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चिंताजनक तापमान वृद्धि

अभी और 2027 के बीच में वैश्विक तापमान के 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि सीमा को पार करने की संभावना 66 प्रतिशत है.

पिछले कुछ दशकों से धरती के तापमान में बढ़ोतरी और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए कई तरह के प्रयास हो रहे हैं. पर ऐसा लगता है कि इनका समुचित असर नहीं हो रहा है. नये अध्ययनों में पाया गया है कि अभी और 2027 के बीच में वैश्विक तापमान के 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि सीमा को पार करने की संभावना 66 प्रतिशत है.

अल नीनो जैसे प्राकृतिक कारकों के साथ-साथ मानवीय गतिविधियों से होने वाला उत्सर्जन इसका मुख्य कारण है. तापमान के वृद्धि सीमा से परे जाने का अर्थ यह है कि धरती 19वीं सदी के मध्य की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो जायेगी. अगर ऐसा होता है, तो यह पहली बार होगा. हालांकि यह कोई संतोषजनक बात नहीं है, पर वैज्ञानिकों ने आशा जतायी है कि अगर तापमान उस सीमा के पार भी चला जाता है,

यह कुछ समय के लिए ही होगा. लेकिन अगर हर साल तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहा और ऐसा एक-दो दशक तक होता रहा, तो लू चलने की अवधि लंबी होती जायेगी, बड़े-बड़े तूफान आयेंगे और जंगलों में आग लगने की घटनाओं में भारी बढ़ोतरी होगी. ये सभी स्थितियां अभी ही चिंताजनक स्तर पर हैं तथा सूखे और असमय बरसात भी कहर बन चुके हैं.

आम तौर पर जल संकट से अनजान यूरोपीय देश स्पेन सूखे से जूझ रहा है तथा देश के एक हिस्से के मरुस्थल बनने का खतरा उत्पन्न हो गया है. विश्व मौसम संगठन के अनुसार, 2022 हालिया इतिहास के सबसे गर्म वर्षों में एक है. पिछले आठ वर्षों से लगातार वैश्विक तापमान में पूर्व-औद्योगिक युग की तुलना में कम-से-कम एक डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है.

अस्सी के दशक से हर दशक पिछले दशक की तुलना में अधिक गर्म रहा है. वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जलवायु समझौतों तथा अध्ययनों के सुझावों पर सही ढंग से अमल शुरू नहीं होगा, तो तापमान वृद्धि इसी तरह जारी रहेगी. भारत की बात करें, तो इस वर्ष फरवरी 122 सालों में सर्वाधिक गर्म फरवरी रहा. वर्ष 1901, जब से तापमान के आंकड़े उपलब्ध हैं,

से अब तक जो सबसे अधिक गर्म पांच फरवरी के महीने रहे हैं, वे सभी बीते 14 सालों के हैं. वैश्विक स्तर पर स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन और उपभोग बढ़ाकर कार्बन उत्सर्जन घटाने की कोशिशें चल रही हैं, लेकिन अब समय आ गया है कि पूरी दुनिया जलवायु संकट को एक आपात स्थिति समझे. वैज्ञानिकों का कहना है कि उत्सर्जन में तीव्र कटौती हमें वर्तमान और आसन्न संकटों से निकाल सकती है. इसके लिए व्यक्ति से विश्व स्तर तक सक्रिय होने की आवश्यकता है.

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