बढ़ता कृषि निर्यात
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में केवल कृषि में बढ़ोतरी हुई है. निर्यात में उछाल के आंकड़े बताते हैं कि हमारे किसान बेहतर उत्पादन की क्षमता रखते हैं.
इस वर्ष अप्रैल से सितंबर के बीच कृषि उत्पादों के निर्यात में बीते साल इसी अवधि की तुलना में 43 प्रतिशत की बढ़ोतरी संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था के लिए बहुत संतोषजनक समाचार है. पिछले साल इन छह महीनों में 37,397 करोड़ मूल्य के उत्पादों का निर्यात हुआ था, जबकि इस साल यह राशि 53,626 करोड़ रही है. इसका एक उल्लेखनीय पहलू यह भी है कि कृषि क्षेत्र में आयात-निर्यात का संतुलन भी अब प्रभावी रूप से भारत के पक्ष में है. यह उपलब्धि इसलिए भी विशिष्ट है क्योंकि मार्च के अंतिम सप्ताह से कई महीनों तक लॉकडाउन लागू रहा था और कारोबारी गतिविधियों में ठहराव आ गया था. माना जा रहा है कि वर्तमान वित्त वर्ष के शेष भाग में भी बढ़त का रुझान बना रहेगा.
कोरोना महामारी के संक्रमण को रोकने के लिए भारत समेत दुनिया के बड़े हिस्से में लॉकडाउन के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजर रही है. इस वजह से हमारी अर्थव्यवस्था की बढ़त भी इस वर्ष नकारात्मक रहेगी, लेकिन खेती की उपज में बढ़ोतरी तथा निर्यात में बड़ी उछाल से यह संकेत स्पष्ट है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के आधार मजबूत हैं तथा जल्दी ही वृद्धि दर की गति तेज हो जायेगी. लॉकडाउन हटने के बाद से धीरे-धीरे तमाम गतिविधियां सामान्य हो रही हैं. हालांकि अभी भी संक्रमण का प्रसार जारी है तथा जरूरी सावधानी बरती जा रही है, इसलिए हड़बड़ी करना भी ठीक नहीं है.
कुछ महीनों से रोजगार और औद्योगिक उत्पादन भी बढ़ा है तथा निवेश का रुझान भी बेहतर हो रहा है. आर्थिकी को मजबूती देने के लिए सभी क्षेत्रों में उत्पादन और मांग को बढ़ाना जरूरी है. खेती के मोर्चे पर शानदार कामयाबी से हौसला तो बुलंद हुआ है, लेकिन हम केवल उसी के भरोसे अर्थव्यवस्था के सुधार की उम्मीद नहीं कर सकते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में देश की कुल कार्यशक्ति का 43 प्रतिशत तथा जनसंख्या का 70 प्रतिशत हिस्सा वास करता है, लेकिन सकल घरेलू उत्पादन में खेती का भाग 14.5 प्रतिशत ही है. खेती और ग्रामीण भारत विभिन्न कारणों से कई वर्षों से समस्याओं से जूझ रहे हैं. लॉकडाउन ने उन परेशानियों को बढ़ाया ही है. शहरों से पलायन से भी दबाव में वृद्धि हुई है.
इसके बावजूद चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में कृषि एक मात्र क्षेत्र था, जिसमें बढ़ोतरी हुई है, जबकि सकल घरेलू उत्पादन में कुल मिला कर लगभग 24 प्रतिशत की गिरावट हुई थी. इसके साथ निर्यात में उछाल के ताजा आंकड़े यह बताते हैं कि हमारे किसान तमाम मुश्किलों के बावजूद भी बेहतर उत्पादन की क्षमता रखते हैं. जरूरत यह है कि उनकी उपलब्धियों का समुचित हिस्सा उन्हें मिले और ग्रामीण भारत के विकास को प्राथमिकता दी जाये. किसानों की आमदनी बढ़ेगी, तो औद्योगिक उत्पादन के लिए मांग में भी बढ़त होगी और अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी. इसी तरह अन्य क्षेत्रों में अवसर बढ़ा कर खेती के दबाव को कम किया जाना चाहिए.
Posted by: pritish sahay