पिछले कई सालों में भारत के कारोबार की सबसे बड़ी कामयाबियों की कोई भी सूची पेटीएम के जिक्र बिना अधूरी ही थी. पेटीएम को या उसकी शुरुआत करनेवाले विजय शेखर शर्मा को डिजिटल पेमेंट का बादशाह कहा जाए, तो गलत न होगा. फिर क्या वजह रही कि जब पेटीएम चलानेवाली कंपनी वन नाइंटी सेवेन कम्युनिकेशंस अपना आइपीओ लेकर आयी, तो बाजार ने भारी उत्साह नहीं दिखाया.
अठारह हजार तीन सौ करोड़ रुपये के भारी-भरकम इशू के लिए दो गुना से ज्यादा अर्जियां आयीं, पर जिस दिन यह शेयर बाजार में लिस्ट हुआ, उस दिन भारी झटका लगा. बाजार बंद होते-होते इसका शेयर इशू प्राइस के मुकाबले करीब 27 प्रतिशत नीचे चला गया. तीन दिन की छुट्टी के बाद बाजार खुला, तो इसमें करीब 12 फीसदी की और गिरावट आयी. उसके बाद से शेयर ने संभलना शुरू किया है. जिन लोगों ने पहले दो दिन में शेयर बेच दिये, उन्हें दोहरा झटका लगा- पहले घाटा और अब अफसोस कि जल्दी क्यों बेच दिया?
इसकी शुरुआती गिरावट कोई अनहोनी नहीं थी. कंपनी के कामकाज, घाटे, कारोबार में बढ़ते मुकाबले और अनिश्चित भविष्य की आशंकाओं को देखते हुए तमाम जानकार चेतावनी दे चुके थे कि पेटीएम में पैसा लगाना शायद ठीक नहीं होगा. फिर भी पेटीएम का आइपीओ इतना चल गया कि पैसा वसूल हो गया यानी पेटीएम का काम हो गया. उसमें जिन निवेशकों ने पहले से पैसा लगा रखा था, उनमें से कई को मुनाफा निकालने का मौका मिल गया और वह पैसा आया उन लोगों की जेब से, जिन्होंने आइपीओ में अर्जी लगायी. पिछले डेढ़-दो साल में भारतीय शेयर बाजार में ढाई करोड़ से ज्यादा नये निवेशक आये हैं.
इनमें से ज्यादातर नौजवान हैं. जाहिर है इनकी जिंदगी में जोमैटो, स्विगी, नाइका और पेटीएम का खूब इस्तेमाल होता है. यही वजह है कि इन्हें लगा कि पेटीएम जैसी शानदार कंपनी में पैसा लगाने का मौका क्यों चूका जाए? इनमें वे लोग भी थे, जो पहले जोमैटो और नाइका में अर्जी लगा चुके थे, लेकिन अलॉटमेंट न मिलने से हताश थे. पेटीएम में अर्जी लगाने की यह वजह भी रही कि यहां अलॉटमेंट की संभावना ज्यादा दिख रही थी. भारत के इतिहास का अब तक का सबसे बड़ा आइपीओ था, इसलिए उसमें शेयर मिलने की उम्मीद ज्यादा होनी ही थी.
लोगों ने पहले यह पड़ताल करना जरूरी नहीं समझा कि यहां इस भाव पर पैसा लगाना सही रहेगा या नहीं. इस किस्से का सबसे बड़ा सबक यही है कि अगर आप किसी कंपनी के पक्के ग्राहक हैं और आपको उस कंपनी का काम बहुत पसंद है, तब भी यह जरूरी नहीं कि उसमें पैसा लगाकर भी आप इतने ही खुश रहेंगे. पेटीएम के ठीक पहले घाटे में चल रही जोमैटो के आइपीओ में अड़तीस गुना ज्यादा अर्जियां आयीं और लिस्टिंग के दिन भी शेयर अपने इशू प्राइस से करीब डेढ़ गुना रहा. नाइका ने तो मुनाफा कमाना शुरू भी कर दिया है, इसलिए इसके आइपीओ में 82 गुना ओवरसब्सक्रिप्शन आया और लिस्टिंग भी लगभग 90 फीसदी ऊपर हुई.
यूं तो ये सब एक जैसी कंपनियां मानी जा सकती हैं, लेकिन पेटीएम में घाटा होता जा रहा है. विश्लेषकों के मुताबिक जल्दी से जल्दी यह कंपनी शायद 2030 में मुनाफे में आ सकती है, जबकि नाइका मुनाफे में है और जोमैटो का कारोबार मुनाफे के रास्ते पर है. एक बात और दिखती है कि अगर पेटीएम के शेयर कुछ कम पर दिये जाते, तो शायद अर्जियां भी ज्यादा आतीं और लिस्टिंग के दिन भी बुरा हाल न होता. ध्यान देने की बात यह भी है कि पेटीएम आइपीओ में 53 फीसदी शेयर तो प्रोमोटर और पुराने निवेशकों के खाते से ही आ रहे थे यानी इनसे मिली रकम कंपनी के पास नहीं, बल्कि उनकी जेब में गयी.
कंपनी का कारोबार बढ़ाने या बेहतर करने में इस पैसे की कोई भूमिका नहीं होनेवाली थी. हालांकि यह कहना मुश्किल है कि आइपीओ और लिस्टिंग कमजोर रहने का मतलब कंपनी में गड़बड़ है. कंपनी इसके बाद भी अच्छा काम कर सकती है और हो सकता है कि लंबे समय में निवेशकों को बहुत फायदा हो.
लेकिन इस वक्त फिक्र यह है कि कहीं माहौल न बिगड़ जाए. पहले भी देखा गया है कि जब बाजार बुलंदी पर होता है, तब फायदा उठाने के लिए भी बहुत-सी कंपनियां बाजार में आ जाती हैं तथा ऊंचे भाव पर शेयर बेचने में कामयाब हो जाती हैं. बाद में जब घाटा होता है, तो पैसा लगानेवाले लोग न सिर्फ घाटा उठाते हैं, बल्कि ज्यादातर लोग बाजार छोड़कर भाग जाते हैं. अभी सबसे ज्यादा डर यही है कि बाजार में आये नये लोग अगर एक-आध बार दूध से जल गये, तो फिर छाछ पीने से भी परहेज करेंगे.
अब सेबी कह रहा है कि वह इस पर जोर देगा कि आइपीओ के विज्ञापनों में जोखिम का जिक्र प्रमुखता से हो. यहां यह भी साफ करना जरूरी है कि आइपीओ ही शेयरों में पैसा लगाने का सुनहरा मौका नहीं होता, खुले बाजार से अच्छे शेयर खरीद कर आप बेहतर कमाई कर सकते हैं. आइपीओ में अर्जी लगानेवालों को इतनी मेहनत तो करनी ही चाहिए कि वे कंपनी के बारे में बुनियादी जानकारी जुटा लें. अगर आप इतना भी नहीं कर सकते, तो फिर शेयर बाजार को दोष देना सही नहीं होगा.