भारत विश्वगुरु था, है और रहेगा

एक तरफ आधुनिक विज्ञान जो आज भी कई रहस्यों को समझने से लाचार है, तो दूसरी तरफ भारतीय ज्ञान-विज्ञान, ज्योतिष, वास्तु, अध्यात्म, दर्शन, खगोल विद्या की उत्पत्ति एवं प्रारंभिक छोर ढूंढ़ना खुद एक रहस्य है. राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, गांधी की धरती पावन है. चरक, सुश्रुत, आर्यभट्ट के ज्ञान के आगे सारे संसार के वैज्ञानिक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 20, 2014 5:52 AM

एक तरफ आधुनिक विज्ञान जो आज भी कई रहस्यों को समझने से लाचार है, तो दूसरी तरफ भारतीय ज्ञान-विज्ञान, ज्योतिष, वास्तु, अध्यात्म, दर्शन, खगोल विद्या की उत्पत्ति एवं प्रारंभिक छोर ढूंढ़ना खुद एक रहस्य है. राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, गांधी की धरती पावन है. चरक, सुश्रुत, आर्यभट्ट के ज्ञान के आगे सारे संसार के वैज्ञानिक नतमस्तक हैं. अगर भारत शून्य न देता, तो दाशमिक प्रणाली, गणितीय संक्रियाओं से लेकर कंप्यूटर के बाइनरी सिस्टम तक तमाम गणितीय प्रणालियों का विकास नामुमकिन था.

कौन नहीं जानता कि सिंधु घाटी की संस्कृति और ज्ञान सर्वाधिक विकसित थे. भारत का वैदिक धर्म सूर्य से भी अधिक प्रकाशमान था. जब यूरोप अंधकार युग में भटक रहा था, तब मध्यकालीन भारत में भक्ति और सूफी आंदोलनों ने मानव प्रेम की शिक्षा दी. जब भारत में विक्रमशिला, तक्षशिला, नालंदा जैसे विश्वविद्यालय पूरी धरती के ज्ञानियों को शिक्षा दे रहे थे, तब यूरोप व चीन में बर्बर जातियों के अतिरिक्त कुछ नहीं था. जब भारत में ताजमहल, लालकिला, कुतुबमीनार बनाये जा रहे थे, तब यूरोप में भुखमरी थी और जई-ओट के इलावा कुछ भी नहीं था.

रहीम, कबीर, तुलसीदास ने संसार को संबोधित करके ज्ञान बिखेरा. आधुनिक विश्व ने संसार को भौतिक विलासिता दी, महिलाओं का बाजारीकरण किया. सरहदें बनायीं. दो विश्व युद्ध दिये. पूंजीवाद, साम्यवाद जैसे भयावह दर्शन दिये, जिससे मानव जीवन कराह रहा है. भारत ने गुटनिरपेक्ष नीति, पंचशील नीति, समाजवाद का प्रायोगिक दर्शन दिया. भारत शुरू से ही विश्वगुरु था, है और रहेगा. हमें भारत को न अमेरिका बनने देना है, न यूरोप. भारत खुद में पूर्ण है. हमें इसके इतिहास, सरहद और ज्ञान-दर्शन की रक्षा करनी है.

मो असलम जिया, पलामू

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