चोला बदलने में वक्त ही कितना लगता है

।। रजनीश आनंद।। (प्रभात खबर.कॉम) इस चुनावी महापर्व में हम पत्रकारों की मानो शामत आ गयी है. रोज स्पेशल स्टोरी लाओ, हर पार्टी और नेता पर नजर रखो. और, जरा सी चूक हुई तो क्लास लगने का डर अलग. अभी पिछले दिनों मेरे कानों में उड़ती-उड़ती एक खबर पड़ी कि मेरे प्रिय मित्र शर्मा जी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 15, 2014 3:47 AM

।। रजनीश आनंद।।

(प्रभात खबर.कॉम)

इस चुनावी महापर्व में हम पत्रकारों की मानो शामत आ गयी है. रोज स्पेशल स्टोरी लाओ, हर पार्टी और नेता पर नजर रखो. और, जरा सी चूक हुई तो क्लास लगने का डर अलग. अभी पिछले दिनों मेरे कानों में उड़ती-उड़ती एक खबर पड़ी कि मेरे प्रिय मित्र शर्मा जी के आदर्श पुरुष और हमारे इलाके के तथाकथित लोकप्रिय नेता का टिकट कटने वाला है. खबर पक्की करने के लिए मैंने शर्मा जी को फोन लगाया.

दो-तीन बार बिजी मिलने के बाद फोन लगा. लेकिन, उनकी तरफ से इतना शोर-गुल सुनायी पड़ रहा था कि बात नहीं हो सकी. बाद में बात करने की सोच कर मैं दफ्तर से घर के लिए निकल पड़ी. ऑटो में भी चुनावी गप ही चल रही थी. एक अधेड़ सज्जन कहने लगे, इस बार हमारे इलाके के नेताजी की गुड्डी कटी समझो. बगल में बैठे एक बुजुर्ग ने चर्चा आगे बढ़ाते हुए कहा, लेकिन उन्होंने अपनी दावेदारी ठोंकने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. आला कमान तक फरियाद लगा आये हैं. तभी एक युवा बीच बहस में कूदा, अगर घोटाले करते वक्त भी नेताजी ने थोड़ा सोचा होता, तो यह नौबत नहीं आती.

अधेड़ सज्जन बोले- अरे भाई, ये नेता पूरे पांच साल घोटाले करके माल बटोरते हैं और जनता परेशान रहती है. चुनाव में ही तो उनके कर्मो का लेखा-जोखा होता है. यही एक मौका होता है, जब जनता को लोकतंत्र का मालिक होने का एहसास होता है. बाकी, चुनाव जीतने के बाद तो नेता छाती 56 इंच की करके घूमेंगे और जनता देखेगी. बुजुर्ग ने कहा, मुझे तो बहुत मजा आ रहा है. एक नेता है, जो दूसरों को पीएम बनने के सपने देखने तक से रोकता है और खुद हर रैली में अपना स्वागत भावी प्रधानमंत्री के रूप में करवाता है.

एक झाड़ूमार नेता है, जो खुद को आम बताते-बताते खास बन गया है. इन नेताओं की फितरत विचित्र है. पल में तोला, तो पल में माशा. अभी कांग्रेस के हाथ के साथ हैं, तो दूसरे ही पल उस हाथ में झाड़ू पकड़ सकते हैं. इस चुनावी चर्चा का मजा लेते-लेते मैं कब अपने गंतव्य तक पहुंच गयी, पता ही नहीं चला. ऑटोवाले को पैसे देते-देते मैंने देखा कि किसी नेता का अभिनंदन हो रहा है. खबरों को सूंघने की आदत से मजबूर मैंने अपनी नाक घुसा दी. देखा, मेरे मित्र शर्मा जी भगवा वस्त्र धारण किये ‘इंडिया फर्स्ट’ का नारा लगा रहे हैं.

उनकी पुरानी पार्टी का झंडा भीड़ के पैरों तले कुचला जा रहा था. मैंने इस ओर उनका ध्यान दिलाया, तो वह बोले- राजनीति में मतभेद होते हैं, मनभेद नहीं. मैंने पूछा, आप लोग जिस पार्टी में गये हैं, उसकी तो पहले निंदा करते नहीं थकते थे. इस पर वह खिसिया गये और कहा, आप तो ऐसे सवाल कर रही हैं, जैसे हमारे बीच गैंग वार हो रहा हो, अरे मतभेद कहां नहीं होता. मैं कुछ पूछ पाती, इससे पहले शर्मा जी के आदर्श पुरुष नये चोले में आ पहुंचे. मुझे धकियाते हुए शर्मा जी ने उनके चरण छू लिये. गगनभेदी नारों के बीच राजनीति के इस चेहरे को मैं चुपचाप देखती रही.

Next Article

Exit mobile version