जीएम सरसों और प्रकृति का संतुलन

हाल के दिनों में जीइएसी द्वारा जीएम सरसों की वाणिज्यिक खेती की सिफारिश देशभर में चर्चा का विषय बनीं. वैज्ञानिक इसे लाभकारी मान रहा है, वहीं कई राजनैतिक दलों और गैर-सरकारी संगठनों ने इस सिफारिश पर सवाल उठाये हैं. जीएम तकनीक के विरोध में कई पर्यावरणविज्ञानी और वैज्ञानिक भी शामिल हैं. सरसों का उपयोग न […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 31, 2017 6:16 AM
हाल के दिनों में जीइएसी द्वारा जीएम सरसों की वाणिज्यिक खेती की सिफारिश देशभर में चर्चा का विषय बनीं. वैज्ञानिक इसे लाभकारी मान रहा है, वहीं कई राजनैतिक दलों और गैर-सरकारी संगठनों ने इस सिफारिश पर सवाल उठाये हैं. जीएम तकनीक के विरोध में कई पर्यावरणविज्ञानी और वैज्ञानिक भी शामिल हैं. सरसों का उपयोग न सिर्फ खाने में होता है बल्कि आयुर्वेद की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है. मसाले के रूप में भी इसके बीजों का प्रयोग होता है.
भारत में जीएम सरसों की खेती के प्रयोग ऐसा कदम होगा जो न सिर्फ हमारे परंपरागत बीजों को समाप्त करेगा बल्कि हमारे पारिस्थितिक तंत्र पर भी प्रतिकूल असर डालेगा. बेहतर होगा कि लाभ को ही ध्यान में न रखा जाए बल्कि संतुलित और सतत विकास वाली कृषि व्यवस्था को प्राथमिकता मिले.
संदीप भट्ट, खंडवा

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