खरीद से बेहतर हुआ कृषि क्षेत्र
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत सरकार द्वारा किसानों से रिकाॅर्ड मात्रा में अनाज की खरीद की गयी है. कृषि क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ने का यह बेहद महत्वपूर्ण कारण है.
ब्रजेश झा, प्रोफेसर, इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनाॅमिक ग्रोथ
brajesh@iegindia.org
कोरोना काल में जहां हमारी जीडीपी में गिरावट दर्ज हुई है, वहीं कृषि क्षेत्र में वृद्धि हुई है. जीडीपी में गिरावट इसलिए दर्ज हुई है, क्योंकि लाॅकडाउन का सबसे ज्यादा प्रभाव गैर-कृषि क्षेत्रों पर पड़ा है, जबकि एसेंशियल सर्विस में आने के कारण इसी अवधि में एग्रीकल्चर एसेट्स और उसके बाजार, दोनों ही कम बाधित हुए हैं. हालांकि, लाॅकडाउन का बाजार पर थोड़ा प्रभाव पड़ा है, क्योंकि कुछ विक्रेताओं को कृषि उत्पादों का उचित दाम नहीं मिला. कोरोना काल में कृषि क्षेत्र में बेहतरी के तीन प्रमुख कारण हैं.
पहला, हमारी अर्थव्यवस्था के लिए कृषि उत्पादों का बहुत महत्व है, क्योंकि देश को कृषि से जुड़े उत्पाद हर हाल में उपलब्ध कराना होता है. दूसरा, हमारी इकोनाॅमी. तीसरा, कोरोना काल में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत सरकार द्वारा किसानों से रिकाॅर्ड मात्रा में अनाज की खरीद की गयी है, खासकर गेहूं की. इस कारण किसानों को उनकी फसल का मूल्य मिल गया. कृषि क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ने का यह बेहद महत्वपूर्ण कारण है.
कृषि क्षेत्र में उपज का ज्यादा-कम होना लगा रहता है. किसी वर्ष बहुत अच्छी पैदावार हो जाती है, तो किसी वर्ष कम हो जाती है. असल में, कृषि उपज के अधिक और कम होने का पूरा संबंध माॅनसून से होता है. पिछले चार-पांच वर्षों की तुलना में इस वर्ष माॅनसून बहुत अच्छा रहा है. खरीफ के उत्पादन पर माॅनसून का सीधा प्रभाव पड़ता है. माॅनसून अच्छा रहा, तो अच्छी पैदावार और खराब रहा, तो कम पैदावार.
माॅनसून के अतिरिक्त कृषि के लिए दूसरी जरूरी चीज इनपुट इंडस्ट्री है. इस इंडस्ट्री पर भी लाॅकडाउन का खास प्रभाव नहीं पड़ा है. इस इंडस्ट्री के तहत आनेवाली वस्तुएं, जैसे कीटनाशक, उर्वरक की बिक्री इस दौरान भी जारी रही, क्योंकि ये सभी एसेंशियल कमोडिटी में आते हैं. अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव की यदि बात करें, तो यह खुद में एक अस्वाभाविक घटना है और इसमें तेजी आने में भी समय लग रहा है.
हमारी अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव इसलिए पड़ा है, क्योंकि हमारे बहुत से उद्योग-धंधे बंद हो गये हैं. बाजार के खुलने के बाद भी बहुत-सी वस्तुएं, जो चीन, दक्षिण कोरिया या अन्य देशों से आयात की जाती थीं, उनमें कमी आयी है. इस कारण बहुत-सी वस्तुओं का उत्पादन ही बंद हो गया. कई ऐसी इंडस्ट्री हैं, जो लाॅकडाउन के बाद चालू होने के बावजूद ठीक से काम नहीं कर पा रही हैं, क्योंकि जिन आयातित वस्तुओं पर उनकी निर्भरता थी, वे सही समय पर और उचित मात्रा में उनको नहीं मिल पा रही हैं, जबकि कृषि क्षेत्र इन परेशानियों से अछूता रहा है, क्योंकि इस क्षेत्र में जिन चीजों का प्रयोग होता है, उनमें से अधिकांश चीजें देश में ही तैयार होती हैं.
जब अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, तो किसी न किसी क्षेत्र को आगे आना पड़ता है, तभी अर्थव्यवस्था आगे बढ़ती है. चूंकि इस दौरान कृषि क्षेत्र अच्छा कर रहा है, ऐसे में अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में यह अग्रणी भूमिका निभायेगा. यह हमारा दुर्भाग्य है कि अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान सिमट कर 15 प्रतिशत रह गया है, लेकिन अब भी इस क्षेत्र पर 45 प्रतिशत लोगों की निर्भरता है. तो इन लोगों द्वारा जो खर्च किया जायेगा, उससे मांग बढ़ेगी और अपने आप अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा. इस प्रकार धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था आगे बढ़ जायेगी.
कोरोना काल में खेती निर्यात का 23 प्रतिशत बढ़ना एक अच्छी खबर है. निर्यात बढ़ने का अर्थ है कि मांग पैदा हुई है. मांग पैदा होने का अर्थ है कि किसानों को उनके कृषि उत्पादों का उचित दाम मिला है. यदि कृषि क्षेत्र इसी तरह तेजी से बढ़ता रहा, तो उम्मीद है कि आगे भी किसानों को उनके उत्पाद का अच्छा पैसा मिलेगा. निर्यात बढ़ने का अर्थ यह भी है कि बाजार बढ़ा है और किसानों को उनकी उपज का अच्छा पैसा आगे भी मिलता रहेगा. निर्यात के कारण अर्थव्यवस्था को भी बल मिलता है, क्योंकि इस कारण बहुत से लाॅजिस्टिक्स का इस्तेमाल व उपभोग होता है और अर्थव्यवस्था आगे बढ़ती है.
कृषि क्षेत्र में वृद्धि को हमें बेहतरी का संकेत भी मानना चाहिए, क्योंकि जहां निर्यात बढ़ा है, वहीं माॅनसून भी अच्छा हुआ है. इस बात के पूरे संकेत हैं कि कृषि अच्छी दिशा में आगे बढ़ रही है. कृषि क्षेत्र में हुई इस बेहतरी को देखते हुए हम यह कह सकते हैं कि कोरोना काल में अर्थव्यवस्था में इसका योगदान दो से तीन प्रतिशत बढ़ कर 15 प्रतिशत से 17-18 प्रतिशत हो जायेगा, लेकिन यह मान लेना कि अर्थव्यवस्था के सामान्य हो जाने के बाद भी अर्थव्यवस्था में कृषि की हिस्सेदारी बढ़ेगी और पांच-सात वर्षों में वह 20 से 30 प्रतिशत हो जायेगी, इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती है, न ही ऐसी उम्मीद करनी चाहिए, क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था में कृषि का स्थान प्रमुख नहीं हो सकता है.
किसी भी विकासशील देश के लिए, जिसके पास कृषि की बहुत ज्यादा जमीन न हो, वहां अर्थव्यवस्था में कृषि की हिस्सेदारी बहुत ज्यादा होगी, ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती है. जहां तक कृषि जीडीपी की बात है, तो वह बढ़ेगी. कृषि जीडीपी बढ़ने से उससे जुड़े लोगों की आमदनी बढ़ेगी और संभावना है कि किसानों की आय बढ़ाने, उसे दुगुना करने के नजदीक हम पहुंच सकते हैं.
(बातचीत पर आधारित )