प्रभात खबर में प्रकाशित एक लेख में प्रसिद्ध इतिहासकार रामचंद्र गुहा का अनुमान है कि अगले पांच-दस वर्षो में कांग्रेस पार्टी भारत की राजनीति से विलुप्त हो जायेगी. भाजपा सहित अन्य विपक्षी पार्टियों के आला नेता भी देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेसमुक्त भारत की ही बात कर रहे हैं. आज परिस्थितियां भी ऐसी बनी हैं कि लगता है कांग्रेस पार्टी सचमुच इस देश से उखड़ जायेगी.
लेकिन क्या वाकई एक पार्टी के रूप में कांग्रेस का खात्मा संभव है? राहुल गांधी की मानें तो कांग्रेस एक पार्टी नहीं बल्कि विचारधारा है, जिसे शायद ही कोई खत्म कर सके! ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी अगर देखें, तो कांग्रेस गुलामी की चादर ओढ़े भारतीयों को उनके अधिकारों के प्रति सजग करने एवं उनकी सहज अभिव्यक्ति का आरंभिक मंच थी, जिसका कारवां 1885 में शुरू होकर बढ़ता ही चला गया और आजादी के बाद तो जैसे इसने लंबे कालखंड के लिए सत्ता का स्वत्वाधिकार ही हासिल कर लिया. नेहरू से लेकर इंदिरा, राजीव और फिर सोनिया ने मानो कांग्रेस को सत्ता की धुरी और सियासत की पाठशाला बनाये रखा.
आज कांग्रेस नाजुक दौर में है, क्योंकि कांग्रेस के भ्रष्टाचार और महंगाई की भरपाई के लिए लाये गये तमाम अधिनियमों और बेहतरीन कल्याणकारी योजनाओं पर एंटी इनकंबैंसी भारी पड़ गयी है. ऐसी स्थितियां पूर्व में भी बन चुकी हैं, जब 1977, 1989 तथा 1996 में कांग्रेस को सत्ता से बाहर होना पड़ा. लेकिन हर बार इसने जोरदार वापसी की, क्योंकि देश के बहुसंख्य लोगों ने नेतृत्वहीन-दिशाहीन गैरकांग्रेसी विकल्प और तात्कालिक अराजकता से उबरने के लिए पुन: कांग्रेस पर ही भरोसा किया. कांग्रेस देश के डीएनए में है, यह कड़वी सच्चाई है जिससे मुंह नहीं फेरा जा सकता.
रवींद्र पाठक, जमशेदपुर