सरेंडर पॉलिसी पर पुनर्विचार हो
नक्सली कुंदन पाहन का सरेंडर बवाल का विषय बन गया है. बात सीधी-सी है. अगर आपके किसी अपने या रिश्तेदार को मार दिया जाता है, तो क्या आप मारने वाले से कहेंगे कि आओ, हम तुम्हारा समर्पण कराते हैं और इनाम देते हैं? जाहिर है, हम ऐसी नासमझ नहीं करेंगे. भले हम मर ही क्यों […]
नक्सली कुंदन पाहन का सरेंडर बवाल का विषय बन गया है. बात सीधी-सी है. अगर आपके किसी अपने या रिश्तेदार को मार दिया जाता है, तो क्या आप मारने वाले से कहेंगे कि आओ, हम तुम्हारा समर्पण कराते हैं और इनाम देते हैं? जाहिर है, हम ऐसी नासमझ नहीं करेंगे.
भले हम मर ही क्यों न जायें. तो क्या जिसके रिश्तेदार या अपने लोग नक्सलियों द्वारा मारे गये हैं, वे कुंदन पाहन जैसे लोगों के आत्मसमर्पण को स्वीकार करेंगे? क्या उनको इससे इंसाफ मिल जायेगा? यह बहुत गंभीर मामला है. ऐसे में जो भी सरेंडर पॉलिसी है, उस पर सरकार को दोबारा सोचना चाहिए. सरेंडर को पुलिस की कामयाबी नहीं कह सकते. इससे बेरोजगार युवाओं में हताशा पैदा होगी.
पालूराम हेम्ब्रम, सालगझारी