कोविड-19 महामारी से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने के लिए मई में केंद्र सरकार ने बीस लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की थी. देश को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से निर्धारित इस पैकेज के तहत कृषि क्षेत्र के लिए विशेष इंफ्रास्ट्रक्चर कोष की स्थापना की गयी है. दस साल (2020-29) तक चलनेवाली इस योजना में उपज के बाद की गतिविधियों के लिए वित्त मुहैया कराया जायेगा ताकि किसान अपनी फसल का भंडारण कर सकें और उपज का समुचित दाम हासिल कर सकें.
ग्रामीण क्षेत्रों में जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर बन जाने से उपज को संवर्धित करने तथा आमतौर पर बर्बाद होनेवाले उत्पादों के उपयोग से किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी और रोजगार के भी नये अवसर पैदा होंगे. कोष से कर्ज लेनेवाले किसानों को ब्याज पर तीन प्रतिशत की छूट का प्रावधान है, जिसका भुगतान सरकार की ओर से किया जायेगा.
इस योजना का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों के लाभ को सुनिश्चित करने के लिए कृषि से संबंधित नियम-कानूनों में बदलाव का उल्लेख भी किया है. आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन के अलावा हालिया अध्यादेशों ने कृषि क्षेत्र के विकास के लिए ठोस नीतिगत आधार तैयार किया है. वर्ष 2014 के मध्य से ही किसानों की आमदनी बढ़ाने तथा ग्रामीण क्षेत्रों में व्यावसायिक अवसर पैदा करने पर सरकार का जोर रहा है. समर्थन मूल्य बढ़ाने, मिट्टी के स्वास्थ्य की नियमित जांच करने, फसल बीमा का दायरा बढ़ाने, खेती व संबंधित कारोबार के लिए आसान कर्ज मुहैया कराने, किसानों को नगदी देने आदि पहलों को प्रभावी ढंग से अमली जामा पहनाया जा रहा है.
इंफ्रास्ट्रक्चर कोष में ब्याज के तीन प्रतिशत का भार वहन करने के साथ सरकार दो करोड़ रुपये तक के कर्ज की गारंटी भी देगी. भले ही इस योजना की अवधि दस साल है, लेकिन सरकार की कोशिश है कि एक लाख करोड़ रुपये को चार साल के भीतर निर्गत कर दिया जायेगा. इसके लिए चालू वित्त वर्ष में 10 हजार करोड़ रुपये का आवंटन हुआ है तथा अगले तीन साल तक सालाना 30 हजार करोड़ रुपये उपलब्ध कराये जायेंगे. सार्वजनिक क्षेत्र के 12 में से 11 बैंकों ने इस योजना के अंतर्गत कृषि मंत्रालय से करार किया है.
इंफ्रास्ट्रक्चर कोष के आरंभ के साथ प्रधानमंत्री मोदी ने प्रधानमंत्री किसान योजना की छठी किस्त भी जारी की है, जिसमें करीब 8.5 करोड़ किसानों के लिए 17 हजार करोड़ रुपये की राशि निर्गत की गयी है. उल्लेखनीय है कि कोरोना संकट और लॉकडाउन में देश को अनाज और अन्य खेतिहर उत्पादों की कोई कमी नहीं हुई क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र ने पहले से ही बेहतर उत्पादन किया था. लॉकडाउन में कामकाज ठप होने के बावजूद खेती अच्छी हुई है और आर्थिकी को बचाने में कृषि क्षेत्र ने बहुत योगदान किया है. यदि इंफ्रास्ट्रक्चर बेहतर होता है, तो अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में किसान की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो सकती है.