10.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

श्रमिक हित सर्वोपरि

मजदूर दिवस इस तथ्य के रेखांकन का अवसर है कि श्रमिकों ने अपने खून-पसीने से हमारी उपलब्धियों को आधार दिया है और उसे सजाया-संवारा है. पर यह विडंबना ही है कि समाज के हाशिये पर वे ही हैं और वंचनाओं के शिकार हैं. उनके अधिकारों के लिए तमाम नियम-कानून बने हुए हैं, पर उन्हें ठीक […]

मजदूर दिवस इस तथ्य के रेखांकन का अवसर है कि श्रमिकों ने अपने खून-पसीने से हमारी उपलब्धियों को आधार दिया है और उसे सजाया-संवारा है. पर यह विडंबना ही है कि समाज के हाशिये पर वे ही हैं और वंचनाओं के शिकार हैं.
उनके अधिकारों के लिए तमाम नियम-कानून बने हुए हैं, पर उन्हें ठीक से अमली जामा नहीं पहनाया गया है. हमारे देश में न्यूनतम मजदूरी तय है, पर उसका भुगतान सुनिश्चित नहीं किया जा सका है. यह संतोष की बात है कि केंद्र सरकार ने पिछले साल नवंबर में अपने अधिकार-क्षेत्र में आनेवाले तृतीय श्रेणी के शहरों में अकुशल कृषि श्रमिकों की मजदूरी 160 से बढ़ाकर 350 रुपये कर दिया है.
इसी तरह से दिल्ली, मध्य प्रदेश, केरल में न्यूनतम मजदूरी और ठेका मजदूरों का मेहनताना बढ़ाया गया है. उम्मीद है कि विभिन्न राज्य सरकारें भी जल्दी ही इस दिशा में कदम उठायेंगी. नव-आर्थिक नीतियों के चलते स्थायी कामगारों की जगह ठेके पर काम कराने का चलन तेजी से बढ़ा है. देश के करीब 3.6 करोड़ ठेका कामगारों में 32 फीसदी लोग सार्वजनिक क्षेत्र में कार्यरत हैं. यह बेहद चिंताजनक है कि इनमें से मात्र 60 लाख ही कॉन्ट्रैक्ट लेबर से संबंधित 1970 के कानून के तहत आते हैं. पिछले साल सरकार ने ऐसे श्रमिकों का न्यूनतम मासिक वेतन 10 हजार करने का प्रस्ताव किया था.
लेकिन उद्योग जगत के अड़ियल रवैये के चलते इसे लागू करने में अड़चनें आ रही हैं. एक वरिष्ठ सांसद ने कुछ महीने पहले संसद में कह दिया था कि संसद भवन में ठेके पर कार्यरत सफाई कामगारों को न्यूनतम मजदूरी नहीं दी जाती है. श्रम क्षेत्र में लैंगिक समानता के स्तर पर भी हम बहुत आगे नहीं आ पाये हैं. वर्ष 2013 में जारी विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार श्रमशक्ति में महिलाओं की भागीदारी के मामले में भारत 131 देशों की सूची में 121 स्थान पर है. हमारे देश में यह आंकड़ा 27 फीसदी है, जबकि चीन में 63.9 और अमेरिका में 56.3 फीसदी है.
कामगारों को वेतन के अलावा स्वास्थ्य, आवास, बच्चों की शिक्षा आदि सुविधाओं के अभाव से भी जूझना पड़ता है. पेंशन जैसे भत्तों की कमी से श्रमिकों को 60 वर्ष के बाद भी मेहनत करने की मजबूरी होती है. सरकारी सर्वेक्षण के अनुसार, करीब 38 फीसदी बुजुर्ग काम कर अपनी जीविका जुटाते हैं. केंद्र द्वारा बाल श्रमिकों से संबंधित अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के दो निर्णयों पर सहमति स्वागतयोग्य है. उम्मीद है कि श्रम सुधारों की प्रक्रिया में श्रमिकों के बुनियादी अधिकारों और जरूरतों का पूरा ख्याल रखा जायेगा.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें