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अंधकार से भरा डरावना समय

आकार पटेल कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया भारत के अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी, जाे कि सरकार के मुख्य विधि सलाहकार हैं, ने पूछा है कि कश्मीर में सेना की जीप पर प्रदर्शनकारियों द्वारा पत्थर फेंकने के विरोध में सैनिकों द्वारा ‘मानव ढाल’ के तौर पर जीप के सामने एक व्यक्ति को बांधने को लेकर इतना […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 25, 2017 1:42 AM
आकार पटेल
कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
भारत के अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी, जाे कि सरकार के मुख्य विधि सलाहकार हैं, ने पूछा है कि कश्मीर में सेना की जीप पर प्रदर्शनकारियों द्वारा पत्थर फेंकने के विरोध में सैनिकों द्वारा ‘मानव ढाल’ के तौर पर जीप के सामने एक व्यक्ति को बांधने को लेकर इतना हंगामा क्यों मचा है? रोहतगी ने कहा कि, ‘सेना की जीप पर पत्थरबाज को बांधने के संबंध में आयी हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, इससे पत्थरबाजी पर लगाम लगाने और मतदान अधिकारियों को बचाने में सहायता मिली है.’ रोहतगी ने यह भी कहा कि, ‘प्रतिदिन लोग मर रहे हैं. उत्तेजनापूर्ण माहौल है. वहां सेना आतंकवादियों का सामना कर रही है, न कि प्रदर्शनकारियों का. इसलिए उन्हें अपना काम करने देना चाहिए. साथ ही सभी को सेना पर गर्व करना चाहिए, क्योंकि वे महान कार्य कर रहे हैं. वातानुकूलित कमरे में बैठ कर आप सेना की आलोचना नहीं कर सकते. कृपया आप खुद को सेना की जगह रख कर देखिये.’
मैं कानूनी नजरिये से रोहतगी की बातों की जांच करना चाहता हूं. बतौर नागरिक हम अपनी सरकार के साथ एक समझौता करते हैं. हम हिंसा के ऊपर उसके एकाधिकार को स्वीकारते हैं. यह शब्द जर्मनी के समाजशास्त्री मैक्स वेबर का दिया हुआ है, जिन्होंने भारत और उसके धर्मों के बारे में अध्ययन किया था. यहां एकाधिकार का अर्थ किसी को शारीरिक तौर पर नुकसान पहुंचाने से है और इसकी शक्ति कानूनी तौर पर सिर्फ सरकार के पास है. इसीलिए हत्या, बलात्कार और ऐसे अन्य अपराध सरकार के खिलाफ अपराध होते हैं और सरकार उन पर मुकदमा चलाती है. ऐसे मामलों में अदालत के बाहर कोई भी समझौता नहीं हो सकता है.
सरकार प्राणदंड देने जैसे तरीकों के जरिये कानूनी हिंसा कर सकती है, लेकिन वह हमेशा कानून के अनुसार काम करने का वादा करती है. सभी निर्वाचित अधिकारी पदभार संभालते समय सत्यनिष्ठा के साथ यह शपथ लेते हैं कि वे संविधान का उल्लंघन नहीं करेंगे. सरकार अपने विभागों के माध्यम से जहां उसे उचित लगता है, वह हिंसा का सहारा लेती है. दुनिया के जिस हिस्से में हम रहते हैं, वहां भीड़ को नियंत्रित करने के मामलों में यह अक्सर हो सकता है. सभी भारतीय, बांग्लादेशी और पाकिस्तानी ‘लाठीचार्ज’ शब्द से परिचित होंगे. हमारी सरकारें यह समझती हैं कि जब नागरिक गलत काम करें, तो उन्हें बल प्रयोग द्वारा नियंत्रित किया जाना चाहिए. अपने नागरिकों पर गोली चलाना भी राज्य के लिए कोई असामान्य बात नहीं है.
वियतनाम युद्ध के निर्णायक मोड़ में 1970 में ओहायो विवि में विद्यार्थियों पर पुलिस का गोेली चलाना भी था. इसमें चार छात्र मारे गये थे. यह एक ऐतिहासिक घटना थी और इससे अमेरिकी नागरिकों को बेहद सदमा पहुंचा था कि उनकी सरकार ने अपने ही नागरिकों की हत्या की है. बेशक! हमारे यहां सरकार द्वारा की गयी गोलीबारी में नागरिकों का मारा जाना आम बात है.
मैं जो कहना चाहता हूं, उसे एक उदाहरण से आपको समझाता हूं. यह अक्तूबर 2016 की एक खबर है- सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक झारखंड के हजारीबाग के नजदीक चिरुडीह गांव में सुबह के समय प्रदर्शन कर रहे लोगों पर पुलिस द्वारा गोली चलाने से चार लोग मारे गये और 40 से अधिक घायल हो गये. ये निवासी नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) द्वारा काेयला खानों के लिए जमीन अधिग्रहण का विरोध कर रहे हैं. सार्वजनिक क्षेत्र के इस निगम ने झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के करनपुरा घाटी में 47 वर्ग किलोमीटर से अधिक के क्षेत्र में कोयले की खुदाई को शुरू करने का प्रस्ताव दिया था.’
मैं नहीं जानता कि इस आलेख को पढ़नेवाले कितने लोग हजारीबाग में हुए हत्याकांड से वाकिफ हैं, क्योंकि हमारे देश में अक्सर ऐसी वारदातें होती रहती हैं और उनके बारे में हमें पता नहीं चल पाता है. अगर धनी शहरी भारतीयों पर कोई आतंकवादी हमला होता, तो पाठक इस खबर को समाचारपत्र में प्रकाशित होते या टेलीविजन पर प्रसारित होते देख पाते. लेकिन, अपनी जमीन पर कब्जे के विरोध में प्रदर्शन कर रहे लोगों की सरकार द्वारा हत्या करने की खबर यहां कोई बड़ा मुद्दा नहीं बनती है.
भारतीय सेना और पाकिस्तानी सेना द्वारा मारे गये लोगों में से अधिकतर उनके अपनी देश के नागरिक होते हैं. भारत में पूर्वोत्तर के राज्यों, जम्मू-कश्मीर और आदिवासियों की जनसंख्या वाले कोयले के धनी इलाकों में सेना और अर्धसैनिक बलों द्वारा इस तरह की हत्याएं की जाती हैं.
वास्तव में रोहतगी ने दो बातें कही हैं : पत्थरबाज सहित सभी प्रदर्शनकारी, आतंकवादी हैं. दूसरे, क्योंकि वे आतंकवादी हैं, इसलिए सेना द्वारा उनका सामना करने के दौरान कानून ताेड़ना सही है. सेना ने कानून तोड़ा और भारतीय सरकार ने अपने नागरिकों और दुनिया से की गयी अपनी वह प्रतिबद्धता तोड़ी कि वह खुद को एक खास तरीके से पेश नहीं करेगी.
सरकार के विधि सलाहकार के अनुसार, काूनन का इस तरह से उल्लंघन करना एकदम सही है और वातानुकूलित कमरों में रहनेवाले भारतीयों को इस संबंध में कुछ भी कहने का अधिकार नहीं है. शायद वे एयरकंडीशनर का इस्तेमाल नहीं करते हैं और इसलिए उन्हें अपनी इच्छानुसार कुछ भी कहने का अधिकार है. मैं आश्चर्यचकित हूं कि ऐसे व्यक्ति को अटार्नी जनरल बनाया गया है. जम्मू-कश्मीर की सरकार, जिसमें भाजपा भी सहयोगी है और अवकाश प्राप्त जनरलों ने इस पर क्या कहा है, उन्होंने इस पर भी ध्यान नहीं दिया है. उन सभी ने कहा है कि यह बेहद गलत तरीका है और इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. मैं समझता हूं कि वे सही कह रहे हैं.
भारतीय राज्य नियमित रूप से अपने नागरिकों से किये गये वादों को ताेड़ते हैं और यह कोई नयी बात नहीं है. यहां नयी बात यह है कि ड्राइंग रूम में होनेवाली बेढंगी कट्टरता और बेतुके तर्क को जनता से किये गये वादों को तोड़ने का कारण बताया जा रहा है. हम अंधकार भरे डरावने समय में जी रहे हैं. जो लोग भारतीय संविधान की परवाह करते हैं, वे इसे लेकर चिंतित हैं.

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