी खरीदने लगी, तभी उसे हलवाई कि आवाज सुनाई दी- अरे देखो तो उस भैंस ने लड्डू के थाल में मुंह मार दिया. सारे लड्डू बेकार हो गये. मां ने पीछे मुड़ कर देखा, तो काटो तो खून नहीं. सामने चमेली खड़ी थी. उसके गले में लंबी रस्सी लटकी थी. वह रस्सी तोड़ कर पीछे वाली गली से चली आयी थी और मां के पीछे आकर खड़ी हो गयी थी. अब मां क्या करे.

उसके पास इतने पैसे भी नहीं थे कि थाल भर लड्डुओं की कीमत चुका सके.वह जल्दी से जलेबी के पैसे चुका कर घर की तरफ चल दी. कहीं हलवाई को पता न चल जाये कि यह भैंस उसकी है. उधर चमेली भी उसके पीछे हो ली.

मां जब तक जीवित रही घर के सारे बच्चों को चमेली के किस्से सुना कर लोटपोट करती रही. इस तरह एक भैंस बिना देखे भी घर के बच्चों की स्मृतियों में रच-बस गयी. गाय के इस मौके पर मेरी तरह ही औरों को भी अपनी भैंसें याद आ रही होंगी.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें