भारतीय दर्शन में स्त्री शक्ति है. शक्ति स्वयं समर्थ और सक्षम होती है. स्त्री विद्या, बुद्धि और लक्ष्मी भी है. हमारी संस्कृति में स्त्री एकसाथ शक्ति, बुद्धि और वैभव को रूपायित करती है, जिसे दुनिया ने भी स्वीकारना शुरू कर दिया है. ऑस्ट्रेलियाई कार्यकर्ता जीडी एंडरसन ने 2014 में कहा था- ‘नारीवाद महिलाओं को सशक्त करने का नाम नहीं है. वह पहले ही सशक्त हैं.
यह उनके प्रति दुनिया के नजरिये को बदलने का प्रयास है.’ जिस बात का अनुभव वे आज कर रही हैं वह भारतीय परंपरा के आधारभूत तत्वों में से है. प्राचीन भारतीय परंपरा में नारी प्रारंभ से ही इतनी सशक्त रही है कि एक ओर वह विद्याध्ययन और शास्त्रार्थ में प्रतिष्ठित थी, तो दूसरी ओर युद्ध के मैदान में शत्रुओं के सामने पराक्रम का भी प्रदर्शन करती थी.
इतिहास के कालखंड विशेष में कुछ विसंगतियों के चलते आज हमें देश में स्त्री सशक्तीकरण अथवा उनके अधिकारों की बात करनी पड़ रही है. ऋग्वेद में मुद्गलानी नामक ऋषिका का वर्णन है, जिन्होंने कई राजाओं को हराकर हजारों गायों को जीता था. उसी तरह विपस्सला नामक ऋषिका थीं, जिनका युद्ध में हस्तभंग होने का भी वर्णन मिलता है. वेदों में रोमसां से लेकर अपाला, लोपामुद्रा जैसे अनेक नाम मिलते हैं जो स्त्रियों की सशक्त उपस्थिति का उदाहरण हैं.
प्राचीन काल में स्त्रियां न केवल कला और साहित्य, बल्कि युद्ध कौशल में भी निपुण थीं. ये परंपरा हमें आगे चलकर जनजातीय वीरांगनाएं फूलो और झानो से लेकर रानी रूद्रमा, रानी दुर्गावती, रानी चेन्नमा, रानी लक्ष्मीबाई और रानी गाइदिन्ल्यू के यहां मिलती हैं.
इसके बरक्स, पश्चिम में स्त्रियों की स्थिति बड़ी निम्न रही है. उन्हें डायन बताकर जला दिया जाता था. अट्ठारहवीं सदी में पहली बार किसी पुरुष यानी जॉन स्टुअर्ट मिल ने पुस्तक ‘ऑन लिबर्टी’ के माध्यम से स्त्री मुक्ति की बात की, जबकि भारतीय परंपरा में ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमंते तत्र देवता’ की बात प्राचीन काल से ही होती रही है. पाश्चात्य प्रभाव में हम अपने सांस्कृतिक इतिहास को भूल जाते हैं.
फ्रांसीसी क्रांति से उपजे समानता, स्वतंत्रता, विश्वबंधुत्व को आज हम लोकतंत्र की नींव के रूप में देखते हैं. पर, इसी समय स्त्रियों से संबंधित एक बड़ी भयावह घटना को नहीं बताया जाता है. क्रांति के बाद ‘ऑलिम द गूज’ नामक एक महिला पूछती है कि ‘इस क्रांति के बाद स्त्रियों की क्या स्थिति होगी?
उन्हें क्या मिलेगा?’ ‘क्रांतिकारियों’ ने इस महिला का सिर लोहे की कड़ाही में रखकर घोड़े के पैर से कुचलवा दिया. यह थी पश्चिम में स्त्रियों की दशा. आज हमें अपने प्राचीन अभिलेखों, शिलालेखों और साहित्य को व्याख्यायित करने की जरूरत है.
साहित्य चेतना की दृष्टि से भी भारत में स्त्रियों की मुक्ति का विचार पश्चिम से पहले पनपा. माना जाता है कि विख्यात फ्रेंच नारीवादी दार्शनिक सिमोन द बोउआ की 1949 में आयी पुस्तक ‘द सेकंड सेक्स’ से पश्चिम में नारीवाद का आरंभ हुआ. लेकिन उसके पहले ही, 1942 में महादेवी वर्मा ‘शृंखला की कड़ियां’ में भारतीय परिप्रेक्ष्य वाले नारीवाद को मजबूती के साथ अभिव्यक्त कर चुकी थीं.
संयुक्त राष्ट्र ने लैंगिक समानता को सतत विकास लक्ष्यों में प्रमुखता देते हुए संपूर्ण विश्व से इस दिशा में आगे बढ़ने का आह्वान किया है. शिक्षा, स्वास्थ्य, राजनीतिक तथा आर्थिक निर्णय प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी को संयुक्त राष्ट्र ने मानवता के कल्याण के लिए आवश्यक बताया है.
इस दृष्टि से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के प्रयासों को देखा जाये तो वह महिलाओं के लिए शैक्षणिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विकास के लिए लाभकारी हैं. इतिहास के कालखंड में महिलाओं की स्थिति अपेक्षाकृत कठिन हो गयी. लेकिन, मोदी सरकार द्वारा लड़कियों को समान शिक्षा और अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसे अभियान से बड़ा परिवर्तन दिख रहा है.
इसी तरह ‘बीजिंग डेक्लेरेशन’ के अनुरूप महिलाओं के आर्थिक विकास के लिए रोजगार सुनिश्चित करना, किशोरियों के सशक्तीकरण के प्रयास, ‘सुकन्या समृद्धि योजना’ और माताओं के लिए ‘जननी सुरक्षा योजना’ जैसी योजनाएं लैंगिक समानता के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए भारत के संकल्प को दिखाती हैं. संयुक्त राष्ट्र ने भी इन प्रयासों की सराहना की है. आज आईटी, मेडिकल, सेना, खेलकूद, राजनीति और प्रशासन, खेती से लेकर कॉरपोरेट तक महिलाओं की प्रत्यक्ष भागीदारी के जगमगाते कीर्तिमान हैं.
मोदी सरकार ने दलित, पिछड़े, आदिवासी और ईडब्ल्यूएस वर्ग की लड़कियों के समग्र विकास के लिए दीनदयाल अंत्योदय योजना, आदिवासी महिला सशक्तीकरण योजना, कौशल विकास और रोजगार को समर्पित ऐसी योजनाएं लागू की हैं, जो महिलाओं के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती हैं.
आज घर-घर शौचालय, गरीब महिलाओं के लिए मुफ्त गैस कनेक्शन, आयुष्मान भारत स्वास्थ्य योजना, हर घर बिजली और हर घर नल का जल जैसी योजनाएं महिलों के जीवन में क्रांति ला रही हैं. मोदी सरकार के आने के बाद महिलाओं की आर्थिक भागीदारी बढ़ी है. महिलाओं के बैंक खाते और मोबाइल फोन में 2015 के बाद से क्रमशः 28 प्रतिशत और 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. इसी तरह नेशनल फैमिली एंड हेल्थ सर्वे-5 के अनुसार, 2015 से 10 साल से अधिक स्कूली शिक्षा पानेवाली महिलाओं की हिस्सेदारी में 5.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में बेटियों और महिलाओं के लिए अनेक प्रावधान हैं. मोदी सरकार ने पद्मश्री और पद्मभूषण जैसे प्रतिष्ठित नागरिक पुरस्कारों के लिए दलित, पिछड़े, आदिवासी और ईडब्ल्यूएस वर्ग से महिलाओं को सम्मानित करने का उपक्रम शुरू किया है जिनके बारे में आज तक कभी सोचा भी नहीं गया था. मैं यह नहीं कहती कि महिलाओं की सभी समस्याएं खत्म हो गयी हैं. लेकिन यह जरूर कहना चाहूंगी कि इसी तरह के प्रयास यदि समग्रता में चलते रहे, तो वह दिन दूर नहीं जब हम पुनः उसी प्राचीन गौरव को प्राप्त करने में सफल होंगे जिसमें महिलाओं का पूर्ण सम्मान और गरिमा सुनिश्चित हो सकेगी.