वोट काम के लिए या लूट के लिए?

हमें शायद इस बात पर गर्व हो कि हमें वोट देने का अधिकार है. हमें इस बात पर भी गर्व हो कि हम अपने वोट के जरिये सरकार बदल सकते हैं. लोकतंत्र के नाम पर हमें पिछले छह दशकों से यह एहसास कराया जा रहा है कि हमारी भी इस देश में हैसियत है. हकीकत […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 19, 2014 5:36 AM

हमें शायद इस बात पर गर्व हो कि हमें वोट देने का अधिकार है. हमें इस बात पर भी गर्व हो कि हम अपने वोट के जरिये सरकार बदल सकते हैं. लोकतंत्र के नाम पर हमें पिछले छह दशकों से यह एहसास कराया जा रहा है कि हमारी भी इस देश में हैसियत है. हकीकत यह है कि हमें अब तक जानबूझकर एक मायावी दुनिया के मुगालतों में बंधक बना कर रखा गया है.

पांच साल में एक दिन हमारी आवभगत एक शहंशाह की तरह की जाती है. वोट देने के बाद शहंशाह के कपड़े उतार दिये जाते हैं. एक बार फिर से हमें बेबस और लाचार जिंदगी जीने के लिए किस्मत के भरोसे छोड़ दिया जाता है. लोकतंत्र के नाम पर चलने वाला यह दर्दनाक और बेरहम सीरियल कभी खत्म नहीं होता. हां, हर पांच साल में इसके निर्माता, निर्देशक और फनकार बदल जाते हैं. अवाम की रु लाई-धुनाई बदस्तूर जारी रहती है.

सतीश कुमार, रांची

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