जे सुशील
स्वतंत्र शोधार्थी
jey.sushil@gmail.com
एक बड़ी महामारी से जूझता देश अपने लोगों के बारे में कैसे सोचता है और कैसे ख्याल रखता है, यह देखने के लिए भी अमेरिका एक अच्छा उदाहरण है. ये सही है कि अमेरिका में कोरोना के कारण अब तक 70,000 जानें जा चुकी हैं और 11 लाख से अधिक संक्रमण के मामले सामने आ चुके हैं. लेकिन, इस देश में समस्या से निपटने के लिए अलग-अलग स्तर पर उपाय भी किये जा रहे हैं.
मसलन, हर अमेरिकी नागरिक, जिसकी आय 99,000 डॉलर सालाना से कम है, वह सरकारी मदद का हकदार है. आय का ब्यरा टैक्स के जरिये सरकार के पास रहता है और उसी के आधार पर सरकार ने मदद तय कर दी है. अगर आप अकेले रहते हैं और आपकी आय 99,000 डॉलर से कम है, तो आपके पास 1200 डॉलर का चेक आ जायेगा. अगर आपकी पत्नी और बच्चे हैं, जो नौकरी में नहीं हैं, तो चेक 2400 डॉलर से अधिक का होगा. इसके लिए संसद में एक पैकेज पास किया गया और अप्रैल के महीने में लोगों के अकाउंट में चेक आने लगे.
हालांकि, इस पैकेज में उन लोगों को कोई मदद नहीं मिलेगी, जो अमेरिका में टैक्स नहीं भरते हैं, यानी कि अगर कोई अंतरराष्ट्रीय छात्र चार साल से टैक्स भर रहा है, तो वो भी इस पैकेज का हकदार होगा. चूंकि, अंतरराष्ट्रीय छात्रों को कम टैक्स देना होता है, इसलिए उन पर चार साल का एक अलग प्रावधान है.
इस संघीय मदद के घेरे में वे लोग भी शामिल हैं, जो सरकार के पास पहले से ये अर्जी दे चुके हैं कि वह बेरोजगार हैं और टैक्स नहीं भर पाये हैं कभी भी. उनके पास ये मदद स्थानीय रोजगार ब्यूरो के जरिये सीधे बैंक में या चेक से मिल रही है.
जब तक देश में स्टे एट होम के आदेश हैं, तब तक ये मदद हर महीने मिलती रह सकती है. सरकारी मदद के अलावा निजी स्तर पर भी लोग मदद कर रहे हैं. मसलन, चर्चो ने गरीब लोगों के बीच बड़े पैमाने पर मदद बांटने का काम उठाया है. स्थानीय चर्च को मेल करने पर वह आपके घरों में सामान का पैकेट छोड़ जाते हैं.
अमेरिका में बड़ी संख्या में कलाकार भी रहते हैं. कोरोना के दौरान कलाकारों के काम में भी बहुत दिक्कत हुई है, क्योंकि आर्ट गैलरियों में होनेवाले शो, लेक्चर्स, क्लासेस, पार्ट टाइम में किये जानेवाले काम सब कुछ बंद हैं और कलाकार चूंकि, नौकरियां नहीं करते, तो उनके लिए जीवनयापन का कष्ट बड़ा हो गया है. ऐसे में स्थानीय आर्ट काउंसिल और बड़ी गैलरियों ने चैरिटी की घोषणा की है.
हम जिस शहर में रहते हैं, वह छोटा शहर है. इसके बावजूद भी तीन आर्ट संस्थानों ने कलाकारों के लिए छोटे-छोटे चैरिटी ग्रांट्स की घोषणा की है. हर कलाकार को उसकी जरूरत के आधार पर छोटा सा ग्रांट दिया जा रहा है. इस शहर की सबसे बड़ी प्राइवेट यूनिवर्सिटी ने भी अपने छात्रों के लिए ग्रांट की व्यवस्था की है और उन्होंने इसके लिए अनोखा उपाय निकाला है. यूनिवर्सिटी ने अपने पुराने छात्रों यानी अल्युमिनाई का आह्वान किया कि वे कोरोना के दौरान छात्रों की मदद के लिए पैसे दें और इस आह्वान के बाद तुरंत एक बड़ा फंड तैयार हो गया. अब यूनिवर्सिटी जरूरतमंद छात्रों को घर का किराया, ग्रॉसरी या जो अपने देश लौटना चाहते हैं, उनके लिए टिकट जैसी जरूरतों के लिए पैसा मुहैया करा रही है.
कहने का अर्थ है कि जिस किसी को भी जरूरत है, उसके लिए समाजसेवी संगठन, चर्च, आर्ट गैलरी, राज्य सरकार और केंद्र सरकार आगे आ रही हैं और कोशिश कर रही हैं कि लोगों को दिक्कत न हो. अमेरिका में चैरिटी को लेकर एक दिक्कत ये रही है कि लोग अत्यंत स्वाभिमानी हैं. वे खुद काम करने और कमाने में यकीन रखते हैं और जल्दी किसी से मदद स्वीकार करने में हिचकते हैं. उनका मानना है कि सरकारी मदद या दान पर जीवन जीना ठीक नहीं है.
भारत से तुलना करने में एक और बात जो देखने में आती है कि लोगों की मदद की जा रही है, लेकिन उनकी तस्वीरें कहीं भी आपको देखने को नहीं मिलेंगी. अखबारों में आपको मजबूर लोगों के चेहरे कम मिलेंगे देखने को. अखबारों में दुकानों को खुलवाने के लिए विरोध करते लोगों के चेहरे भले ही प्रमुखता से छप रहे हों, लेकिन लाइन में खाने के लिए लगे लोगों केवीडियो में भी कोशिश की जा रही है कि लोगों के चेहरे न दिखें.
यहां तक कि पिछले हफ्ते जब न्यूयार्क के ब्रुकलिन में चार ट्रकों में पड़े शवों से बदबू आने लगी, तो उस बारे में छपी खबर में भी ढंकी हुई लाशों की तस्वीरें नहीं थीं, बल्कि ट्रकों की ही तस्वीर थीं. अंतिम संस्कार के लिए यहां लंबी लाइनें लग रही हैं, क्योंकि दफनाये जाने से पहले शव को धोकर पूरी तरह से तैयार किया जाता है. सूट पहनाया जाता है, ताकि मरनेवाला सुंदर लगे. इस प्रक्रिया में समय लगता है और न्यूयार्क में इतनी लाशें आ रही हैं कि लाशों को ट्रकों में फ्रीजर लगाकर रखना पड़ रहा है.
अमेरिका इस समय एक कठिन दौर से गुजर रहा है. लेकिन, उसके बावजूद उसकी कोशिश है कि वह अपने नागरिकों का ख्याल रखे. दुनिया के कई देशों में फंसे अमेरिकी नागरिकों को विशेष विमान से वापस देश लाया गया है. सरकार के अनुसार, पूरी दुनिया से 40,000 से अधिक अमेरिकी नागरिक विशेष विमानों के जरिये वापस देश लाये गये हैं.
आज कोरोना के सामने अमेरिका भले ही बेबस लग रहा हो, लेकिन अमेरिका जी जान से कोशिश में लगा है. वह अपने नागरिकों के लिए और कोशिश कर रहा है. अमेरिकी सरकार इस बात को सुनिश्चित करने में लगी है कि इस कठिन परिस्थिति में भी नागरिकों को कम-से-कम तकलीफ हो.
अमेरिका में हालात काफी गंभीर हैं, लेकिन जिस सक्रियता के साथ यहां सरकार लोगों को राहत पहुंचाने में जुटी है, उससे आम जन-जीवन की परेशानियों को हल करने में काफी मदद मिल रही है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)