प्रभात खबर पॉलिटिक्स क्यों?
।। राजेंद्र तिवारी।। आज के प्रभात खबर के साथ 12 पेज का राजनीति केंद्रित परिशिष्ट ‘प्रभात खबर पॉलिटिक्स’ आपके सामने है. यह सवाल आपके दिमाग में भी उठ रहा होगा कि राजनीति केंद्रित परिशिष्ट क्यों? यह सवाल हमारे सामने भी था. इतने सारे अखबार, इतनी सारी पत्रिकाएं, फिर राजनीति केंद्रित यह परिशिष्ट क्यों? हमारा प्रस्थान […]
।। राजेंद्र तिवारी।।
आज के प्रभात खबर के साथ 12 पेज का राजनीति केंद्रित परिशिष्ट ‘प्रभात खबर पॉलिटिक्स’ आपके सामने है. यह सवाल आपके दिमाग में भी उठ रहा होगा कि राजनीति केंद्रित परिशिष्ट क्यों? यह सवाल हमारे सामने भी था. इतने सारे अखबार, इतनी सारी पत्रिकाएं, फिर राजनीति केंद्रित यह परिशिष्ट क्यों? हमारा प्रस्थान बिंदु यह बना कि राजनीति में जब समाज और देश की नियति की ताकत है, तो इस पर ज्यादा से ज्यादा फोकस करने की जरूरत है.
हम मानते हैं कि राजनीति में बेतरह क्षरण हुआ है. वह अपनी दिशा भटक गयी है. जन सरोकार की राजनीति अब बीते युग की बात लगती है. इसलिए राजनीति पर पूरे समाज में गंभीर विमर्श की जरूरत है. राजनीति को अछूत समझने से बात नहीं बनेगी. हमारे समय की गंभीर चुनौतियों के बारे में राजनीति और समाज को जानकरी से लैस होने का वक्त है.
सवा अरब की आबादी वाले इस देश की आधी से ज्यादा आबादी युवा है. रोजगार का सवाल है. राजनीतिक दलों के पास रोजगार मुहैया कराने का क्या है ब्लू प्रिंट? शिक्षा, स्वास्थ्य, कुपोषण, विषमता, पीने के पानी जैसे बुनियादी मसलों पर राजनीति सिर्फ बजट के आंकड़ों का हवाला भर न रह जाये. हम इन समस्याओं का हल चाहते हैं. बढ़ती आबादी के बारे में राजनीति क्यों मौन है? आबादी की रफ्तार अगर इसी तरह बढ़ती रही तो आने वाले दो-तीन दशक के बाद हमारे देश की क्या तसवीर होगी? इस पर हम क्यों नहीं सोचते? पर्यावरण के बारे में राजनीति के चौखट पर विमर्श क्यों नहीं होता? आजादी के बाद निश्चय ही हमने तरक्की की है. पर अब आगे क्या? मौजूदा राजनीति भविष्य की चुनौतियों का मुकाबला कर पाने में सक्षम होगी?
इसलिए राजनीतिक सूचनाएं दे देने भर से काम नहीं चलने वाला. मौजूदा राजनीति संकट से गुजर रही है. राजनीति सिर्फ सत्ता भोग, ग्लैमर, रु तबा हासिल करने और पावर प्राप्त करने तक सीमति हो गयी है. आज की राजनीति नेताओं को सर्वशक्तिमान समझने के झूठे अहंकार से भर देती है. वे कानून से खुद को बहुत ऊपर मानने लगते हैं. आज की राजनीति का यह एक संकट है. दूसरा, कहीं इससे बड़ा है. वह संकट है विचारों के लोप का. यह मूल या कहें तो बुनियादी संकट है. हमें-आपको ही यह तय करना होगा कि हमारी ताकत से ऊर्जा पा रही राजनीति किस राह चलेगी? सामाजिक तनाव, अलगाव, स्वार्थ और हिंसा की राह या ईमानदारी के साथ समरसता व समावेशी विकास की राह?
‘प्रभात खबर पॉलिटिक्स’ अपने पाठकों को इस भूमिका के लिये तैयार करने की दिशा में एक छोटा उपक्र म है. अब हर रविवार आपको अपने प्रिय अखबार के साथ 12 पेज का प्रभात खबर पॉलिटिक्स पढ़ने को मिला करेगा. इस परिशिष्ट पर अपनी राय, सुझाव या टिप्पणी हमें जरूर भेजें. इससे हमें इसे और धारदार बनाने में मदद मिलेगी.