राजनीतिक संरक्षण में हो रहा अपराध

लौहनगरी जमशेदपुर इन दिनों अपराधियों से लोहा नहीं ले पा रही. अपराधी खुलेआम वारदातों को अंजाम दे रहे हैं और पुलिस मूकदर्शक बनी हुई है. कारपोरेट घरानों के अधिकारी अपराधियों के निशाने पर हैं. पिछले चार महीने में टाटा स्टील के दो और टाटा मोटर्स के एक अधिकारी को निशाना बनाया जा चुका है. टाटा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 13, 2014 5:15 AM

लौहनगरी जमशेदपुर इन दिनों अपराधियों से लोहा नहीं ले पा रही. अपराधी खुलेआम वारदातों को अंजाम दे रहे हैं और पुलिस मूकदर्शक बनी हुई है. कारपोरेट घरानों के अधिकारी अपराधियों के निशाने पर हैं. पिछले चार महीने में टाटा स्टील के दो और टाटा मोटर्स के एक अधिकारी को निशाना बनाया जा चुका है.

टाटा मोटर्स के एजीएम ब्रजेश सहाय की हत्या के बाद पूर्व मुख्यमंत्री अजरुन मुंडा ने इसे राज्य में औद्योगिक शांति बिगाड़ने की एक साजिश करार दी थी. टाटा मोटर्स के कार्यकारी निदेशक एसबी बोरवंकर ने जमशेदपुर आने में डर लगने की बात कह कर भय के इस माहौल को और अधिक स्पष्ट कर दिया था. अब दो दिन पहले टाटा स्टील के मैनेजर रत्नेश राज पर हुई फायरिंग ने भय के इस कोहरे को और घना कर दिया है. जिस तरह से कंपनी के अधिकारियों पर हमले हो रहे हैं, उन्हें निशाना बनाया जा रहा है और फिर पुलिस के हाथ कुछ नहीं लग रहा, वह शहर केएक बार फिर संगठित अपराध की ओर बढ़ने के संकेत हैं. इन हमलों के कारणों का भी पर्दाफाश अभी तक पुलिस नहीं कर पायी है.

बाहर के अपराधी शहर आकर ताबड़तोड़ हमलों को अंजाम देते हैं और फिर फरार हो जाते हैं. पुलिस को इक्का-दुक्का सफलता मिलती तो है, लेकिन वह इनके मास्टरमाइंड तक नहीं पहुंच पाती. अपराधियों को मिल रहा राजनीतिक संरक्षण राज्य के लिए एक बड़ी चिंता का सबब बनता जा रहा है. सजायाफ्ता और जेल में बंद अपराधी भी आसानी से राजनीतिक दलों में प्रवेश पा रहे हैं और सफेदपोश बन कर अपने गिरोह को और ज्यादा संगठित करने में लगे हुए हैं. झारखंड के राजनीतिक दल इस मामले में न्यूनतम मापदंडों का पालन भी नहीं करते.

अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण मिलने से छुटभैये अपराधियों का हौसला तो बुलंद होता ही है, पुलिस का मनोबल भी गिरता है. जब तक राजनीति को अपराधियों के लिए अछूत नहीं बनाया जायेगा, तब तक हम ऐसे समाज की कल्पना नहीं कर सकते जहां कानून-व्यवस्था का राज हो. इससे पहले कि औद्योगिक नगरी की कानून-व्यवस्था का मसला पुलिस प्रशासन के हाथ से बाहर चला जाये, संगठित अपराध के इस खतरे की जड़ काटनी जरूरी है.

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