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छुट्टी की छुट्टी

मनोज श्रीवास्तव स्वतंत्र टिप्पणीकार हमारे समय सरकारी स्कूलों में किसी बच्चे के दूर के रिश्तेदार की मौत पर भी छुट्टी हो जाती थी. छुट्टी कराना कोई बड़ी बात नहीं है. बड़ी बात वही जो छुट्टी की भी छुट्टी करा दे. यूपी में योगी जी ने छूट्टी की छुट्टी कर स्कूलों की घंट सूनी कर दी […]

मनोज श्रीवास्तव

स्वतंत्र टिप्पणीकार

हमारे समय सरकारी स्कूलों में किसी बच्चे के दूर के रिश्तेदार की मौत पर भी छुट्टी हो जाती थी. छुट्टी कराना कोई बड़ी बात नहीं है. बड़ी बात वही जो छुट्टी की भी छुट्टी करा दे. यूपी में योगी जी ने छूट्टी की छुट्टी कर स्कूलों की घंट सूनी कर दी है. अब उस टन-टन का कोई आकर्षण नहीं रहा. आजकल के मॉडर्न स्कूलों में तन-टन की जगह सायरन ने ले ली है.

बच्चे सायरन सुनते ही सकते में आ-जाते हैं. पहले तन-टनाटन की ध्वनि किलकारी में डूब जाती थी और अब सायरन से सन्नाटा खिंच जाता है. कारण कि घर पहुंचे और होमवर्क शुरू. सायरन न हुआ बच्चों के लिए होमवर्क का बिगुल हो गया है. सायरन सुनते ही बच्चे उदास से लगते हैं, क्योंकि पूरा दिन स्कूल में मजे से निकल गया, क्योंकि 40 मिनट की क्लास में टीचर के पास एक बच्चे के लिए एक या दो मिनट का समय है. इसी में बच्चों को पढ़ाना है, होमवर्क चेक करना है और होमवर्क भी देना है.

मॉडर्न स्कूलों ने इसका इलाज निकाला कि पढ़े-पढ़ाये बच्चे भर्ती कीजिये. मतलब पेरेंट्स का टेस्ट लीजिये, यदि वे होमवर्क करने-करवाने में सक्षम हों, तो ठीक वरना बच्चा बाहर. अब पेरेंट्स घर में बच्चे की जगह बस्ते का इंजार करते हैं. बच्चे के घर पहुंचते ही पेरेंट्स बच्चे को छोड़ बस्ता खोल कर बैठ जाते हैं. साल भर परेशान, पूरा घर कॉन्वेंट पढ़ाई में लगा है. फिर भी स्कूल से फरमान आ-ही जाता है कि आपका बच्चा बहुत कमजोर है. उन्हें बच्चे की जगह पेरेंट्स को कमजोर कहना चाहिए, पर स्कूल की मर्यादा है. वरना तो वे बच्चे की जगह पेरेंट्स की ही भर्ती करने लगे.

इस समय के स्कूल होमवर्क चेक स्कूल बन गये हैं. पढ़ाई पेरेंट्स के जिम्मे है ही, तो स्कूल लगे हैं किताब-कॉपी और ड्रेस बेचने. आखिर खाली समय वे करें भी क्या? इसलिए समस्त स्टॉफ को ड्रेस-किताब के बिजनेस में लगाये रखा जाता है. शुक्र कीजिये कि फीस का हिसाब, ड्रेस, किताब, कॉपी बिक्री की कैशबुक मिलान भी पेरेंट्स के जिम्मे आनेवाले थे. भला हो सरकार का कि स्कूलों को बेंचा-बांची के धंधे से रोक दिया है, वरना पेरेंट्स को कॉन्वेंट पढ़ाई के साथ कॉमर्स की पढ़ाई भी करनी होती.

हर महीने के टेस्ट फिर तिमाही, छमाही, बारहमाही परीक्षा के जंजाल में घिरे बच्चे और पेरेंट्स किसी पार्टी-फंक्शन या शादी से दूर और रिश्तेदारी से कटे हुए बेबस प्राणी बन कर रह गये हैं. बच्चे अब तो नजदीकी रिश्तेदारों को भी नहीं जानते. इस मॉडर्न स्कूल के चक्कर में हम रिश्ते-नातों के साथ रीति-रिवाज और संस्कृति विहीन संतानों की नयी पीढ़ी तैयार करने में लगे हैं, जिससे सभी अंजान है. इसके दुष्परिणाम आज नहीं तो कल देश के साथ सभी को भुगतना है.

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