अप्रत्यक्ष कर में सुधार से लाभ

भूपेंद्र यादव राज्यसभा सांसद और राष्ट्रीय महासचिव, भाजपा केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बहुप्रतीक्षित गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) को संसद से पारित कराने में ऐतिहासिक सफलता पायी है. इस सफलता की बदौलत अब अप्रत्यक्ष करों के मामले में देश में ‘एक राष्ट्र एक कर’ की अवधारणा को मूर्त रूप दिया […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 27, 2017 2:57 AM
भूपेंद्र यादव
राज्यसभा सांसद और
राष्ट्रीय महासचिव, भाजपा
केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बहुप्रतीक्षित गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) को संसद से पारित कराने में ऐतिहासिक सफलता पायी है. इस सफलता की बदौलत अब अप्रत्यक्ष करों के मामले में देश में ‘एक राष्ट्र एक कर’ की अवधारणा को मूर्त रूप दिया जाना संभव हो सका है. अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में सुधार के लिहाज से यह सरकार द्वारा उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है.रोजगार के अवसर, व्यापार में सुगमता और निवेश की दृष्टि से जीएसटी के फायदे भविष्य में स्पष्ट तौर पर दिखने लगेंगे.
कर प्रणाली के संबंध में महाभारत के शांतिपर्व का भीष्म-युधिष्ठिर संवाद उल्लेखनीय है. शांतिपर्व के अध्याय 88 में भीष्म कहते हैं कि जैसे मधुमक्खी फूलों से धीरे-धीरे मधु इकट्ठा करती है, उसी प्रकार राजा को भी अपने राज्य से धीरे-धीरे कर संग्रहण करना चाहिए. अर्थात, कर वह अच्छा है, जो राज्य की जनता को तकलीफ न दे और उस पर जरूरत से अधिक भार न पड़े. जीएसटी पर बात करते समय हमें यह गौर करना होगा कि हम देश को एक राजनीतिक संघ के रूप में तो देखते आये हैं, लेकिन आर्थिक संघ बनाने की दिशा में ठोस काम अब तक नहीं हुआ था. जीएसटी आने के बाद जब पूरे देश में समान अप्रत्यक्ष कर प्रणाली को लागू हो रही है, तो हम देश को आर्थिक यूनियन के तौर पर विकसित करने की दिशा में कदम बढ़ा चुके हैं.
साधारण मान्यता है कि जब अप्रत्यक्ष कर लगाया जाता है, तो समान रूप से उसका बोझ देश के सभी अमीर और गरीब पर पड़ता है. ऐसे में करों के ऊपर कर के अधिभार से देश की गरीब और आम जनता ज्यादा प्रभावित होती है, और इससे होनेवाली दिक्कतें गरीब तबके को ही ज्यादा परेशान करती हैं.
अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में सुधार की जरूरत को महसूस की जा रही थी. इस समस्या पर ध्यान देते हुए सरकार ने संघवाद के ढांचागत आधार को मजबूत करते हुए विधानमंडलों और संसद के माध्यम से एक प्रतिनिधि संस्था जीएसटी काउंसिल की रचना के माध्यम से इस कार्य को मूर्त रूप देने का कार्य किया है.
संघीय ढांचे में लोकतांत्रिक प्रणाली से सहमति और न्यूनतम साझेदारी की नीति पर चलते हुए जीएसटी काउंसिल का निर्माण किया गया, जिससे कर सुधार से जुड़े जरूरी प्रगति कार्य को आगे बढ़ाया जाये. इसी के आधार पर इस कांउसिल ने चार स्तरों पर अप्रत्यक्ष कर प्रणाली को वर्गीकृत किया है.
देश में औद्योगिक वातावरण को सुदृढ़ बनाने के लिए चाहे कारोबार में सुगमता अर्थात् ईज ऑफ डूइंग बिजनेस का प्रश्न हो या आधारभूत संरचना का बेहतरी के साथ इस्तेमाल कैसे हो, इस विषय पर समाधान देने की दिशा में जीएसटी कारगर उपाय साबित होगा. अप्रत्यक्ष कर प्रणाली समान नहीं होने के कारण अलग-अलग राज्यों में करों में असमानता की वजह से एक व्यापारिक असंतुलन की स्थिति भी पैदा हुई है, जिसका समाधान जीएसटी से पाया जा सकेगा. मसलन, अगर कश्मीर से कोई मालवाहक ट्रक कन्याकुमारी तक जाता है, तो रास्ते में उसे कर असामनता के अनेक बैरियर झेलने पड़ते हैं. जीएसटी लागू होने के बाद ऐसी बाधाओं को काफी हद तक कम करते हुए एक निर्बाध व्यापारिक माहौल दे पाने में सफलता हासिल कर सकेंगे.
देश में रोजगार के अवसरों में कमी की बात अकसर लोग करते हैं, लेकिन जब इस विषय पर हम ध्यान देते हैं, तो व्यापारिक सुगमता का प्रश्न साफ तौर पर कारक के रूप में नजर आता है.
इसमें कोई दो राय नहीं कि अगर हम देश में निर्बाध और सुगम व्यापारिक माहौल दे पाने में कामयाब होते हैं, तो रोजगार के अवसर स्वत: पैदा होने लगेंगे. हालांकि, इस दिशा में प्रयास किया जाता है, तो कुछ लोग इसे गलत तथ्यों के साथ तोड़-मरोड़ कर पेश करने लगते हैं. लेकिन, भारतीय अर्थचिंतन के मूल में जाने पर हमें ज्ञात होता है कि व्यापारिक सुगमता को लेकर भारत की दृष्टि बेहद सकारात्मक रही है. महाभारत के शांतिपर्व में इस बात का जिक्र है कि राज्य को व्यापारियों की रक्षा और उनके हितों का ख्याल पुत्र की भांति करना चाहिए. स्वतंत्र भारत के शुरुआती चार दशकों में तत्कालीन कांग्रेस सरकार की समाजवादी एवं साम्यवादी आर्थिक नीतियों ने एक बंद अर्थव्यवस्था विकसित की थी, जहां परमिट और लाइसेंस की प्रणाली हमारी आर्थिक सुगमता में बाधक रही.
वे नीतियां इस देश की मूल अर्थचिंतन के अनुरूप नहीं थीं, परिणामत: सार्वजनिक वस्तुओं के वितरण एवं अवसरों की उपलब्धता की स्थिति बेहद लचर होती गयी. जीडीपी ग्रोथ की दर भी बेहद औसत दर्जे की बनी रही. ऐसे में आर्थिक सुधारों की शुरुआत के बाद से अब तक अप्रत्यक्ष करों में सुधार से जुड़ा यह कार्य नहीं हो सका था, जिसे केंद्र सरकार ने पूरा किया है.
जीएसटी लागू होने से न सिर्फ देश की आम और गरीब जनता लाभान्वित होगी, बल्कि व्यापार क्षेत्र में भी तेजी आयेगी. कारोबार में आसानी होने से जब रोजगार के अवसर पैदा होंगे, तो इसका लाभ देश की गरीब जनता को ही मिलेगा.
कर असमानता को गैर-वाजिब प्रॉफिट के लिए इस्तेमाल करनेवालों पर लगाम लगेगी और देश के विविध क्षेत्रों के विकास को बल मिलेगा. जीएसटी महज एक कर सुधार की प्रक्रिया है, मगर इसके दूरगामी परिणाम सकारात्मक होंगे. पारदर्शिता और स्वस्थ प्रतिस्पर्धायुक्त वातावरण देकर देश में विकास की धारा को तेज करने के लिए जीएसटी एक कारगर उपकरण साबित होगी. स्वामी विवेकानंद द्वारा वर्ष 1893 में अपने एक शिष्य अलासिंगा को लिखे गये एक पत्र, जिसमें उन्होंने सामाजिक सुधारों को मूर्त रूप देने और असमानता को समाप्त करने के लिए आर्थिक स्वतंत्रता को बेहद अनिवार्य तत्व बताया है, पर भी गौर करना चाहिए.
उस पत्र के अनुसार आर्थिक स्वतंत्रता और प्रतिस्पर्धा से सामाजिक उत्थान स्वत: होता है. आज के संदर्भ में अगर स्वामी विवेकानंद द्वारा कही गयी उन बातों को देखें, तो जीएसटी के माध्यम से आर्थिक संपन्नता और स्वतंत्रता के लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में वर्तमान सरकार ने ठोस कदम बढ़ाया है.

Next Article

Exit mobile version