लालमलाल तरबूज चाहिए
मनोज श्रीवास्तव स्वतंत्र टिप्पणीकार तरबूज बेचनेवाले बरसों से शोषित हो रहे हैं, पर उनकी कोई सुननेवाला नहीं. लाल निकलेगा तो ही खरीदेंगे, नहीं तो कटा हुआ तरबूज वापस. अब कटा हुआ तरबूज कौन खरीदेगा, तो उसे गरीब तरबूज वाले के बच्चों को खाना है. कम लाल तरबूज कोई खाने को तैयार नहीं, सभी को एकदम […]
मनोज श्रीवास्तव
स्वतंत्र टिप्पणीकार
तरबूज बेचनेवाले बरसों से शोषित हो रहे हैं, पर उनकी कोई सुननेवाला नहीं. लाल निकलेगा तो ही खरीदेंगे, नहीं तो कटा हुआ तरबूज वापस. अब कटा हुआ तरबूज कौन खरीदेगा, तो उसे गरीब तरबूज वाले के बच्चों को खाना है. कम लाल तरबूज कोई खाने को तैयार नहीं, सभी को एकदम लालमलाल तरबूज चाहिए. कम लाल तरबूज घाटे का सौदा है, जो तरबूज वाले की किस्मत में छोड़ दिया जाता है.
तरबूज वाले के पास कोई ऑप्शन नहीं है, उसे तरबूज बगैर चॉक लगाये खरीदना है और बेचने की शर्त है कि तरबूज लाल निकलना चाहिए. बहुत नाइंसाफी है, वह बेचारा प्रत्येक तरबूज को चॉक लगाने के पहले सांस रोक कर ऊपर वाले को याद करता है. लाल ही निकलना नहीं तो रोटी के लाले पड़ जायेंगे, आखिर उसे भी अपने लाल-गोपाल की चिंता है. लेकिन, हमें किसी के लाल-गोपाल की क्या चिंता.
हमारा तरबूज लाल होना चाहिए. दूसरे का लाल भूखों मरे वह उसकी किस्मत, हमारी किस्मत में तो लाल तरबूज ही चाहिए.
जब भी तरबूज वाले के पास पहुंचे कि दिल बच्चों की तरह जिद पर अड़ जाता है; लाल ही निकलना चाहिए. अब तरबूज वाला कभी हमें और कभी ऊपर आसमान को देखता है. हे ऊपर वाले इन तरबूज को अंदर से लाल की जगह सफेद बना देता, तो तेरा क्या जाता; ये रोज-रोज के झंझट से तो मुक्ति मिलती. उसका दिल तो करता है कि ग्राहक के मुंह पर ही तरबूज मार पूछे, ‘मैं क्या इसके अंदर घुस कर खरीद लाया हूं, जो बता दूं कि तरबूज लाल ही निकलेगा.’ पर गरीब को इतनी बात कहने कौन देगा और न ही कोई उससे गैरत सीखना चाहेगा. गैरत भी अगर सड़क छाप से सीखना पड़े, तो ऐसी गैरत भी हराम. जीवन चाहे गर्त बनता रहे तो बने, कोई फर्क नहीं, पर गरीब से सीख कर गैरतमंद बनना मंजूर नहीं.
तरबूज का धंधा बहुत रिस्की है. और इसी कारण तरबूज बेचनेवालों का शोषण होता आ रहा है, लेकिन कोई उनके लिए आवाज उठानेवाला नहीं है. अब कौन आगे आये? जब आवाज उठानेवाले खुद ही चॉक लगवा कर तरबूज खरीद रहे हैं, तो बेचारे तरबूज वाले किधर जायें? जज-वकील, समाजसेवी, मानवाधिकार के पुरोधा, सरकारी अफसर, नेता इत्यादि सभी को लालमलाल तरबूज चाहिए. इसलिए तरबूज वाले बेबस हैं और चॉक लगा कर तरबूज बेच रहे हैं.
शायद कभी इनके भी दिन फिरे और चॉक लगा कर तरबूज चेक करवाने की प्रथा को सरकार बंद कराये या न्यायालय में कोई सुधिजन इनके लिए याचिका दायर करे कि तरबूज लाल निकले या सफेद इसमें तरबूज बेचनेवाले का दोष नहीं माना जायेगा और तरबूज को खरीदने के पहले चॉक नहीं कराया जायेगा.