अमेरिका कभी रुकता नहीं

कोरोना संक्रमण से मरनेवालों की संख्या में अमेरिका में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, इसके बावजूद देश में लॉकडाउन नहीं किया गया है. यह बात कई लोगों को आश्चर्यजनक लग सकती है कि अमेरिका ने ऐसा क्यों नहीं किया है

By जे सुशील | April 10, 2020 8:08 AM

जे सुशील अमेरिका में स्वतंत्र शोधार्थी

jey.sushil@gmail.com

कोरोना संक्रमण से मरनेवालों की संख्या में अमेरिका में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, इसके बावजूद देश में लॉकडाउन नहीं किया गया है. यह बात कई लोगों को आश्चर्यजनक लग सकती है कि अमेरिका ने ऐसा क्यों नहीं किया है. लेकिन, इसका जवाब गूगल करने पर नहीं मिलेगा. इसके लिए इस देश की साइकोलॉजी को समझना होगा कि लॉकडाउन जैसे शब्दों को लेकर इस देश में धारणा क्या है और वे इसे कैसे देखते हैं. इन सवालों के जवाब में ही इसका उत्तर भी छुपा है कि इतनी मौतों के बावजूद अमेरिका में भारत जैसा लॉकडाउन क्यों नहीं किया जा रहा है.इसके मूल में तीन कारण हैं. पहला, तकनीकी कारण, जो इस मुद्दे का एक पहलू है. अमेरिका की संघीय व्यवस्था का ढांचा ऐसा है कि नागरिकों के आम जीवन से जुड़े ज्यादातर फैसले, खासकर उसमें अगर पुलिस की कोई भूमिका हो, तो वह राज्य का प्रशासन ही करता है, यानी कि वहां का गवर्नर.

कई बार ऐसे भी उदाहरण हैं, जब एक काउंटी यानी कोई एक इलाका गवर्नर की बात न माने. तकनीकी तौर पर देखा जाये, तो राष्ट्रपति अगर चाहें तो नेशनल लॉकडाउन की घोषणा कर सकते हैं, लेकिन वे ऐसा नहीं करेंगे और इसका कारण तकनीकी नहीं है. इसका कारण है कि अमेरिका के लोगों की साइकोलॉजी, जो लिबर्टी और पर्सनल स्पेस में गुंथी हुई है. अमेरिका में अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता या लिबर्टी की भावना इस गहराई तक पैठी हुई है कि अगर कोई भी सरकार कोई भी ऐसा फैसला लेती है, जिसमें नागरिकों के निजी अधिकारों का हनन हो, तो उसे पसंद नहीं किया जाता. लोग इसका जमकर विरोध करते हैं. ये विरोध करनेवाला अल्पसंख्यक, अश्वेत या दूसरे देशों से हाल में आकर बसे लोग नहीं होते, बल्कि खालिस गोरे अमेरिकी ही इसके खिलाफ खड़े हो जाते हैं. इसलिए, ट्रंप को डर है कि अगर वे लॉकडाउन जैसा कोई कदम उठायेंगे, तो उनके समर्थन में खड़े लोग ही उनका विरोध करने लगेंगे.

दूसरा, अगर उन्होंने कोशिश की, तो राज्य सरकारें भी विरोध कर सकती हैं. तो फिर, इस समय अमेरिका में जहां कोरोना तेजी से फैल रहा है, वहां किया क्या जा रहा है.संघीय सरकार यानी ट्रंप प्रशासन की तरफ से एडवाइजरी है कि लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें यानी कि दूर-दूर रहें. रेस्तरां और क्लब या ऐसी जगहें, जहां लोगों के जुटने की संभावना होती है, उन्हें बंद करने के आदेश दिये गये हैं और वहां से ऑर्डर करके खाना लिया जा सकता है. जहां हालात और खराब हैं, वहां स्टे एट होम के आदेश हैं यानी कि आप कुछ मूलभूत कार्यों (भोजन लाना, दवाई लेना, टहलना और कुत्ते को घुमाना) को छोड़कर बेवजह बाहर नहीं निकल सकते हैं. निकलने पर पुलिस कारण पूछ सकती है. ज्यादातर राज्यों में यही नियम राज्य के गवर्नर और मेयरों ने लागू किये हैं. मैं जिस इलाके में रहता हूं, उससे थोड़ी ही दूर पर मेयर की पत्नी को करीब दो हफ्ते पहले पब में पाया गया, जहां वे अपनी मित्रों के साथ बीयर पी रही थीं, जबकि सोशल डिस्टेंसिंग का नियम लागू था.

मेयर की पत्नी पर जुर्माना लगाया गया. कैलिफोर्निया में सबसे सख्ती है, लेकिन वहां भी लॉकडाउन शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है, क्योंकि इस शब्द का इस्तेमाल ही एक नेगेटिव भाव लिये हुए है अमेरिकी लोगों के लिए. कैलिफोर्निया राज्य के कुछ इलाकों में शेल्टर एट होम के आदेश हैं, यानी कि आप अपने घरों में ही रहें और उन्हीं से मिलें, जिनसे आप पिछले 10-15 दिनों में मिले हों. कहने का अर्थ यह है कि हर राज्य में अलग-अलग नियम लागू किये गये हैं. न्यूयार्क, जो सबसे बुरी तरह प्रभावित है, वहां भी लॉकडाउन नहीं है और लोग मेट्रो का इस्तेमाल कर रहे हैं.खबरों के अनुसार, मेट्रो ट्रेनों की संख्या कम कर दी गयी है और कई ट्रेनों में भीड़ भी हो रही है, लेकिन जीवन अनवरत जारी है. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि अमेरिका में घरेलू विमान सेवाएं अभी भी जारी हैं, लेकिन इंटरनेशनल ट्रैवल पर रोक लगायी गयी है. घरेलू विमान सेवाओं में न्यूयार्क और ज्यादा प्रभावित इलाके के लोगों से अपील की गयी है कि वे 15 दिनों तक यात्रा न करें, ताकि बीमारी को फैलने से रोका जा सके.तीसरा बड़ा कारण है- अर्थव्यवस्था.

अगर स्पष्ट शब्दों में कहा जाये, तो अमेरिका पैसा जानता है और इकोनॉमी सबके लिए सर्वोपरि है. राष्ट्रपति ट्रंप ने यूं ही नहीं कहा था कि ‘अमेरिका इज नॉट मेड टू स्टॉप.’ शेक्सपियर का कहा हम जानते हैं कि ‘द शो मस्ट गो ऑन.’ अमेरिका इकोनॉमी को लेकर ऐसी ही सोच रखता है. चाहे कुछ हो जाये, इकोनॉमी ठप नहीं पड़नी चाहिए, इसलिए काम जारी है. जो भी बिजनेस घर से हो सकता है, वह घर से चल रहा है. बाकी जिस किसी भी काम के लिए कम लोगों की जरूरत है, वह अबाध जारी है, मसलन ई-कॉमर्स, अमेजन और ऐसे ही तमाम ई-शॉपिंग के काम. स्टॉक एक्सचेंज और तमाम बिजनेस संचालित हो रहे हैं. यूनिवर्सिटी, संग्रहालय, रेस्तरां और वे चीजें ही बंद की गयी हैं, जिससे इकोनॉमी को बहुत अधिक नुकसान न हो. एक छोटा और महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि अमेरिका की सुपरपावर की एक छवि है और वर्तमान विश्व में इमेज के इस महत्व को नकारा नहीं जा सकता.

कल्पना कीजिए, दुनियाभर के अखबारों में ‘अमेरिका ठप’ जैसा शीर्षक लगे, तो उस छवि को कितना धक्का लगेगा. जो देश 11 सितंबर के हमले में नहीं रुका, वह एक वायरस से रुक जाये, यह अमेरिकी जनता और नेताओं को बिल्कुल गवारा नहीं है.ये बात अमेरिकी मीडिया के बारे में भी कही जा सकती है कि मीडिया में भी लॉकडाउन को लेकर बहुत अधिक शोर नहीं है. मीडिया ट्रंप की आलोचना कर रहा है कि उन्होंने शुरूआती दौर में इसकी गंभीरता को नहीं लिया या फिर अभी भी वे ऐसी दवाओं पर भरोसा कर रहे हैं, जिसका वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है, लेकिन अखबारों में ऐसी तस्वीरें तक नहीं छप रही हैं, जिसमें सुनसान सड़कें दिख रही हों. अखबारों की वेबसाइटों को भी देखें, तो तस्वीरों में डॉक्टर हैं, मरीज हैं, संघर्ष करता शहर है. ठप शहर नहीं, क्योंकि अमेरिका कभी रुकता नहीं, एक ऐसा सूत्र वाक्य है, जो यहां के लोगों में अंदर तक बसा हुआ है.

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