तेज विकास की पहल
आगामी डेढ़ दशकों में तेज आर्थिक सुधारों के जरिये वार्षिक विकास दर को औसतन आठ फीसदी तक ले जाने के उद्देश्य से नीति आयोग ने एक दृष्टि पत्र तैयार किया है. संस्था ने उम्मीद जतायी है कि इस दर के साथ देश का सकल घरेलू उत्पादन मौजूदा 137 लाख करोड़ रुपये से बढ़ कर 469 […]
आगामी डेढ़ दशकों में तेज आर्थिक सुधारों के जरिये वार्षिक विकास दर को औसतन आठ फीसदी तक ले जाने के उद्देश्य से नीति आयोग ने एक दृष्टि पत्र तैयार किया है. संस्था ने उम्मीद जतायी है कि इस दर के साथ देश का सकल घरेलू उत्पादन मौजूदा 137 लाख करोड़ रुपये से बढ़ कर 469 लाख करोड़ रुपये के स्तर तक पहुंच जायेगा. इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुनियादी ढांचे के निर्माण और पूंजीगत व्यय पर जोर की जरूरत को रेखांकित किया है.
इस बैठक की तीसरी अहम बात रही किसानों की आमदनी दोगुनी करने पर विचार और हर पांच साल पर गरीबी रेखा के नीचे के लोगों की संख्या के बारे में आकलन करने पर सहमति. यह महत्वपूर्ण पहलें हैं, पर पूर्ववर्ती सरकारों की तरह सामाजिक कल्याण और मानव संसाधन के विकास पर कम ध्यान चिंताजनक भी है.
नीतियों और कार्यक्रमों को तय करते हुए अक्सर मान लिया जाता है कि अर्थव्यवस्था में तेज गति से पूंजी निवेश हुआ, तो सबकी आमदनी बढ़ेगी और बढ़ी हुई आमदनी सेहत, शिक्षा, आवास, रोजगार आदि की बेहतरी के रूप में नजर आयेगी. अफसोस की बात है कि देश की मौजूदा तस्वीर इस समझ को सही नहीं ठहराती है. सरकार ने संसद में स्वयं ही कहा है कि रोजगार बढ़ने की जगह घटा है.
बेरोजगारी दर 2013-14 में 3.4 फीसदी थी, जो 2014-15 में बढ़ कर 3.7 फीसदी हो गयी है. ग्रामीण इलाकों में अब भी 1000 शिशुओं में 56 पांच साल की उम्र पूरी करने से पहले काल-कवलित हो जाते हैं और 62 फीसदी माताओं को प्रसव के दो दिन बाद तक किसी प्रशिक्षित दाई, नर्स या डाॅक्टर की देखभाल हासिल नहीं हो पाती है.
खुद प्रधानमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र बनारस में 20 फीसद से ज्यादा श्रमशक्ति कुपोषण की शिकार है. किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात बेशक सुनने में अच्छी लगती है, लेकिन 90 फीसद किसान-परिवारों की आमदनी फिलहाल 6000 रुपये मासिक से कम है. जाहिर है, दोगुनी होने पर भी किसानों की दशा में खास सुधार नहीं आनेवाला है. शिक्षा के क्षेत्र में भी उत्साहजनक स्थिति नहीं है.
यह भी उल्लेखनीय है कि अर्थव्यवस्था के विकास को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय राजनीतिक और आर्थिक कारक भी प्रभावित करते हैं. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने विकसित देशों में संरक्षणवाद की बढ़ती प्रवृत्ति को वैश्विक विकास के लिए नुकसानदेह बताया है. ऐसे में विदेश नीति और बहुदेशीय व्यापारिक अनुबंधों पर भी ध्यान देने की जरूरत है. उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार के साथ नीति आयोग देश में मानव संसाधन के ठोस विकास और अंतरराष्ट्रीय व्यापार की मजबूती के लिए भी सकारात्मक कदमों पर विचार करेगा.