भारत-नेपाल संबंध : नयी दिशा
सुमित झा यूजीसी सेंटर फॉर साउथर्न एशिया स्टडीज, पांडिचेरी सेंट्रल यूनिवर्सिटी अप्रैल 17 से 21 तक नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी की पांच दिन की भारत यात्रा कई मायने में एेतिहासिक थी. राष्ट्रपति बनने के बाद भंडारी की भारत की यह पहली आधिकारिक यात्रा थी. राष्ट्रपति भंडारी 2016 में ही भारत की यात्रा पर […]
सुमित झा
यूजीसी सेंटर फॉर साउथर्न एशिया स्टडीज,
पांडिचेरी सेंट्रल यूनिवर्सिटी
अप्रैल 17 से 21 तक नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी की पांच दिन की भारत यात्रा कई मायने में एेतिहासिक थी. राष्ट्रपति बनने के बाद भंडारी की भारत की यह पहली आधिकारिक यात्रा थी. राष्ट्रपति भंडारी 2016 में ही भारत की यात्रा पर आनेवाली थीं, परंतु नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली से टकराव के कारण उनकी यात्रा रद हो गयी थी. राष्ट्रपति भंडारी ने भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और दोनों देशों के रिश्तों को मजबूत करने संबंधी कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की.
मोदी सरकार ने पिछले तीन साल में नेपाल सहित अन्य सभी सार्क देशों के साथ रिश्ते मजबूत करने के लिए कई महत्वपूर्ण प्रयास किये हैं. अगस्त 2014 में प्रधानमंत्री मोदी दो बार नेपाल भी गये थे.
जब अप्रैल 2015 में नेपाल के लोगो को भूकंप का भयानक तांडव झेलना पड़ा, तो भारत सबसे पहला देश था, जिसने सहायता सामग्री एवं सैनिकों को नेपाल सरकार के साथ बचाव अभियान में सहयोग करने के लिए भेजा. दुर्भाग्यवश, इस भीषण त्रासदी से निपटने में भारत के सहयोगात्मक व्यवहार को नेपाल ने विपरीत संदर्भ में देखा. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ओली सरकार ने नेपाल में भारतीय मीडिया की उपस्थिति पर सवाल उठाते हुए भारत पर नेपाल के लोगों के सामने अपनी छवि को सुधारने का आरोप लगाया तथा भारतीय मीडिया के लोगों को नेपाल से चले जाने के लिए कहा.
इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री ओली ने इस मुद्दे को संयुक्त राज्य के महासचिव बान की मून के समक्ष भी उठाया और भारत के प्रति कड़ा रुख अपनाते हुए चीन के साथ संबंधों की मजबूती पर विशेष ध्यान दिया. नेपाल की विदेश नीति में इस विशेष बदलाव का पता उस समय स्पष्ट हो गया, जब फरवरी 2016 में भारत की यात्रा के तुरंत बाद ओली मार्च में चीन गये तथा काठमांडू एवं बीजिंग के बीच ‘वन बेल्ट वन रोड’ के अंतर्गत कई महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर हुए.
इससे पहले कि नयी दिल्ली तथा काठमांडू के बीच और दूरी बढ़ती, 601 सदस्यीय संसद में ओली सरकार अल्पमत में आ गयी और नेपाल पर एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता का साया मंडराने लगा.
हालांकि, ओली सरकार का सत्ता से बाहर चले जाना भारत के लिए सुखद समाचार था, पर भारतीय राजनयिकों तथा विश्लेषकों ने इस पर चिंता प्रकट की कि नये प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड के नेतृत्व में भारत-नेपाल संबंधों में शायद ही सुधार होगा. कारण, अपने पहले प्रधानमंत्री कार्यकाल में प्रचंड ने भारत के बजाय चीन के साथ संबंधों को सुधारने पर बल दिया था.
उस समय 1950 के भारत-नेपाल मैत्री समझौते पर प्रचंड का कठोर रुख भी भारत एवं नेपाल के बीच दूरी बढ़ाने का काम किया था.
हालांकि, इस बार भारत के प्रति प्रधानमंत्री प्रचंड के रवैये में महत्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिला. उन्होंने सार्वजनिक रूप से इस बात को स्वीकार किया कि नेपाल का भारत के साथ रिश्ता अतुलनीय है.
प्रचंड ने इसे भी माना कि उनके राजनीतिक अनुभवहीनता के कारण ही वह अपने पहले कार्यकाल में भारत के साथ मैत्री रिश्ते नहीं बना पाये. प्रचंड के भारत के प्रति बदले हुए विचार उस समय और स्पष्ट हो गये, जब दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने पर वह सबसे पहले भारत की यात्रा पर आये. भारत-नेपाल के संबंधो में हुए इसी सकारात्मक बदलाव ने प्रधानमंत्री मोदी को अपने विरोधियों को चुप करने का अवसर दिया, जो यह आरोप लगा रहे थे कि नेपाल के साथ रिश्तों में विश्वास बहाल कराने में मोदी सरकार पूर्णत: असफल रही है.
पिछले साल भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की नेपाल यात्रा दोनों देशों के संबंधों को मजबूत बनाने में एक अति महत्वपूर्ण पहल थी. राष्ट्रपति मुखर्जी ने अपनी यात्रा को ‘मिशन ऑफ फ्रेंडशिप’ कहा. दोनों देशों के लोगों के बीच नजदीकियां बढ़े इसके लिए उन्होंने घोषणा की कि नेपाली छात्र आइआइटी में 2017 से ग्रेजुएशन एवं पोस्ट-ग्रेजुएशन कर सकते हैं.
भारत का नेपाल के साथ अच्छे रिश्ते बनाने का दूसरा कारण चीन का नेपाल की सड़क, बिजली जैसी अन्य मूलभूत संरचना में बढ़ती भागीदारी को रोकना है. पाकिस्तान का नेपाल के साथ मैत्रीपूर्ण प्रयासों के संदर्भ में भारत के लिए यह आवश्यक भी है कि वह इस बात को सुनिश्चित करे कि चीन-नेपाल-पाकिस्तान का भारत के विरोध में सामूहिक गंठजोड़ न हो पाये. काठमांडू के साथ मजबूत रिश्ता बनाये रखना नयी दिल्ली के लिए इसलिए भी जरूरी है, ताकि नेपाल के नये संविधान में मधेशी लोगों के हितों की रक्षा की जा सके.
इसी परिप्रेक्ष्य में जहां नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी की भारत यात्रा से दोनों देशों के संबंधों को एक नयी गति मिली है, वहीं इस बात की उम्मीद की जानी चाहिए कि दोनों देश आनेवाले समय में द्विपक्षीय संबंधों को एक नयी ऊंचाई पर पहुचायेंगे.