और नहीं, बस और नहीं!
पिछले दिनों खबर आयी कि एक महिला ने अपनी पांच साल की बेटी के साथ दुष्कर्म करने वाले व्यक्ति को रॉड से पीट कर मार डाला. हम जानते हैं कि आत्मरक्षा के लिए की गयी हत्या कानून की निगाह में जुर्म नहीं है. जाहिर सी बात है कि पांच साल की बच्ची आत्मरक्षा नहीं कर […]
पिछले दिनों खबर आयी कि एक महिला ने अपनी पांच साल की बेटी के साथ दुष्कर्म करने वाले व्यक्ति को रॉड से पीट कर मार डाला. हम जानते हैं कि आत्मरक्षा के लिए की गयी हत्या कानून की निगाह में जुर्म नहीं है. जाहिर सी बात है कि पांच साल की बच्ची आत्मरक्षा नहीं कर सकती है. अत: उसकी मां ने जो किया वह अपने ही जिस्म के अंश की रक्षा के लिए किया. इसलिए वह आत्मरक्षा है, गुनाह बिलकुल नहीं.
मैं कानून की विशेषज्ञ नहीं हूं, लेकिन ऐसी साहसी महिलाओं की रक्षा कर पाने के लिए अगर कानून की किताब में कोई प्रावधान नहीं है, तो यह खामी है और इसमें संशोधन होना चाहिए. न्यायपालिका से अनुरोध है कि इस महिला को अविलंब जेल से निकाला जाये और महिला स्वयंसेवी संस्थाओं से आग्रह है कि इस महिला को भारतीय नारियों का आदर्श मान कर पुरस्कृत किया जाये.
डॉ उषा किरण, रांची