दिल्ली-एनसीआर में फिर गहराया सांसों पर संकट

Air Pollution In Delhi : अक्सर ऐसे जटिल मुद्दों के समाधान में सर्वोच्च न्यायालय पहल करता रहा है, पर इस मामले में वह अभी तक सख्त टिप्पणियों से आगे बढ़ता नहीं दिखता और सख्त टिप्पणियों का संबंधित पक्षों पर असर नजर आता नहीं.

By राज कुमार सिंह | October 23, 2024 6:40 AM

Air Pollution In Delhi : अभी बस दशहरा बीता है, दिवाली आने वाली है. उससे पहले ही दिल्ली-एनसीआर में जहरीली होती हवा सांसों पर भारी पड़ने लगी है. दिल्ली में तो औसत एक्यूआइ 293 पहुंच गया है. अतीत का अनुभव बताता है कि आने वाले दिनों में यह और बढ़ेगा. बढ़ते वायु प्रदूषण से जनता की सांसों पर गहराते संकट के समाधान के लिए सरकार के पास विभिन्न चरणों में लगाये जाने वाले प्रतिबंधों के अलावा कोई योजना नजर नहीं आती. ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान के तहत ग्रैप-टू के प्रतिबंध दिल्ली में लागू किये जा चुके हैं. जैसे-जैसे वायु प्रदूषण बढ़ेगा, ये प्रतिबंध भी बढ़ते जायेंगे.


हर वर्ष इन्हीं दिनों गहराने वाले जानलेवा संकट के समाधान की कोई सोच देश या दिल्ली की सरकार के पास नहीं दिखती. इस विवेकहीनता और निष्क्रियता के लिए सर्वोच्च न्यायालय, वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के साथ-साथ पंजाब और हरियाणा सरकारों को भी कड़ी फटकार लगा चुका है. दिल्ली में इन दिनों बढ़ने वाले वायु प्रदूषण में पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों द्वारा जलायी जाने वाली पराली का बड़ा योगदान बताया जाता है. उससे निपटने के प्रयासों के दावे भी राज्य सरकारों द्वारा किये जाते हैं, पर वांछित परिणाम नजर नहीं आते. वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए बना आयोग भी जिम्मेदारी के निर्वाह में नाकाम नजर आता है.

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने पराली जलाने से रोकने में पंजाब सरकार की नाकामी पर सख्त टिप्पणी की कि सरकार को स्वयं को ‘असमर्थ’ घोषित कर देना चाहिए. पंजाब और दिल्ली, दोनों ही राज्यों में क्योंकि आम आदमी पार्टी की सरकार है, सो यह आप और भाजपा के बीच राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का मुद्दा भी बनता रहता है. हरियाणा में भाजपा की सरकार है. उत्तर प्रदेश में भी भाजपा सरकार है, जिसके पश्चिमी क्षेत्र के किसानों पर पराली जलाने का आरोप लगता रहता है. आम आदमी की सेहत ही नहीं, जीवन से भी जुड़े इस संवेदनशील मुद्दे पर राजनीति हमारे दलों की संवेदनहीनता को उजागर करती है. हर वर्ष जनता की सांसों पर मंडराने वाले इस संकट के स्थायी समाधान की दूरगामी योजना की पहल किसी को तो करनी चाहिए.


अक्सर ऐसे जटिल मुद्दों के समाधान में सर्वोच्च न्यायालय पहल करता रहा है, पर इस मामले में वह अभी तक सख्त टिप्पणियों से आगे बढ़ता नहीं दिखता और सख्त टिप्पणियों का संबंधित पक्षों पर असर नजर आता नहीं. दिल्ली-एनसीआर के निवासियों के लिए स्वच्छ हवा सुनिश्चित करना सरकारों की जिम्मेदारी कैसे बने, इस पर सर्वोच्च न्यायालय को मार्गदर्शक निर्देश देने चाहिए. वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए दिवाली से पहले ही पटाखेबाजी पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है, पर लोग उस पर भी राजनीति से बाज नहीं आते. पिछले वर्ष प्रतिबंधों को धत्ता बता दिवाली की रात की गयी पटाखेबाजी से अगले दिन वायु प्रदूषण 999 के बेहद खतरनाक स्तर पर पहुंच गया था. यह आम आदमी की सेहत, खासकर बुजुर्गों और बच्चों के लिए कितना खतरनाक साबित हो सकता है, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि 401 से 500 तक के एक्यूआइ को भी ‘गंभीर’ माना जाता है.

क्या सरकारें नहीं जानतीं कि दिल्लीवासियों को वर्ष में गिने-चुने दिन ही स्वच्छ हवा नसीब होती है. यही विडंबना एनसीआर की भी है. दरअसल, शून्य से 50 एक्यूआइ तक हवा ही ‘स्वच्छ’ होती है. उसके बाद 51-100 तक ‘संतोषजनक’, 101-200 ‘मध्यम’, 201-300 ‘खराब’, 301-400 ‘बहुत खराब’ और 401-500 एक्यूआइ वाली हवा ‘गंभीर’ श्रेणी में आती है. स्वास्थ्य विशेषज्ञ चेताते रहे हैं कि दिल्ली-एनसीआर की जहरीली हवा सांस संबंधी रोग बढ़ा रही है, जिनसे फेफड़ों में इंफेक्शन ही नहीं, कैंसर तक हो सकता है. आंकड़े बताते हैं कि भारत में हर वर्ष वायु प्रदूषण से 20 लाख मौतें होती हैं. देश में होने वाली मौतों का यह पांचवां बड़ा कारण है. इसके बावजूद दमघोंटू हवा का दोष पराली और पटाखों के सिर मढ़ अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली जाती है, तो उसे संवेदनहीनता और निष्क्रियता की पराकाष्ठा ही कहा जा सकता है.

बेशक पराली जलाने से रोकने के लिए सरकारों को कुछ व्यावहारिक कदम उठाने होंगे, पर सच यह भी है कि दिल्ली-एनसीआर के वायु प्रदूषण में पराली और पटाखों का योगदान अवधि और मात्रा की दृष्टि से सीमित है. इसलिए अन्य स्थायी कारणों का निदान जरूरी है. भू-विज्ञान मंत्रालय के एक रिसर्च पेपर के अनुसार, वायु प्रदूषण में 41 प्रतिशत हिस्सेदारी वाहनों की रहती है. भवन निर्माण आदि से उड़नेवाली धूल 21.5 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर है. दिल्ली परिवहन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 30 वर्ष में वाहन और उनसे होने वाला प्रदूषण तीन गुणा बढ़ गया है. फिर भी मेट्रो के धीमे विस्तार के अतिरिक्त, पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम को बेहतर और विश्वसनीय बनाने की दिशा में कुछ खास नहीं किया गया. नवंबर, 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने सख्त टिप्पणी की थी कि दिल्ली नरक से भी बदतर हो गयी है. लगता नहीं कि उसके बाद भी कुछ बदला है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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