खेल में हमेशा ही ओलिंपिक और नॉन-ओलिंपिक के बीच भेदभावपूर्ण क्यों किया जाता है? सरकार जब भी खेल और खिलाड़ी की बात करती है, तो इस बात का उल्लेख जरूर करती है कि वह ओलिंपिक गेम्स की श्रेणी में हो, चाहे बात प्रतियोगिता के आयोजन की हो, रोजगार की हो, प्रशिक्षण की हो, सम्मान की हो अथवा खेलवृत्ति की. नॉन-ओलिंपिक गेम्स में देश परचम लहराता आया है, चाहे क्रिकेट हो या बिलियर्ड्स, स्नूकर एवं शतरंज जैसे इंडोर गेम्स. सरकार के विज्ञापन के अनुसार तो देश को क्रिकेट का विश्व चैंपियन बनानेवाले महेंद्र सिंह धौनी भी कॉफी टेबल बुक में जगह पाने अर्हता नहीं रखते. इससे अधिक दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण मसला क्या हो सकता है?
सुरजीत झा, गोडडा