सामाजिक बदलाव जरूरी

दहेज बेहद घातक सामाजिक कुप्रथा है. एक तरफ बेटियों को शिक्षा से जोड़ने एवं उन्हें आत्मनिर्भर बनाना का प्रयास चल रहा है, वहीं दूसरी तरफ दहेज मांगा जा रहा है. गरीब परिवार भी इससे मुक्त नहीं है. ऐसी स्थिति में सामाजिक बदलाव युवा वर्ग ही ला सकता है़ देश में शिक्षा का स्तर तो अवश्य […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 5, 2017 5:59 AM
दहेज बेहद घातक सामाजिक कुप्रथा है. एक तरफ बेटियों को शिक्षा से जोड़ने एवं उन्हें आत्मनिर्भर बनाना का प्रयास चल रहा है, वहीं दूसरी तरफ दहेज मांगा जा रहा है. गरीब परिवार भी इससे मुक्त नहीं है. ऐसी स्थिति में सामाजिक बदलाव युवा वर्ग ही ला सकता है़ देश में शिक्षा का स्तर तो अवश्य बढ़ा है, लेकिन सामाजिक कुरीतियों में कमी नहीं आयी है.
दुष्कर्म और यौन उत्पीड़न की घटनाएं भी थम नहीं रहीं. कई मामलों में तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमें शर्मसार होना पड़ा है और यह सिलसिला जारी है. कैसे बदलेगा हमारा देश? कैसे खत्म होंगे ये सामाजिक अत्याचार? कैसे बढ़ेंगी हमारी बच्चियां? जरा सोचिए! केवल दूसरों को न कोसें! एक सुदृड़ शुरुआत करें, अपने आप से.
रक्षित परमार, इमेल से.

Next Article

Exit mobile version