एक अहम फैसला

पुलिसकर्मियों को समुचित प्रशिक्षण देने की व्यवस्था होनी चाहिए. जांच एजेंसियों और पुलिस के सामने कर्मियों की कम संख्या और संसाधनों की कमी की चुनौती भी है.

By संपादकीय | December 4, 2020 7:30 AM
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जांच एजेंसियों के दफ्तरों और पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरा लगाने का सर्वोच्च न्यायालय का आदेश पुलिस व्यवस्था में सुधार की दिशा में एक बड़ा फैसला है. पुलिस के अलावा सीबीआइ, प्रवर्तन निदेशालय (इडी), राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) समेत अनेक केंद्रीय एजेंसियों को भी पूछताछ और गिरफ्तारी का अधिकार होता है. इस अधिकार का इस्तेमाल करते समय आरोपितों और संदिग्धों को प्रताड़ित कर उनके बुनियादी अधिकारों के हनन की शिकायतें अक्सर आती हैं. ऐसी हरकतों पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से पूरे कार्यालय परिसर में कैमरे लगाने को कहा गया है.

रिकॉर्डिंग को लंबे समय तक, कम-से-कम एक साल तक, रखने का निर्देश भी दिया गया है. उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय ने मानवाधिकारों का उल्लंघन रोकने के लिए पुलिस थानों के लिए ऐसा ही एक आदेश अप्रैल, 2018 में भी दिया था. ताजा फैसले में केंद्रीय जांच एजेंसियों को भी जोड़ दिया गया है. न्यायालय ने इस साल सितंबर में दो वर्ष पूर्व के आदेश के अनुपालन के संदर्भ में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से रिपोर्ट भी देने को कहा था. अभी तक केवल 14 राज्यों ने ही जानकारी मुहैया करायी है और अधिकतर राज्य सीसीटीवी कैमरा लगाने के बारे में अदालत को ठीक से नहीं बता सके हैं.

पूर्ववर्ती आदेश में एक केंद्रीय निगरानी समिति के गठन का भी निर्देश दिया गया था और राज्यों को भी ऐसे पैनल बनाना था. जांच एजेंसियों द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन के मामले में सर्वोच्च न्यायालय की निरंतर सक्रियता से उसकी चिंता का संकेत मिलता है. इस चिंता के समुचित कारण हैं. एक अध्ययन के मुताबिक, पिछले साल हिरासत में 1731 मौतें हुई थीं यानी हर दिन औसतन पांच लोगों की जान गयी थी. भले ही इनमें से कुछ या बहुत मौतें प्राकृतिक हो सकती हैं, लेकिन इस आंकड़े को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.

इस सच से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि पुलिस कायदे-कानून से परे जाकर हिंसक व्यवहार करती रहती है. दुर्भाग्य से ऐसे अपराधों के लिए दोषियों को सजा देने के उदाहरण भी न के बराबर हैं. विभिन्न रिपोर्टों में भी यह सलाह दी जाती रही है कि पुलिस प्रणाली में व्यापक सुधारों की आवश्यकता है तथा पुलिसकर्मियों को संवेदनशील बनाया जाना चाहिए. सर्वोच्च न्यायालय ने 2006 के एक आदेश में पुलिस के विरुद्ध शिकायत दर्ज करने के लिए एक प्राधिकरण बनाने को कहा था, लेकिन कुछ ही राज्यों ने इस पर अमल किया है.

दोषियों को दंडित करने के अलावा पुलिसकर्मियों को समुचित प्रशिक्षण देने की व्यवस्था होनी चाहिए. जांच एजेंसियों और पुलिस के सामने कर्मियों की कम संख्या और संसाधनों की कमी की चुनौती भी है. इस वजह से उन पर दबाव भी अधिक होता है. इस पहलू पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए. मानवाधिकार हनन से पुलिसकर्मियों के साहस, लगन और बलिदान की उत्कृष्ट परंपरा को दागदार नहीं किया जाना चाहिए तथा नागरिकों और पुलिस के बीच भरोसे को बढ़ाना चाहिए.

Posted by : pritish Sahay

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