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और परिपक्व हुआ आइपीएल

यह आइपीएल बताता है कि चयनकर्ताओं को आगामी समय में ठोस पहल करनी होगी और भविष्य की एक टीम तैयार की जा सकती है.

इंडियन प्रीमियर लीग (आइपीएल) में गुजरात टाइटंस की जो जीत है, वह यह दर्शाती है कि यह खेल आयोजन हर साल परिपक्व होता जा रहा है. आइपीएल में बुनियादी रूप से तीन टीमों का बोलबाला था- मुंबई इंडियंस, चेन्नई सुपरकिंग और कोलकाता नाइट राइडर्स. इस साल ये टीमें आगे नहीं जा सकीं. यह दिलचस्प है कि इस आइपीएल में जो टीमें उभरकर आयी हैं, संयोग से वे पहली बार इस टूर्नामेंट में भाग ले रही थीं.

इनमें से एक गुजरात टाइटंस है और दूसरी टीम लखनऊ सुपर जायंट्स है. तीसरी टीम राजस्थान रॉयल्स है, जो सबसे संतुलित टीम दिख रही है. हालांकि यह टीम चैंपियन नहीं बन सकी, पर आनेवाले वर्षों में हम इसके बारे में सुनते रहेंगे. राजस्थान टीम की एक कमजोरी हमेशा रही है कि इसकी गेंदबाजी कमतर है. शेन वार्न के जाने के बाद से आप देखें, तो पायेंगे कि इसमें बल्लेबाज तो हमेशा बहुत उम्दा रहे हैं, पर गेंदबाज वैसे नहीं होते थे.

इस टीम ने नये फाॅर्मूले पर इस बार खेला है. आइपीएल का जो नया टेम्पलेट है, उस पर फाइनल में पहुंची दोनों टीमों ने अमल किया. तो, पहली बात यह सामने आयी है कि आइपीएल में नयी धुरी टीमों का उदय हो रहा है.

टी-20 को लेकर हमेशा यह बात होती रही है कि बैटिंग ताबड़तोड़ होनी चाहिए और गेंदबाजी कामचलाऊ भी ठीक है. एक-दो अच्छा बॉलर रहे, तो काम चल जायेगा. मतलब हम यह मानते थे कि टी-20 मूलतः बल्लेबाजों का खेल है. इन तीन टीमों- लखनऊ, गुजरात और राजस्थान- ने नया टेम्पलेट आइपीएल को दिया है. गुजरात और राजस्थान की टीमों ने पांच बहुत अच्छे गेंदबाजों का चयन किया और उनके इर्द-गिर्द बल्लेबाज खेले.

पुराने ढर्रे पर जिन टीमों ने खेलने की कोशिश की, उनमें सबसे पहला नाम है पंजाब किंग्स इलेवन का. उन्होंने ऊपर से नीचे तक बल्लेबाज भरे, पर यह रणनीति कारगर नहीं हुई. यह बदलते हुए परिदृश्य को इंगित करता है. आनेवाले समय में हम देखेंगे कि बड़े-बड़े गेंदबाजों पर बड़ी-बड़ी बोलियां लगेंगी और हर टीम गेंदबाजी पर बहुत अधिक ध्यान देगी.

तीसरी बात, जो हम इस आइपीएल के बारे में याद करेंगे, वह है हार्दिक पांड्या का नया अवतार. जब से वे क्रिकेट में आये हैं, तब से हर कोई उन्हें प्रतिभाशाली खिलाड़ी के रूप में देखता रहा है. मुंबई इंडियंस के खिलाड़ी के रूप में उनकी भूमिका चार ओवर गेंदबाजी करने और बल्लेबाजी करने की थी. उन्होंने अच्छा खेला भी था.

लेकिन इस बार गुजरात के कप्तान के तौर पर हमने हार्दिक पांड्या का नया रूप देखा. उन्होंने अपने को टीम के सामने एक उदाहरण के तौर पर पेश किया. जरूरत के हिसाब से वे तीसरे नंबर पर भी खेले और चौथे नंबर पर भी. उनके हिस्से के जो चार ओवर गेंदबाजी के थे, उसमें भी उनका प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा. गेंदबाज के रूप में उनकी क्षमता पर सवाल भी उठ रहे थे.

जो उनमें बेहतरीन था, शायद उन्होंने उसे फाइनल मैच के लिए बचाकर रखा था. जब भी कप्तान अपनी जिम्मेदारी को आगे बढ़कर निभाता है, तो उसका असर टीम पर भी पड़ता है. इससे पहले जब आइपीएल की कप्तानी के बारे में बात होती थी, तब हम धौनी, विराट कोहली की बात करते थे.

भविष्य के कप्तानों की चर्चा होती थी, तो केएल राहुल, ऋषभ पंत का नाम आता था, हार्दिक पांड्या की चर्चा नहीं होती थी. अगर उन्होंने इस प्रदर्शन को बरकरार रखा, तो आनेवाले समय में, जब रोहित शर्मा के पास कुछ साल ही हैं, लिमिटेड ओवर्स क्रिकेट में हार्दिक पांड्या का नाम एक गंभीर विकल्प के रूप में आ सकता है. इसकी एक वजह तो उनका मिसाल बनकर खेलना है. वे आक्रामक खिलाड़ी हैं, पर जरूरत होने पर वे रुक कर भी खेलते हैं.

हार्दिक पांड्या ने राहुल तेवतिया, मिलर, राशिद खान जैसे खिलाड़ियों को यह भरोसा दिया कि वे कभी भी किसी मैच का रुख पलट सकते हैं. ऊपर के दो-तीन बल्लेबाज मैच को अंत की ओर लाते थे और शेष मैच को फिनिश करते थे. पांड्या ने हर खिलाड़ी को एक भूमिका दी और खिलाड़ियों ने उसे बखूबी पूरा भी किया. इस आयोजन ने आशीष नेहरा की कोचिंग को भी रेखांकित किया है, जिस ओर अब तक कम ध्यान दिया गया है.

कोच के बारे में बात करते हुए वीवीएस लक्ष्मण, राहुल द्रविड़ और अन्य की बात होती थी, पर नेहरा का नाम नहीं आता था. लेकिन उन्होंने एक नयी टीम, जिसका कप्तान भी पहली बार आ रहा हो, का कायापलट कर दिया. नेहरा दिल्ली के खिलाड़ी रहे हैं और रणजी ट्रॉफी में लंबे समय तक खेला है. जो उन्हें लंबे समय से खेलते हुए देखते-समझते रहे हैं, वे जानते हैं कि नेहरा के पास एक तेजतर्रार क्रिकेट मानस है. भविष्य में उनके प्रशिक्षण कौशल पर लोगों की निगाह रहेगी.

वे भारतीय टीम के प्रशिक्षक होने के दावेदार के रूप में भी उभर सकते हैं. इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारतीय क्रिकेट को आइपीएल ने हमेशा के लिए बदल दिया है. विडंबना है कि बीते कई सालों से हम लिमिटेड ओवर्स में कोई आइसीसी ट्रॉफी नहीं जीत सके हैं. यह आइपीएल बताता है कि चयनकर्ताओं को आगामी समय में ठोस पहल करनी होगी और भविष्य की एक टीम तैयार की जा सकती है. इस संबंध में इंग्लैंड का मॉडल अनुकरणीय हो सकता है. (बातचीत पर आधारित).

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