Air Pollution In Delhi : राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और उसके आसपास के इलाके पिछले कुछ दिनों से जिस तरह गंभीर वायु प्रदूषण की गिरफ्त में हैं, वह प्रदूषण-विरोधी आधी-अधूरी तैयारियों का ही नतीजा ज्यादा है, जिसका नतीजा आम लोग भुगत रहे हैं. दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर सबसे खराब की श्रेणी से सीवियर श्रेणी में चला गया है और रविवार को वहां औसत एयर इंडेक्स 429 दर्ज किया गया. कोहरे के साथ जलती पराली के धुएं से भी परेशानी जारी है. शादी के इस मौसम में चलते पटाखे भी स्थिति को गंभीर बना रहे हैं. हालांकि दिल्ली के प्रदूषण में पराली के धुएं की भागीदारी सबसे अधिक है. प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ अगर सख्त कार्रवाई हो, तब भी कुछ समाधान निकल सकता है. लेकिन ऐसा नहीं है.
प्रदूषण के कारण दिल्ली और हरियाणा में पांचवीं तक के स्कूल बंद रखने का फैसला लिया गया. केंद्रीय नियंत्रण प्रदूषण बोर्ड (सीपीसीबी) के मुताबिक, वायु प्रदूषण से फिलहाल राहत मिलने की संभावना नहीं है. इस स्थिति के लिए प्रदूषण फैलाने के स्थानीय कारक तो जिम्मेदार हैं ही, हवा की दिशा भी पंजाब और हरियाणा से पराली का धुआं दिल्ली पहुंचाने के अनुकूल बनी हुई है. दिल्ली और आसपास के इलाके में हर साल इस समय यह स्थिति पैदा होती है, तो इसके कई कारण हैं. दरअसल दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्रों में विभिन्न पार्टियों की सरकारें होने के कारण उनमें तालमेल की कमी है. एकीकृत दृष्टिकोण के अभाव के कारण प्रदूषण नियंत्रण की योजनाएं प्रभावी ढंग से लागू नहीं हो पातीं.
वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सौर ऊर्जा का इस्तेमाल, कचरे के बेहतर प्रबंधन और परिवहन प्रणाली में बदलाव जैसे दीर्घकालिक उपायों की आवश्यकता है. लेकिन हर साल इस समय यही समस्या पैदा होने पर तात्कालिक उपाय अपनाए जाते हैं. राजधानी में 10 साल पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों पर प्रतिबंध है. लेकिन वाहनों की नियमित जांच और कड़ी निगरानी के अभाव में पुराने और प्रदूषण फैलाने वाले वाहन सड़कों पर चलते रहते हैं.
दिल्ली में तो मेट्रो और बसों का विस्तृत नेटवर्क है, लेकिन राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सार्वजनिक परिवहन की कमी है. राजधानी की सड़कों पर वाहनों का दबाव कम करने के लिए ऑड-इवन व्यवस्था की शुरुआत की गई थी. उससे वायु प्रदूषण का कुछ समाधान निकला था. लेकिन इसे दीर्घकालिक समाधान के रूप में नहीं अपनाया गया. आंकड़े बताते हैं कि वायु प्रदूषण फेफड़े की बीमारी के अलावा आयु के कुछ साल भी छीन लेता है. ऐसे में, इसके स्थायी समाधान की दिशा में सोचने की जरूरत है.