सैनिकों के लिए सोचना होगा
परिवार, बच्चों, पत्नी, मां, सब से दूर. हर वक्त मौत के साये में जिंदगी गुजारते हमारे सैनिक हमारे लिए शहादत देते हैं. इस बार भी दी है. शहादत के बाद फूल, माला, चिंता ओर वायदे, मगर उसके बाद? सब बक्से में बंद. शहादत पर भी सियासत. हमारे सैनिकों के सम्मान को चोट पहुंच रही है. […]
परिवार, बच्चों, पत्नी, मां, सब से दूर. हर वक्त मौत के साये में जिंदगी गुजारते हमारे सैनिक हमारे लिए शहादत देते हैं. इस बार भी दी है. शहादत के बाद फूल, माला, चिंता ओर वायदे, मगर उसके बाद? सब बक्से में बंद. शहादत पर भी सियासत. हमारे सैनिकों के सम्मान को चोट पहुंच रही है.
आखिर सैनिकों की कुर्बानी कब तक? रोकिए, इन हालातों को. हमको सोचना होगा और सबक लेनी होगी. शहादत पर राजनीति बंद करनी होगी. हमें संकल्पित होना होगा कि अपने देश के लिए, अपने तिरंगे के लिए, अपने बहादुर सैनिकों के लिए सोचना हमारी भी कर्तव्य है़ अगर हम इसमें चूक करते हैं, तो बेशक अपराध करते हैं़
संजय मेहता, इमेल से