वायु प्रदूषण की चुनौती
Air pollution : महाराष्ट्र के दोनों शहरों में ऐसे क्षेत्रों को 2026 तक चिह्नित कर दिया जायेगा. ओडिशा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भुवनेश्वर के लिए ऐसी योजना पिछले साल तैयार की थी. उल्लेखनीय है कि कुछ समय के लिए दिल्ली और आगरा में वाहन प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए ऐसे उपाय पहले किये जाते रहे हैं.
Air pollution : देश के कई शहर गंभीर वायु प्रदूषण की चपेट में हैं. मानसून के दौरान या अन्य महीनों में बारिश होने पर कुछ राहत जरूर मिलती है, पर इस समस्या का स्थायी समाधान निकालना आवश्यक है. इस प्रयास में महाराष्ट्र के दो शहरों- पिंपरी चिंचवाड़ और छत्रपति संभाजीनगर- तथा ओडिशा के भुवनेश्वर में कुछ इलाकों को निम्न-उत्सर्जन क्षेत्र के रूप में निर्धारित किया जा रहा है. इन इलाकों में बहुत मामूली उत्सर्जन करने वाले वाहनों को ही प्रवेश की अनुमति होगी. लंदन और कुछ अन्य यूरोपीय शहरों में ऐसे उपाय पहले किये जा चुके हैं.
महाराष्ट्र के दोनों शहरों में ऐसे क्षेत्रों को 2026 तक चिह्नित कर दिया जायेगा. ओडिशा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भुवनेश्वर के लिए ऐसी योजना पिछले साल तैयार की थी. उल्लेखनीय है कि कुछ समय के लिए दिल्ली और आगरा में वाहन प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए ऐसे उपाय पहले किये जाते रहे हैं. ऐसी योजनाओं से सार्वजनिक यातायात साधनों के उपयोग में बढ़ोतरी की आशा है. मेट्रो रेल तथा बसों की सुविधा से वाहन उत्सर्जन को कम करने में कुछ सफलता मिली है, पर निजी वाहनों की संख्या बढ़ते जाने से स्थिति में कोई उत्साहजनक परिवर्तन नहीं हुआ है. भीड़ वाले तथा अधिक प्रदूषित क्षेत्रों में अगर वाहनों की आवाजाही को कम किया जा सके, तो इसका असर होना निश्चित है. ऐसी पहलें अन्य शहरों के लिए भी उदाहरण बन सकती हैं.
हाल में लांसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत के दस बड़े शहरों- दिल्ली, अहमदाबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, हैदराबाद, कोलकाता, मुंबई, पुणे, शिमला और वाराणसी- में हर साल लगभग 33 हजार मौतें प्रदूषण के कारण होती हैं. वायु प्रदूषण कई बीमारियों का कारण तो बनता ही है, इससे लोगों की आयु भी घटती है. स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन में उल्लेखनीय प्रगति हो रही है तथा इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री भी बढ़ रही है. पर जीवाश्म ईंधनों की खपत में भारी कमी करने में अभी बहुत समय लग सकता है. ऐसे में हर तरह के उपायों को अपनाने पर विचार किया जाना चाहिए.
एक बड़ी समस्या यह है कि अनेक राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभा रहे हैं. साल 2019 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम की शुरुआत की थी, जिसके तहत देश के 131 शहरों में प्रदूषण घटाने का लक्ष्य रखा गया है. केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार, औसतन ये शहर आवंटित राशि का 60 प्रतिशत हिस्सा ही खर्च कर पाते हैं तथा 27 प्रतिशत शहर तो ऐसे हैं, जो निर्धारित बजट का 30 प्रतिशत भाग भी नहीं खर्च कर पाते. सरकारों और स्थानीय प्रशासन को मुस्तैदी से काम करने की जरूरत है.