दी में किसी विशेष अभिव्यक्ति के लिए गढ़ा गया शब्द किस भाषा का कहलायेगा, हिंदी का या संस्कृत का? संस्कृत से हिंदी में जस के तस चले आये शब्दों को आमतौर पर तत्सम रूप में पहचाना जाता है. तत्सम का मूल आशय तत् सम यानी ‘उस जैसा’ है. हिंदी ने संस्कृत वाङ्मय और परंपरा के जिन शब्दों को जस का तस स्वीकार कर लिया है, उन्हें ही तत्सम कहा जाता है. ऐसे शब्दों को भी तत्सम कहा जा सकता है जो अपने गढ़न में संस्कृत जैसे हैं.
संस्कृत पैटर्न : संस्कृत के पैटर्न पर गढ़े गये शब्दों को भी शब्दकोशों में संस्कृत के खाते में दर्ज किया गया है. आमतौर पर शब्दकोशों में उन्हीं शब्दों को दर्ज किया जाता है जो उस भाषा के लिखित साहित्य में अभिव्यक्त होते हैं. हालांकि, अनेक भाषाओं में वाचिक परंपरा में ही शब्द-संपदा बिखरी हुई है और वह लिखित रूपों से ज्यादा अर्थवान है.
विकास और विकासशील : मिसाल के तौर पर हम ‘विकास’ शब्द की बात करें. यह संस्कृत शब्द है. मगर विकासवाद, विकासशील अथवा विकासोन्मुख जैसे शब्द संस्कृत साहित्य से नहीं आते हैं. इन्हें अंग्रेजी शब्दों के आधार पर गढ़ा गया है. अपनी मूल प्रकृति में इनका आधार संस्कृत है और उपसर्गों, प्रत्ययों के योग से इन्हें अंग्रेजी का पर्यायी बनाया गया है. ऐसे में इन्हें तत्सम कहना ज्यादा सही होगा, बनिस्बत इसके कि इसे संस्कृत मूल का बता दिया जाये.
सर्वेक्षण, पर्यवेक्षण : ऐसे अनेक शब्द हैं जो हिंदी की आवश्यकता के लिए हिंदी की तत्सम शब्दावली से बनाये गये हैं, मगर उन्हें भी संस्कृत के खाते में डाल दिया जाये, तो शोधकर्ताओं के लिए मुश्किल होगी. कोश को ही अंतिम सत्य नहीं माना जा सकता, पर लोग मानते हैं. सर्वेक्षण भी ऐसा ही शब्द है. मुझे संस्कृत कोशों में इसकी प्रविष्टि नहीं मिलती. वहां ‘पर्यवेक्ष’ तो है, मगर पर्यवेक्षण नहीं है. अलबत्ता पर्यवेक्ष के आधार पर पर्यवेक्षण को संस्कृत का माना जा सकता है.
अंग्रेजी के सर्वे के लिए हिंदी में सर्वेक्षण प्रचलित शब्द है. इसे तत्सम कहा जा सकता है, पर हिंदी कोशों में इसे संस्कृत लिखा गया है. मुझे मोनियर विलियम्स और आप्टे के संस्कृत कोशों में सर्वेक्ष तक नहीं मिला. जाहिर है यह सर्वे की पर्यायी रचना है जो प्रकृति में संस्कृतसम है इसलिए तत्सम कहना बेहतर होगा.
भेरंट, भेरंटेड : कोई भी भाषा अपनी अभिव्यक्ति बढ़ाने के लिए जिस भी माध्यम से शब्द लेती है, उसका स्रोत वही होता है. किंतु अगर वह अपनी अभिव्यक्ति के लिए कोई शब्द गढ़ती है तो वह शब्द उसी भाषा का माना जायेगा न कि गढ़न, प्रकृति के आधार पर किसी अन्य भाषा का. ग्वालियर-शिवपुरी क्षेत्र में बहुत अच्छा, अद्भुत, अनुपम, बेहतरीन के अर्थ में भेरंट शब्द का प्रयोग होता है.
अब इसका भेरंटेड रूप भी आ गया है. इस वजह से यह अंग्रेजी का तो नहीं हो जायेगा? विकीरणशील को संस्कृत का मानेंगे या हिंदी का! यहां प्रसंगवश का उल्लेख करना चाहूंगा जिसे हिंदी कोशों में संस्कृत का माना है और मैं सहमत भी हूं, क्योंकि संस्कृत में यह प्रसङ्गवशात् रूप में उपस्थित है. हिंदी ने अपनी प्रकृति के अनुरूप प्रसंगवश बना लिया.
रागदारी किस भाषा का! : एक अलग किस्म की मिसाल देखें. रागदारी का मूल आशय भारतीय शास्त्रीय संगीत है. इसके अलावा शास्त्रीय अंग के अनुरूप राग-रागिनियों को गाने की पद्धति, संस्कार या परंपरा को रागदारी कहा जाता है. यह उर्दू-फारसी परंपरा पर तैयार किया गया शब्द है जो मध्यकाल से प्रचलित है. इसमें पूर्वपद संस्कृत है और उत्तरपद फारसी. एक शब्दकोश में इसे संस्कृत का बता दिया गया है. एक अन्य में राग को संस्कृत और दारी को फारसी बता कर काम चला लिया गया है. आजादी से पूर्व हिंदी के लिए हिंदुस्तानी शब्द प्रचलित था जिसमें उर्दू समाहित थी. यही थी गंगो-जमन की भाषा. हिंदवी.
हिंदी, हिंदुस्तानी या रेख्ता : हिंदी पर तत्सम प्रभाव दिखना स्वाभाविक है मगर उसे संस्कृतनिष्ठता तक ले जाना उचित नहीं. पर रागदारी जैसे शब्दों की क्या गलती जो आप उसे उर्दू के खाते में डाल रहे हैं, न फारसी के. गजब यह कि इसे हिंदुस्तानी का बताना तो दूर, संस्कृत का बता रहे हैं! मेरा मानना है कि रागदारी के ‘राग’ को संस्कृत का कहना भी ठीक नहीं. यह पद पहली बार खड़ी बोली में बना या रेख्ता में इसमें न पड़ते हुए यह देखें कि हरियाणा-पंजाब से लेकर ठेठ भोजपुर क्षेत्र और धुर महाराष्ट्र तक जो राग-रागनी पद प्रचलित था, उसकी पहचान संस्कृत से थी या उन लोकभाषाओं से! ‘दारी’ प्रत्यय जिस ‘राग’ में लगा दरअसल वह संस्कृत का राग नहीं था, बल्कि स्थानीय बोली का राग था.
पहरेदार हिंदी का और रागदारी! : रागदारी के साथ शब्दकोशकार भ्रम में रहे, मगर पहरेदार के साथ यह स्थिति नहीं है. जबकि, दोनों की स्थिति एक समान है. पहरा हिंदी शब्द है और संस्कृत के प्रहर से आ रहा है. दार फारसी प्रत्यय है. चूंकि, इसका निर्माण हिंदी की जमीन पर हुआ है इसलिए कोशों में इसे हिंदी शब्द ही माना है. रागदारी के साथ भी कोई समस्या नहीं होनी चाहिए. रागदारी, पहरेदार या अफसोसजनक जैसे शब्दों में कुछ भी गलत नहीं है.
बात साझेदारी की : तो इस किस्म की बातें हैं जो विचारार्थ रख रहा हूं. उम्मीद है बेहतर साझेदारी सामने आयेगी. मेरे लिखे को न शुद्धतावाद समझें, न संस्कृत का विरोध और न ही उर्दू बनाने की कोशिश. मैं एक भाषा प्रेमी हूं और सिर्फ समझ बढ़ा रहा हूं. इस रास्ते से भाषाओं के मूल स्वभाव और बरतने वालों की दृष्टि को जानने-समझने के लिए प्रयासरत हूं.