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केजरीवाल के भरोसे आम आदमी पार्टी, पढ़ें प्रभु चावला का यह विशेष आलेख

Arvind Kejriwal : नफरत विडंबना के साथ जुड़ती है- मोदी और केजरीवाल अपनी पार्टियों के लिए अकेले जनसमूह जुटाने वाले और वोट खींचने वाले नेता हैं. अन्ना हजारे को खोजने के बाद केजरीवाल की राजनीतिक खोज खुद को खोजने की थी.

Arvind Kejriwal : . एक राजनेता की पहचान उसकी विचारधारा होती है. ऐसा विरले ही होता है कि कोई ऐसा अभेद्य व्यक्ति आता है, जिसकी एकमात्र विचारधारा वह स्वयं होता है. अरविंद केजरीवाल ऐसी ही एक परिघटना हैं- विचारधारा के बिना नेता, अल्कोहल के बिना व्हिस्की. हालांकि जिस राजनीतिक कॉकटेल के कारण उन्हें जेल जाना पड़ा, उसका खुमार अब उतरता दिख रहा है और वे अपनी बड़ी वापसी की रणनीति बना रहे हैं. उन्होंने आतिशी को अपने भरोसेमंद प्रशिक्षु के रूप में मुख्यमंत्री बनाया है और अपने पुराने मंच पर वापस आ गये हैं, नरेंद्र मोदी और कांग्रेस के विरुद्ध आक्रामकता के साथ.

मोदी – केजरीवाल अपनी पार्टियों के लिए अकेले वोट खींचने वाले नेता

नफरत विडंबना के साथ जुड़ती है- मोदी और केजरीवाल अपनी पार्टियों के लिए अकेले जनसमूह जुटाने वाले और वोट खींचने वाले नेता हैं. अन्ना हजारे को खोजने के बाद केजरीवाल की राजनीतिक खोज खुद को खोजने की थी. जाहिर तौर पर उन्हें जो मिला, वह पसंद आया क्योंकि वहां केजरीवाल के अलावा और कुछ नहीं था- पीड़ित होने के बारे में ऐतिहासिक महिमा, ईमानदारी की पताका फहराना, और नव स्वतंत्रता सेनानी की टोपी पहनना. उन्होंने सब कुछ अपनाया और एक चुनावी गुलदस्ता बना दिया.

केजरीवाल समर्थकों का एक नया वर्ग आया

दिल्ली को मल्टी-ट्रिलियन अर्थव्यवस्था बनाने की बात नहीं, एआई और प्रौद्योगिकी के बारे में कोई बात नहीं, बल्कि केजरीवाल आत्म-पहचान के उपदेश का उपयोग कर एक सामूहिक अनुबंध की मांग करते हैं- एक ऐसा नेता चुनें, जो आपके जैसा रहता है, खाता है, सांस लेता है और कपड़े पहनता है. आप में से एक को अपने लिये चुनें. वर्ष 2014 में नयी शैली के मोदी समर्थकों के आने के बाद, केजरीवाल समर्थकों का एक नया वर्ग आया है, जो जातियों और समुदायों से परे है. समर्थकों की यह सेना दिल्ली के दो बार और पंजाब में एक बार मोदी मशीन को धूल चटा चुकी है. वादों की बात है, तो केजरीवाद लोकलुभावनवाद की विचारधारा है. उसकी गांधीवाद, मार्क्सवाद, समाजवाद या पूंजीवाद जैसी कोई निश्चित रूपरेखा नहीं है. केजरीवाल शायद पहले भारतीय नेता हैं, जिन्होंने नौसिखियों की एक पार्टी बनायी, जिसने बदलाव और काम करने वाली सरकार की बात कर जीत हासिल की. केजरीनामा मुफ्त बिजली, पानी, किफायती जन स्वास्थ्य सेवा और विश्वस्तरीय सार्वजनिक शिक्षा के बारे में है.

पक्के हिंदू हैं केजरीवाल

धार्मिक मोर्चे पर, वे एक पक्के हिंदू हैं, जो नियमित रूप से हनुमान मंदिर जाते हैं, भले ही वह धर्मनिरपेक्ष हिंदू होने का दावा करते हों. आप स्वयंसेवकों का एक समूह है, जिसे उन्होंने बहुत समय में ड्रैगन के दांतों की तरह बोया है. ये लोग दिल्ली की झुग्गियों, बस्तियों और अल्पसंख्यक बस्तियों में बहुतायत में हैं. लेकिन जो बात उन्हें भाजपा और कांग्रेस के पारंपरिक मतदाताओं से अलग बनाती है, वह राष्ट्रीय पार्टियों द्वारा धोखा दिये जाने की उनकी भावना है. चूंकि उनकी बस्तियों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है, इसलिए वे बेहतर सेवाओं और किफायती पानी, बिजली और चिकित्सा की इच्छा करते हैं.

केजरीवाल परीक्षा में पास हो गये

सभी ऐतिहासिक लोकलुभावन आंदोलनों की तरह उनका नेतृत्व युवा और तुलनात्मक रूप से अभिजन है. जेल इंसान की परीक्षा लेती है. केजरीवाल इस परीक्षा में पास हो गये. अब वे खुद से परे एक सुपर-केजरीवाल बनने की कोशिश में हैं, जो खुद को केवल विधानसभा चुनाव तक ही सीमित नहीं रखना चाहते, बल्कि विकल्पों के राष्ट्रीय खेल में शामिल होना चाहते हैं, जहां लोकसभा चुनाव व्यक्ति-आधारित हो गये हैं. पिछले 12 वर्षों से, उनका सुविचारित जुनून सुर्खियां बटोरने और राष्ट्रीय आख्यान को प्रभावित करने का रहा है. साल 2014 से 2018 तक मोदी उनका निशाना थे, जिन्हें उन्होंने मनोरोगी कहा और स्वयं को स्वप्न विक्रेता के रूप में प्रस्तुत किया. दिल्ली जीतने के बाद उन्होंने अपने पदचिह्न का विस्तार किया और वे राज्यों तक पहुंचे, जहां उनकी छाया तो पड़ी थी, पर कदम नहीं.

केजरीवाल को नजरअंदाज नहीं कर सकते

उन्हें यह समझ में आया है कि उनके क्षेत्र के बाहर लोकप्रियता और स्वीकार्यता का परीक्षण करने का समय आ गया है. दस वर्षों में आप ने कर्नाटक, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, उत्तराखंड, पंजाब, उत्तर प्रदेश और कुछ पूर्वोत्तर राज्यों सहित 15 राज्यों में विधानसभा और निकाय चुनाव लड़े. अधिकांश में खाता नहीं खुला, पर केजरीवाल ने यह साबित किया कि ‘आप मुझे हरा सकते हैं, पर नजरअंदाज नहीं कर सकते.’ पंजाब दिल्ली के प्रति उदासीन रहता था, पर 2022 में आप ने बड़े बहुमत से जीतकर और कांग्रेस सरकार को बाहर कर रिकॉर्ड बनाया और अकालियों और भाजपा को गुमनामी में धकेल दिया. कांग्रेस के अलावा आप अकेली विपक्षी पार्टी है, जो दो राज्यों पर शासन करती है और दो स्थानीय निकायों को नियंत्रित करती है. आप को राष्ट्रीय पार्टी बनाने का केजरीवाल का मुख्य उद्देश्य 2023 में पूरा हो गया. ऐसी उपलब्धि किसी स्थानीय नेता द्वारा शुरू की गयी किसी पार्टी ने आजादी के बाद से हासिल नहीं की है. अन्य छोटी पार्टियों की तरह आप के पास भौगोलिक रूप से सीमांकित जागीरें नहीं हैं. दिग्गजों के कई क्षेत्रीय संगठन उससे बाहर नहीं पहुंच सके हैं, पर सर्वेक्षणों में केजरीवाल को मोदी और राहुल गांधी के बाद तीसरा सबसे लोकप्रिय नेता बताया गया है.

केजरीवाल के करिश्मे के रहस्य से पर्दा नहीं उठ सका

एक दशक बाद भी केजरीवाल के करिश्मे के रहस्य से पर्दा नहीं उठ सका है. उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा, ‘हम आम आदमी हैं. अगर हमें अपना समाधान लेफ्ट से मिलता है, तो हम वहां से लेने में खुश हैं. अगर समाधान राइट से मिलता है, तो हम उसे वहां से भी लेने में खुश हैं.’ केजरीवाल पार्टी की मूल विचारधारा के तीन स्तंभों को रेखांकित करते हैं- कट्टर देशभक्ति, कट्टर ईमानदारी और मानवता. इसमें उन्होंने अनेक उदारवादी आकांक्षाओं को भी शामिल किया है. केजरीवाल जानते हैं कि शीर्ष तक पहुंचने का रास्ता महत्वाकांक्षाओं का ट्रैफिक जाम है. इसलिए वे इंडिया गठबंधन के साथ राष्ट्रीय चुनावी राजमार्ग पर चल रहे हैं, ताकि वे चालक की सीट के करीब बने रहें. उन्होंने दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस द्वारा खाली की गयी राजनीतिक जगह पर कब्जा किया है. वे कई क्षेत्रीय पार्टियों के लिए खतरा हैं. उनके मतदाता और समर्थक बेहतर सार्वजनिक सेवाएं चाहते हैं, जबकि वे राष्ट्रीय स्तर पर अपनी उपस्थिति बेहतर बनाना चाहते हैं. केजरीवाल की राजनीतिक शैली में नव समाजवाद के अलावा तीन चीजें मायने रखती हैं- केजरीवाल, केजरीवालवाद और केजरीवाल समर्थक.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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