फयाज की हत्या और कश्मीर

अजय साहनी आंतरिक मामलों के जानकार जम्मू-कश्मीर के शोपियां में आतंकियों ने लेफ्टिनेंट उमर फयाज की जिस तरह बर्बरता से हत्या की है, वह दुखद है. लेकिन, इसका स्पष्ट संदेश यह है कि उनके खिलाफ जो भी होगा, वे उसे मार डालेंगे, भले वह कश्मीरी सैनिक ही क्यों न हो. पिछले दिनों और पिछले सालों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 11, 2017 6:57 AM

अजय साहनी

आंतरिक मामलों के जानकार

जम्मू-कश्मीर के शोपियां में आतंकियों ने लेफ्टिनेंट उमर फयाज की जिस तरह बर्बरता से हत्या की है, वह दुखद है. लेकिन, इसका स्पष्ट संदेश यह है कि उनके खिलाफ जो भी होगा, वे उसे मार डालेंगे, भले वह कश्मीरी सैनिक ही क्यों न हो. पिछले दिनों और पिछले सालों में इन्होंने बहुत से कश्मीरियों को मारा है. ऐसा माना जाता है कि यह कश्मीरियत आंदोलन है. लेकिन, यह कोई कश्मीरियत आंदोलन नहीं है, बल्कि सीधे-सीधे यह पाकिस्तान आधारित इस्लामी एक्स्ट्रीमिस्ट मूवमेंट है. इस मूवमेंट के खिलाफ जो भी खड़ा होगा, उसको ये लोग निशाना बनायेंगे. ये आतंकी कोई भी हद पार कर सकते हैं. इसलिए इनसे यह उम्मीद रखना कि एक कश्मीरी लड़का फौज में भरती है, उसे वे कुछ नहीं करेंगे, तो यह एक तरह की लापरवाही है.

इस वक्त मीडिया में कश्मीर की एक विकृत किस्म की छवि आ रही है. कुछ विशेषज्ञ टीवी पर बैठ कर चीखते हैं और कश्मीर में हिंसात्मक कार्रवाई की बात करते हैं. कहते हैं कि सेना को पूरी छूट दे दी जाये और वहां सबको गोली मार दी जाये. यह निहायत ही गलत बात है.

इससे यही लगता है कि कश्मीर सिर्फ ऐसा ही है और घाटी हमसे दूर जा रही है. लेकिन, वहीं लाखों कश्मीरी हैं, जो आतंकवाद से परेशान हैं, उनकी जिंदगी मुश्किल से चल रही है, उनकी सच्चाई कम ही सामने आ पाती है. पिछले दिनों कश्मीर में एक बैंक डकैती हुई, जिसमें कश्मीरी ही मारे गये.

बैंक के कर्मचारी भी कश्मीरी थी और वहां तैनात पुलिस के लोग भी कश्मीरी थे. जब भी कश्मीर में सैन्य भरती होती है, तो दसियों हजार कश्मीरी नौजवान भरती में शामिल होते हैं. लेकिन, यह खबर मीडिया में उतनी जगह नहीं पाती, जितनी की हिंसात्मक खबरें. सिर्फ पत्थरबाजी जैसी घटनाओं से ही कश्मीर की छवि बना दी जाती है, जबकि खुद कश्मीरी भारतीय सेना में शामिल होकर आतंकियों से मुकाबला कर रहे हैं. लेफ्टिनेंट फयाज ऐसे ही कश्मीरी जवान थे, जिन्होंने अपनी कुर्बानी दी है. इस ऐतबार से ऐसा बिल्कुल भी नहीं कहा जाना चाहिए कि पूरी कश्मीर घाटी ही भारत के खिलाफ है.

जितना यह सच है कि ‘नो न्यूज इज गुड न्यूज’, ठीक इसका उल्टा भी उतना ही सच है कि ‘गुड न्यूज इज नो न्यूज’. आजकल घाटी को लेकर हमारा मीडिया ‘गुड न्यूज इज नो न्यूज’ का अनुसरण कर रहा है, यानी बुरी खबर है तो खबर है और अच्छी खबर है तो वह खबर नहीं है.

इस तरह से कश्मीर की छवि विकृति होती जा रही है कि वहां सिर्फ पत्थरबाज ही हैं. जबकि, वहां लाखों ऐसे लोग हैं, जो आवाज उठाने से डर रहे हैं, क्योंकि सरकार उनको सुरक्षा नहीं दे पा रही है. हमारी सरकारें चाहें दिल्ली की हो या फिर जम्मू-कश्मीर की, वे सिर्फ एक ही एजेंडे पर चलती हैं- ‘कश्मीर हिंसा मसले के लिए सिर्फ कट्टरपंथियों से ही बात होगी, बाकी जो हैं वे तो अपने हैं ही.’

यह एक ऐसा एजेंडा है, जो कश्मीर में शांति की स्थापना के लिए ठीक नहीं है. कश्मीर में चुनी हुई पार्टियां हैं, चुने हुए विधायक हैं, लेकिन सरकारें इनसे बात ही नहीं करतीं. सिर्फ छंटे हुए बदमाशों के पीछे भागती रहती हैं और अपनी राजनीतिक दुकान चलाती रहती हैं. होना यह चाहिए कि इन छंटे हुए बदमाशों पर सख्ती की जाये, न कि इनसे बात करने की मंशा जाहिर कर उनका मान बढ़ाया जाये.

सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भारतीय लोकतंत्र प्रणाली के जो जनप्रतिनिधि हैं, उन्हीं की जुबान से कश्मीर बोले. इसलिए किसी भी बदमाश या कट्टरपंथी से बात करने की जरूरत नहीं है, बल्कि जनप्रतिनिधियों और अवाम से तालमेल बिठा कर अपनों से बात करने की जरूरत है कि किस तरह से राज्य में अमन-चैन लाया जाये.

बाकी जो पत्थर लेकर आ रहे हैं या बंदूक लेकर आ रहे हैं, उनके लिए पुलिस है, सेना है और अदालतें हैं- ये तीनों मिल कर कट्टरपंथियों से उनकी जुबान में बात करें. लेकिन, ऐसा बिल्कुल भी नहीं हो रहा है और सरकारें सिर्फ राजनीति कर रही हैं.

किसी भी लोकतांत्रिक देश में राज्य के लिए यह एक जरूरी शर्त है कि वह अपने नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करे. साथ ही, जो कोई बच्चा पत्थरबाजी कर रहा है, उसके लिए कानून का इस्तेमाल करे.

कश्मीर घाटी में भी यह तभी संभव हो सकेगा, जब सरकार अपने लोगों को और जनप्रतिनिधियों को महत्व देकर, उन्हें साथ लेकर चले. वहीं दूसरी बात यह है कि छोटे से छोटे अपराधी पर भी वह कार्रवाई की जाये, जो कानून कहता है, न कि इस पर सिर्फ राजनीति की जाये.

यह तो बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए कि सेना या पुलिस अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल कर किसी के साथ बुरा बरताव करें. लेकिन, जो सेना या पुलिस प्रशासन के कर्तव्य हैं, दायित्व हैं, उससे उन्हें जरा भी कतराना नहीं चाहिए. राज्य की जनता को भरोसे में लेने और उन्हें सुरक्षा प्रदान करने की दृष्टि से यह बेहद अहम है.

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