सच्चे गांधीवादी ऐसे तो नहीं होते!

अखिलेश सिंह प्रभात खबर, कोलकाता ‘कहा सबने, किया ममता ने’-बोले अन्ना, सुना सबने. ममता बनर्जी की सादगी पर कुर्बान दिखे समाजसेवी अन्ना हजारे. हर कोई हैरत में था कि अन्ना इतना सपोर्ट क्यों कर रहे हैं ममता को. अखबार हो या टीवी, सब जगह साथ-साथ दिखीं दोनों की तसवीरें. इस बीच खबर आयी कि अन्ना […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 19, 2014 5:44 AM

अखिलेश सिंह

प्रभात खबर, कोलकाता

‘कहा सबने, किया ममता ने’-बोले अन्ना, सुना सबने. ममता बनर्जी की सादगी पर कुर्बान दिखे समाजसेवी अन्ना हजारे. हर कोई हैरत में था कि अन्ना इतना सपोर्ट क्यों कर रहे हैं ममता को. अखबार हो या टीवी, सब जगह साथ-साथ दिखीं दोनों की तसवीरें. इस बीच खबर आयी कि अन्ना ममता के चुनावी मंच से भी लोगों को संबोधित करेंगे. तृणमूल के नेताओं ने अन्ना के स्नेह से अभिभूत हो दिल्ली में साझा सभा करने के लिए डेरा डाल दिया. अन्ना आंदोलन से देशभर में मशहूर हो चुके रामलीला मैदान में मंच बना.

हजारों की तादाद में आगंतुकों के लिए कुर्सियां भी जुटायी गयीं. पर न लोग आये, न अन्ना. मामला टायं टायं फिस्स हो गया तो ममता और अन्ना दोनों इस चुनावी सभा से पल्ला झाड़ते नजर आ रहे हैं. तरह-तरह की कहानियां गढ़ी जा रही हैं. पर ये पब्लिक है जो सब जानती है. दोनों एक दूसरे के बारे में खुशफहमी के शिकार हो गये. अन्ना सोच रहे होंगे कि ममता को सुनने के लिए बंगाल में लाखों की भीड़ जुटती है, तो दिल्ली में भी जुटान ठीकठाक ही रहेगा. वहीं ममता सोच रही होंगी कि अन्ना हजारे को कौन नहीं जानता, देश के कोने-कोने में इनकी ख्याति है, इन्हें सुनने के लिए तो लाखों की तादाद में लोग जुटेंगे ही.

दोनों ने भीड़ का जिम्मा एक-दूसरे के भरोसे छोड़ दिया. लेकिन भीड़ ने मानो इनको सबक सिखाने की ठान ली थी. सभा में खाली मैदान देख कर अन्ना बंद कमरे से बाहर ही नहीं निकले. पर अन्ना के इस फैसले से देशभर में एक नयी बहस छिड़ गयी है कि ये कैसे गांधी हैं? लोकपाल बिल को लेकर जब वह दिल्ली के रामलीला मैदान में अनशन कर रहे थे, तो वहां लाखों की तादाद में समर्थक जुट रहे थे. इस समर्थन से अन्ना अभिभूत थे, तो दूसरी तरफ केंद्र सरकार डर गयी थी. भ्रष्टाचार व लोकपाल के मुद्दे पर आंदोलन ने इस कदर जोर पकड़ा था कि पूरे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठने लगी थी.

अन्ना समर्थक देश के कोने-कोने में सड़कों पर उतर कर विरोध प्रदर्शन करने लगे थे. तब यह नारा जोरों पर था ‘अन्ना नहीं, आंधी है, देश के दूसरे गांधी हैं.’ अन्ना की सादगी भी लोगों को खूब प्रभावित कर रही थी. आम आदमी अन्ना के समर्थन में सामने आने लगा था. पर हाल में दिल्ली के रामलीला मैदान में जो हुआ, उससे अन्ना की छवि और धूमिल हुई है. देश में गांधी के नाम से मशहूर मोहनदास करमचंद गांधी थे कि वे जो ठान लेते थे, उससे पीछे नहीं हटते थे. जिधर निकल पड़ते थे उधर लोगों की भीड़ पीछे हो लेती थी. एक ये आधुनिक जमाने के गांधी अन्ना हजारे हैं कि सभा में लोग नहीं जुटते हैं, तो वे सभा में जाने से इनकार कर देते हैं. हमारे गांधी तो ऐसे नहीं थे. वह तो सत्य और इंसाफ की लड़ाई में किसी का साथ नहीं खोजते थे. वह आत्मशुद्धि के लिए अनशन करते थे. बिना कोई हल्ला मचाये. सच्च गांधीवादी वही है जो सत्य और धर्म के मार्ग पर अकेला भी चल सके.

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