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कश्मीर में दोहरी चुनौती

देश के स्वाभिमान पर संकट आये, तो धीरज को किनारे रख ईंट का जवाब पत्थर से देना कर्तव्य है. नियंत्रण रेखा के पार बने पाकिस्तानी फौज की बंकरों पर भारतीय सेना की कार्रवाई को इसी नजर से देखा जाना चाहिए. कुछ दिन पहले घुसपैठ कर हमारे दो जवानों की हत्या और शवों के साथ बर्बरता […]

देश के स्वाभिमान पर संकट आये, तो धीरज को किनारे रख ईंट का जवाब पत्थर से देना कर्तव्य है. नियंत्रण रेखा के पार बने पाकिस्तानी फौज की बंकरों पर भारतीय सेना की कार्रवाई को इसी नजर से देखा जाना चाहिए. कुछ दिन पहले घुसपैठ कर हमारे दो जवानों की हत्या और शवों के साथ बर्बरता कर पाकिस्तान ने यही साबित किया है कि भारत को अस्थिर करने के लिए वह किसी भी निकृष्ट स्तर तक गिर सकता है. वहां की सरकार और सेना कश्मीर मसले की आड़ में आतंक और हिंसा के छद्म युद्ध का सहारा लेती रही हैं.
यह सब उसकी राजनीतिक और रणनीतिक सोच का हिस्सा है. केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार, 2015 और 2016 में पाकिस्तान ने हर दिन युद्धविराम का उल्लंघन किया था. नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान ने 2015 में 449 बार तथा 2016 में 405 बार गोलीबारी की. जम्मू-कश्मीर में 2012 से 2016 के बीच 1,142 आतंकी घटनाएं हो चुकी हैं.
इन वारदातों में बड़ी संख्या में लोगों की जान गयी है. गोलीबारी की आड़ में सीमा पार से प्रशिक्षित आतंकवादियों की घुसपैठ कराने की कोशिश की जाती है, जो राज्य में घात लगा कर सुरक्षाबलों और नागरिकों पर हमलावर होते हैं. अंतरराष्ट्रीय राजनीति के दावं-पेंच के कारण पाकिस्तान के इस रवैये को सुधारने का पर्याप्त दबाव नहीं बन पा रहा है.
भारत के सामने जैसी चुनौती कश्मीर में पाकिस्तान से लगती सीमा पर चौकसी बरतने की है, उतनी ही बड़ी चुनौती घाटी में सामान्य स्थिति बहाल करने की है. फिलहाल कश्मीर के दक्षिणी हिस्से में स्थिति ज्यादा गंभीर है, जहां पुलवामा, शोपियां, अनंतनाग और कुलगाम में महिला और बच्चे तक पत्थरबाजी पर उतारू हैं. आतंकवादी उन्हें ढाल बना कर अपने मंसूबे अंजाम देते हैं. घाटी में सरकार को जमीनी स्तर पर कई मोर्चों पर निपटना पड़ रहा है. अलगाववादी सोशल मीडिया का बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं और धन जुटाने के लिए आतंकवादी बैंक लूट रहे हैं.
सरकार को इंटरनेट सेवाएं ठप्प करने और बैंकों का कामकाज रोकने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. इससे कश्मीर घाटी में रोजमर्रा का जीवन और कठिन हो रहा है, जबकि ऐसे आड़े वक्त में ही सरकार के सामने बड़ी चुनौती लोकतांत्रिक मूल्यों और संस्थाओं में आम नागरिकों के भरोसे को कायम करने की है. एक तरफ सीमा और नियंत्रण रेखा पर चौकस रहने तथा जवाबी कार्रवाई के लिए मुस्तैद रहने की जरूरत है, और दूसरी तरफ कश्मीर में अमन-चैन व लोकतंत्र की बहाली को सुनिश्चित करना है.

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