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सकारात्मक विपक्ष के रूप में काम करे आप

Aam Aadmi Party : आप के नेताओं का चरित्र अराजकता से भरा है. ये अपनी नयी इबारत गढ़ने की कोशिशें करते हैं. इन्हें समझना होगा कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में विपक्ष की भूमिका कई तरह से महत्वपूर्ण होती है. विपक्ष सरकार की नीतियों और कार्यों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करता है, कमियां उजागर करता है और बेहतर विकल्प सुझाता है.

Aam Aadmi Party : आम आदमी पार्टी अपने जन्म के बाद से पहली बार विपक्ष की भमिका में नजर आयेगी. दिल्ली में आप की सरकार अरविंद केजरीवाल और फिर कुछ महीने तक आतिशी की सदारत में चली. हालिया दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप को दिल्ली की जनता ने नकार दिया. ऐसे में, उसे विपक्ष में बैठना होगा. आप की पंजाब में भी सरकार है. अब आप को सीखना होगा कि विपक्ष में रहकर किस तरह काम किया जाता है. सरकार चलाना जितना अहम है, विपक्ष में रहकर काम करना उससे कम अहम नहीं.


आप के नेताओं का चरित्र अराजकता से भरा है. ये अपनी नयी इबारत गढ़ने की कोशिशें करते हैं. इन्हें समझना होगा कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में विपक्ष की भूमिका कई तरह से महत्वपूर्ण होती है. विपक्ष सरकार की नीतियों और कार्यों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करता है, कमियां उजागर करता है और बेहतर विकल्प सुझाता है. इसके साथ ही विपक्ष जनता के मुद्दों, शिकायतों और आकांक्षाओं को सरकार के सामने रखता है, ताकि सरकार उन पर ध्यान दे और उचित कदम उठाये. अरविंद केजरीवाल और आप के बाकी शिखर नेताओं को दिल्ली के 22 विजयी विधायकों को समझाना होगा कि विपक्ष में रहते हुए वे सरकार के काम पर नजर रखें और जरूरत पड़ने पर सरकार को जनता के हित में नीतियां बनाने के सुझाव दें. दिल्ली विधानसभा का सत्र कुछ समय बाद शुरू होगा.

तब आप के विधायकों पर दिल्ली और देश की निगाहें रहेंगी कि वे किस तरह सदन में महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस में भाग लेते हैं, जिससे नीतियों और कानूनों को बेहतर बनाने में मदद मिलती है. आप के विधायकों को समझना होगा कि चुनाव हो चुके हैं और सरकार भाजपा की बन रही है. अब उन्हें जिम्मेदार विपक्ष के रूप में काम करना होगा. विपक्ष सरकार के सामने एक वैकल्पिक दृष्टिकोण और नीतियां प्रदान करता है, जिससे लोगों को चुनाव के समय बेहतर विकल्प चुनने में मदद मिलती है. आप की सरकार ने 10 साल के अपने दो कार्यकालों में विपक्षी सदस्यों को कभी उनके अधिकार कायदे से नहीं दिये. यह हालत तब थी, जब 2014 में दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के सिर्फ तीन विधायक थे और 2019 में मात्र आठ. दिल्ली विधानसभा में गुजरे दौर में मीर मुश्ताक अहमद, जग प्रवेश चंद्र, राम वीर सिंह विधूड़ी, विजेंद्र गुप्ता जैसे विपक्षी नेताओं ने शानदार काम किया है. ये सरकार के साथ तालमेल बिठाकर रखते थे. जग प्रवेश चंद्र कहते थे कि एक मजबूत और सक्रिय विपक्ष लोकतंत्र के लिए आवश्यक है, क्योंकि यह सरकार को जवाबदेह बनाता है और जनता के हितों की रक्षा करता है. वह कांग्रेस के दिग्गज नेता थे.


विपक्ष सरकार की नीतियों और कार्यों का विश्लेषण करता है, उनकी कमियां उजागर करता है, और जनता को उनके संभावित नकारात्मक प्रभावों के बारे में सूचित करता है. हमने देखा है कि दिल्ली विधानसभा में अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और कई दूसरे नेता प्रधानमंत्री पर अनाप-शनाप टिप्पणियां करते थे. देश में वैकल्पिक राजनीति की शुरुआत करने वाले केजरीवाल ने दिल्ली वालों को अपनी हरकतों से लगातार निराश किया. दिल्ली की सियासत में अराजकता लाने का श्रेय आप को ही जाता है. किसी ने सोचा नहीं था कि केजरीवाल और उनके साथी इतने अहंकारी हो जायेंगे. लोकतंत्र में किसी नेता का अहंकारी होना स्वीकार नहीं किया जा सकता. लोकतंत्र में नेताओं को जनता के प्रति जवाबदेह होना चाहिए और उनकी जरूरतें पूरी करने का प्रयास करना चाहिए. अहंकारी नेता तो अक्सर जनता की राय को नजरअंदाज करते हैं, जिससे लोकतंत्र कमजोर होता है. अफसोस कि आप के कुछ नेताओं में अहंकार की भावना आ गयी थी. उन्हें लगने लगा था कि वे विशेष और दूसरों से बेहतर हैं. केजरीवाल बार-बार कहने लगे थे कि मोदी जी समझ लें कि वे इस जन्म में तो आप को हरा नहीं सकते.


आप के साथ एक दिक्कत यह भी हुई कि वहां सब कुछ केजरीवाल के इर्द-गिर्द ही चलता रहा. आप के भीतर लोकतंत्र नाम की कोई चीज नहीं है. वह अपनी आलोचना नहीं सुनते थे. आप की राजनीति में अराजकता तो शुरू से ही देखी जा रही थी. हद तो तब हो गयी, जब दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश की मुख्यमंत्री ने अपने निजी सहायक द्वारा सरकारी आवास बुलाकर गुंडे किस्म के हिस्ट्रीशीटर विधायकों द्वारा लात- घूंसों से पिटाई करवा दी. ऐसा शर्मनाक वाकया पहले कभी नहीं सुना कि किसी मुख्यमंत्री के आवास पर किसी वरिष्ठ आइएएस अफसर को बुला कर पिटवाया गया हो. पूरे देश में आप की छवि नकारात्मक राजनीति करने वाली पार्टी के रूप में बनी. केजरीवाल ने भारतीय सेना द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक तक पर सवालिया निशान खड़े किये. वे भूल गये कि देश अपने शूरवीरों को लेकर सियासत नहीं करता. उन्होंने बटला कांड को फेक एनकाउंटर कहा. इस बार दिल्ली की जनता ने उन्हें जमीन पर लाकर खड़ा कर दिया. केजरीवाल और उनके कई करीबी साथियों को हरा दिया. लंबा सत्ता सुख भोगने के बाद अब उन्हें सकारात्मक विपक्ष की भूमिका निभानी होगी. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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