कश्मीर के बिगड़ते हालात
आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक प्रभात खबर कश्मीर के हालात चिंताजनक है, वहां स्थितियां बिगड़ती जा रही हैं, खासकर दक्षिण कश्मीर में हालात बेकाबू होते जा रहे हैं. ऐसा लग रहा है कि यहां 90 के दशक की वापसी हो रही है. उस दौर में आतंकवादियों ने भारी खूनखराबा किया था, वे खुलेआम घूमते थे और […]
आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक
प्रभात खबर
कश्मीर के हालात चिंताजनक है, वहां स्थितियां बिगड़ती जा रही हैं, खासकर दक्षिण कश्मीर में हालात बेकाबू होते जा रहे हैं. ऐसा लग रहा है कि यहां 90 के दशक की वापसी हो रही है. उस दौर में आतंकवादियों ने भारी खूनखराबा किया था, वे खुलेआम घूमते थे और पूरी कश्मीर घाटी में दशहत का माहौल बन गया था. लगता है कि 27 साल बाद एक बार फिर कुछ वैसे ही हालात सामने आ रहे हैं. दक्षिण कश्मीर में राजनीतिक गतिविधियां ठप हो गयीं हैं. आतंकवादी बैकों को लूट रहे हैं. साथ ही ऐसे कुछ वीडियो सामने आये हैं जिनमें आतंकवादी खुलेआम घूमते और लोगों को धमकाते नजर आये हैं.
कश्मीर के हालात जानना हम सभी के लिए बेहद जरूरी है. यह न केवल देश का अभिन्न अंग है, साथ ही भारतीय सुरक्षा बलों के हजारों जवानों ने इसकी रक्षा के लिए कुरबानियां दी हैं. जानना इसलिए भी जरूरी है कि पड़ोसी देश पाकिस्तान किस तरह अपनी नापाक चालों से यहां आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है और भारत को कमजोर करने की हरसंभव कोशिश कर रहा है.
ऐसा माना जाता है कि मनमोहन सिंह की सरकार के दौरान पाकिस्तान और कश्मीर को लेकर नीतियां ढीलीं थीं, उनमें सुनिश्चित दिशा का अभाव था. जब केंद्र में मोदी सरकार और जम्मू कश्मीर में भाजपा-पीडीपी गठबंधन सत्ता में आया तो उस पर भी सवाल उठे थे. कहा गया कि यह बेमेल गठबंधन है. मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी का रुख हमेशा से अलगाववादियों के प्रति नरम रहा है, दूसरी ओर भाजपा अलगाववादियों के प्रति कड़े रुख की हिमायती रही है. लेकिन गठबंधन चलाने के लिए दोनों दलों ने थोड़ा लचीला रुख अपनाया. उम्मीद जगी कि कश्मीर के हालात सुधरेंगे. पाकिस्तान को कड़ा संदेश दिया जाएगा, साथ ही कश्मीर के अवाम से संवाद का रास्ता खुलेगा. लेकिन संकेत इसी बात के हैं कि हालात नहीं सुधरे हैं, स्थिति बदतर हुई है.
दक्षिण कश्मीर का पूरा इलाका समस्या का केंद्र है. पुलवामा, शोपियां, अनंतनाग और कुलगाम में भारत विरोधी भावनाएं गहरी हो गयीं हैं. आतंकवादियों को स्थानीय लोगों का समर्थन मिल रहा है. हालात की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सेना ने इस इलाके के 20 गांवों में घर घर तलाशी अभियान चलाना पड़ा है. ऐसा स्थिति 90 के दशक में आयी थी.
आतंकवादी यहीं पनाह पाते हैं और जब भी कभी सुरक्षाबलों और आतंकियों के बीच मुठभेड़ होती है तो यहां के युवक आतंकियों को बचाने के लिए सुरक्षाबलों पर पथराव करने लगते हैं. भारत विरोधियों के हाथों में अब एके 47 की जगह पत्थर आ गये हैं. चिंताजनक बात यह है कि इन इलाकों में पत्थरबाजों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल हो गये हैं और आतंकवादी उन्हें ढाल बनाते हैं. पत्थरबाजों से निपटने के लिए सुरक्षाबलों ने पैलेट गन का इस्तेमाल किया तो निशाना बने बच्चे और नवयुवक. नतीजतन सुरक्षा बलों को अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ा. इधर पिछले दिनों कुपवाड़ा में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ स्थल पर बड़ी संख्या में स्थानीय लोग पहुंच गए और विरोध करने लगे. इसके बाद सेना प्रमुख बिपिन रावत को घोषणा करनी पड़ी कि कोई भी शख्स मुठभेड़ में बाधा पहुंचाएगा उसे आतंकी माना जाएगा.
यह बात अब कोई रहस्य नहीं रह गयी है कि पत्थरबाजों को भारतीय सुरक्षाबलों पर हमला करने के लिए पाकिस्तान से पैसे मिलते हैं. नोटबंदी के बाद इसमें समस्या आ रही थी और हवाला के माध्यम से पैसे का लेनदेन भी रुक-सा गया है. आतंकवादियों ने नयी रणनीति अपनायी और बैंकों को लूटना आरंभ कर दिया. आप स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि इन घटनाओं के बाद महबूबा मुफ्ती सरकार ने दक्षिण कश्मीर की 40 बैंक शाखाओं में नकद लेनदेन रोक लगा दी है यानी कोई ग्राहक न तो नकद जमा कर पाएगा और न ही निकाल पाएगा.
दूसरी ओर पाकिस्तान के साथ छद्म युद्ध जारी है. पाकिस्तान ने बर्बरता की सीमा पार करते हुए तीसरी बार भारतीय जवानों के शवों को क्षत विक्षत किया है. एक बार भारत इसके जवाब में सर्जिकल स्ट्राइक कर चुका है लेकिन उसके बावजूद पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है. मोदी सरकार के ऊपर दबाव है कि वह एक बार फिर इसका जवाब दे.
यह बात किसी से छुपी नहीं है कि पाकिस्तान में सत्ता के दो केंद्र है. एक निर्वाचित प्रतिनिधि और दूसरी वहां की सेना. स्थिति यह है कि सेना अपने वर्चस्व को साबित करने का कोई मौका नहीं छोड़ती है. माना जा रहा है कि परदे के पीछे चलने वाली कूटनीतिक पहल के तहत भारतीय कारोबारी सज्जन जिंदल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से मिले थे और इसका मकसद दोनों प्रधानमंत्रियों की मुलाकात था, लेकिन इसे असफल करने के लिए पाक सेना ने भारतीय सैनिकों पर बर्बरता दिखायी. इसके पहले भी जब प्रधानमंत्री मोदी पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से मिलने अफगानिस्तान से अचानक उनके घर पहुंच गये थे तो उसके बाद उस माहौल को खत्म करने के लिए पठानकोट हमला हुआ और सकारात्मक पहल बेनतीजा रही.
पुरानी मिसाल है कि आप और बहुत-सी चीजें बदल सकते हैं, लेकिन अपना पड़ोसी नहीं बदल सकते हैं. विरोधाभासों से भरे पाकिस्तान के साथ हम-आपको जीना होगा. कभी सर्जिकल स्ट्राइक करनी होगी, लेकिन साथ ही साथ बातचीत का रास्ता भी खुला रखना होगा. दूसरी ओर कश्मीर के अवाम का भरोसा भी जीतना होगा, बिना उनके सहयोग के पाक समर्थित आतंकवादियों से पार नहीं पाया जा सकता.