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क्रिप्टो कारोबार का नियमन हो

डिजिटल लेन-देन पर नजर रखने और कुछ कर संग्रहण करने (स्टॉक बाजार की तरह) के लिए क्रिप्टो कारोबार का नियमन करना बेहतर है.

हाल में एक रेस्तरां में जाना बड़ा संतोषप्रद रहा. दोस्तों से मुलाकात और बातचीत हुई तथा बढ़िया खाना खाया गया. जब बिल आया, तो सबकी भौहें तन गयीं. बिल के साथ वेटर ने पांच-पांच सौ रुपये के दो वाउचर भी नत्थी किये थे. हमने पूछा, तो उसने बताया कि अगली बार आने पर उनका इस्तेमाल किया जा सकता है. ऐसा कभी भी किया जा सकता था और इसे किसी को दे भी सकते थे. ग्राहक को दोबारा बुलाने और उसके प्रति निष्ठा का यह नया तरीका है.

अगर मैं वाउचर को किसी दोस्त या अनजान व्यक्ति को दे दूं या कुछ छूट पर बेच दूं या इसे सोशल मीडिया पर बेचने की कोशिश करूं, तो क्या ऐसे लेन-देन को अवैध माना जायेगा? क्या नगदी के बदले वाउचर बेचने से देश की मौद्रिक नीति का उल्लंघन होगा या इससे भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक संप्रभुता को नुकसान होगा? ये सवाल सरल नहीं हैं.

सत्तर के दशक में वाउचर की तरह एक योजना रेमन बोनस स्टांप नाम से चलती था. हर खरीद पर ये स्टांप मिलते थे, जिनकी अदला-बदली उपहार के बदले की जा सकती थी या इसे दोस्तों को दे सकते थे. कुछ लोगों ने इसे नगदी में भी भुनाया होगा. यह एक बड़ी सफल योजना थी, लेकिन जल्दी ही कुछ कारोबारियों ने केवल ‘बोनस स्टांप’ छापना शुरू कर दिया, जिसके समांतर मुद्रा बनने का खतरा पैदा हो गया. ऐसे में रेमन स्टांप को बंद करना पड़ा.

वह दौर होलोग्राम और क्यूआर कोड से पहले का था, जिनसे नकली स्टांपों को रोका जा सकता था. पर अचरज नहीं कि निष्ठा कार्यक्रम चलते रहे और आज भी होटलों, जहाजों या आमेजन पर इनसे सामान खरीदे जा सकते हैं. वाॅलेट व्यवस्था से बहुत चीजें और सेवाएं ली जा सकती हैं. प्रीपेड वाॅलेट के लिए कई तरह के नियमन की जरूरत पड़ी, पर उन पर पाबंदी नहीं लगी.

अब क्रिप्टो करेंसी की नयी दुनिया पर विचार करें. यह संज्ञा ठीक नहीं है क्योंकि अभी वे संप्रभु मुद्राओं को हटानेवाली समांतर मुद्रा नहीं हुई है. लेकिन ब्लॉकचेन तकनीक पर आधारित बिटक्वाइन के संस्थापक संप्रभु मुद्राओं के खिलाफ विद्रोह करना चाहते थे, सो इससे करेंसी का नाम जुड़ गया. पर रेमन स्टांप या आमेजन जैसे वाॅलेट पर चिंता नहीं करनेवाले प्राधिकरण क्रिप्टो करेंसी से इतने बेचैन क्यों हैं?

जल्दी ही संसद में सभी निजी क्रिप्टो करेंसी पर पाबंदी लगाने का विधेयक पेश होनेवाला है. ऐसी करेंसियां अगर सैकड़ों नहीं, तो दर्जनों की संख्या में तो जरूर हैं. चीन, वियतनाम, मोरक्को और बोलिविया ने पहले ही निजी क्रिप्टो करेंसियों पर प्रतिबंध लगा दिया है. लेकिन अधिकतर देशों में ऐसी क्रिप्टो-परिसंपत्तियों का खूब कारोबार होता है. क्रिप्टो करेंसी का कारोबार और मालिकाना दुनियाभर में फैले इलेक्ट्रॉनिक लेजर पर आधारित होता है, जिसमें बदलाव नहीं किया जा सकता है.

इसे विकेंद्रीकृत ब्लॉकचेन तकनीक भी कहा जाता है. जिस तरह से आधार संख्या को तुरंत सुदूर स्थित सर्वर से प्रमाणित किया जाता है और जो सरकार द्वारा बहुत सुरक्षित प्रक्रिया से प्रबंधित किया जाता है, उसी तरह क्रिप्टो का भी प्रमाणन किया जाता है. लेकिन यह सत्यापन किसी केंद्रीय सत्ता या सरकार पर निर्भर नहीं होता है. यह क्रिप्टोग्राफी के परिष्कृत गणित और अल्गोरिदम पर आधारित होता है.

बहुत सक्षम साइबर विशेषज्ञ या हैकर भी क्रिप्टो परिसंपत्ति के मालिकाना की सुरक्षा में सेंध नहीं लगा सकता है. इसी कारण एक दशक से अधिक समय से यह निवेशकों की पसंद बना हुआ है. क्रिप्टो सिक्कों का ‘खनन’ अल्गोरिदम से किया जाता है और उनकी संख्या निश्चित होती है.

कोई भी व्यक्ति इस सीमा को पार नहीं कर सकता है. इसमें सबसे पहला बिटक्वाइन है, जिसका मूल्य 65 हजार डॉलर की ऊंचाई तक पहुंच चुका है. जेपी मॉर्गन के विशेषज्ञों के अनुसार इसका लक्षित मूल्य 1.20 लाख डॉलर तक पहुंच सकता है. इसीलिए निवेशक इसकी ओर आकर्षित होते हैं और इसी कारण इसके मूल्य में बहुत उतार-चढ़ाव होता रहता है.

इससे भारतीय निवेशक भी प्रभावित हुए हैं. आकलनों की मानें, तो दो करोड़ भारतीयों ने क्रिप्टो में करीब 40 हजार करोड़ रुपये का निवेश किया है. हाल में हुए टी-20 क्रिकेट विश्वकप में क्रिप्टो एक्सचेंजों ने टीवी विज्ञापनों पर करीब 50 करोड़ रुपये खर्च किया है. अखबारों के पहले पन्ने पर भी विज्ञापन दिये गये, जिनमें कहा गया गया कि क्रिप्टो से आपका निवेश दोगुना हो सकता है.

इसी वजह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लोगों को आगाह करते हुए बयान देना पड़ा, लेकिन वे भ्रामक विज्ञापनों की ओर संकेत कर रहे थे, न कि क्रिप्टो परिसंपत्तियों पर. अचरज की बात नहीं कि इसके बाद विज्ञापनों में बहुत नरमी आ गयी. पर इससे यह आशंका भी हुई कि सरकार पूरी तरह से क्रिप्टो पर पाबंदी लगा देगी. इससे निवेशक बेचैन हो उठे और दाम आधे से भी कम हो गये.

चूंकि यह ब्लॉकचेन तकनीक पर आधारित है, जो समझौतों की सुरक्षा बढ़ाने और सीमाओं से परे लेन-देन में मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगी तथा रिजर्व बैंक की डिजिटल करेंसी का भी आधार होगी, इसलिए क्रिप्टो पर पाबंदी लगाना समझदारी की बात नहीं होगी. सोना में कुछ निवेश करने की तरह अगर लोग कुछ पैसा क्रिप्टो में भी लगाते हैं, तो इससे संप्रभु मुद्रा की स्थिरता पर कोई खतरा नहीं है और न ही इससे मौद्रिक नीति बेमतलब हो जायेगी.

लोग आकस्मिक मुद्रास्फीति के समय बचाव के लिए सोना खरीदते हैं. मुद्रास्फीति से प्रभावित रहनेवाली मुद्रा में अविश्वास दिखाने का यह उनका ढंग है. इसी तरह, अगर लोग क्रिप्टो करेंसी खरीदते हैं, तो वे नगद मुद्रा के प्रति कुछ अविश्वास प्रकट करते हैं. डिजिटल लेन-देन पर नजर रखने और कुछ कर संग्रहण करने (जैसे स्टॉक बाजार में होता है) के लिए क्रिप्टो कारोबार का नियमन करना बेहतर है.

इसमें संदेह नहीं कि बढ़ती स्वीकार्यता के साथ इसका इस्तेमाल वस्तुओं और सेवाओं की खरीद के लिए भी हो सकता है, पर उसका भी नियमन हो सकता है. आतंकवाद या नशीले पदार्थों के लिए इसके इस्तेमाल को रोकने के लिए निगरानी तकनीक का उपयोग हो सकता है. यदि क्रिप्टो लेन-देन देश की सीमा से बाहर होता है और इसका मतलब पूंजी का पलायन है, तो यह सोने के सालाना आयात में पहले से ही हो रहा है.

जब तक इस कारोबार का आकार राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की तुलना में छोटा है, चिंतित होने का कोई मतलब नहीं है. सक्रिय क्रिप्टो बाजार की मौजूदगी को देखते हुए संप्रभु मुद्रा को स्थिर रखने की चुनौती है और यही क्रिप्टो को लेकर सनक को रोकने का सबसे प्रभावी उपाय है.

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