9.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

जनजातीय गौरव के लिए राष्ट्र प्रतिबद्ध

जनजातीय गौरव दिवस के इस ऐतिहासिक अवसर पर हम सभी देश के लिए जनजातीय लोगों और नायकों की निःस्वार्थ सेवा और बलिदान को सलाम करते हैं.

भारत में 700 से अधिक जनजातीय समुदाय के लोग निवास करते हैं. देश की ताकत इसकी समृद्ध सांस्कृतिक विविधता में निहित है. जनजातीय समुदायों ने अपनी उत्कृष्ट कला और शिल्प के माध्यम से देश की सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध किया है. उन्होंने अपनी पारंपरिक प्रथाओं के माध्यम से पर्यावरण के संवर्धन, सुरक्षा और संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभायी है.

अपने पारंपरिक ज्ञान के विशाल भंडार के साथ जनजातीय समुदाय सतत विकास के पथ प्रदर्शक रहे हैं. राष्ट्र निर्माण में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका को मान्यता देते हुए हमारे संविधान ने जनजातीय संस्कृति के संरक्षण और अनुसूचित जनजातियों के विकास के लिए विशेष प्रावधान किये हैं. औपनिवेशिक शासन की स्थापना के दौरान ब्रिटिश राज ने देश के विभिन्न समुदायों की स्वायत्तता का अतिक्रमण करनेवाली नीतियों की शुरुआत की तथा लोगों और समुदायों को अधीन करने के लिए कठोर कदम उठाये.

इससे विशेष रूप से जनजातीय समुदायों में जबरदस्त आक्रोश पैदा हुआ. ब्रिटिश नीतियों ने पारंपरिक भूमि-उपयोग प्रणालियों को तहस-नहस कर जमींदारों का एक वर्ग तैयार किया और उन्हें जनजातीय क्षेत्रों में भी जमीन पर अधिकार दे दिया. अन्यायपूर्ण कर प्रणाली तथा बढ़ते दमन के साथ औपनिवेशिक प्रशासन द्वारा वसूली और साहूकारों के शोषण ने आक्रोश को और गहरा किया, जिससे जनजातीय क्रांतिकारी आंदोलनों की उग्र शुरुआत हुई. जनजातीय समुदायों ने आधुनिक हथियारों को नहीं अपनाया और अंत तक अपने पारंपरिक हथियारों के साथ संघर्ष जारी रखा.

ब्रिटिश राज के खिलाफ बड़ी संख्या में हुए जनजातीय क्रांतिकारी आंदोलनों में कई आदिवासी शहीद हुए, जिनमें कुछ प्रमुख नाम हैं- तिलका मांझी, टिकेंद्रजीत सिंह, वीर सुरेंद्र साई, तेलंगा खड़िया, वीर नारायण सिंह, सिदो और कान्हू मुर्मू, रूपचंद कंवर, लक्ष्मण नाइक, रामजी गोंड, अल्लूरी सीताराम राजू, कोमराम भीमा, रमन नाम्बी, तांतिया भील, गुंदाधुर, गंजन कोरकू सिलपूत सिंह, रूपसिंह नायक, भाऊ खरे, चिमनजी जाधव, नाना दरबारे, काज्या नायक और गोविंद गुरु आदि.

इन शहीदों में से सबसे करिश्माई बिरसा मुंडा थे, जो वर्तमान झारखंड के मुंडा समुदाय के एक युवा थे. उन्होंने एक मजबूत प्रतिरोध का आधार तैयार किया, जिसने जनजातीय लोगों को औपनिवेशिक शासन के खिलाफ लगातार लड़ने के लिए प्रेरित किया. बिरसा ने जनजातियों के बीच ‘उलगुलान’ (विद्रोह) का आह्वान करते हुए आदिवासी आंदोलन को संचालित किया.

युवा बिरसा समाज में सुधार भी करना चाहते थे और उन्होंने उनसे नशा, अंधविश्वास और जादू-टोना में विश्वास न करने का आग्रह किया और प्रार्थना के महत्व, भगवान में विश्वास रखने एवं आचार संहिता का पालन करने पर जोर दिया. उन्होंने जनजातीय समुदाय के लोगों को अपनी सांस्कृतिक जड़ों को जानने और एकता का पालन करने के लिए प्रोत्साहित किया.

वे इतने करिश्माई जनजातीय नेता थे कि जनजातीय समुदाय उन्हें ‘भगवान’ कहकर बुलाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमेशा जनजातीय समुदायों के बहुमूल्य योगदानों, विशेष रूप से स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उनके बलिदानों पर जोर दिया है. वर्ष 2016 में स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में उन्होंने घोषणा की थी, जिसमें जनजातीय समुदाय के बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों की स्मृति में देश के विभिन्न हिस्सों में स्थायी समर्पित संग्रहालयों के निर्माण की परिकल्पना की गयी थी, ताकि आने वाली पीढ़ियां उनके बलिदान के बारे में जान सकें.

इस घोषणा का अनुसरण करते हुए जनजातीय कार्य मंत्रालय विभिन्न स्थानों पर राज्य सरकारों के सहयोग से संग्रहालयों का निर्माण कर रहा है. सबसे पहले बन कर तैयार होनेवाला संग्रहालय रांची का बिरसा मुंडा स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय है, जिसका उद्घाटन इस अवसर पर प्रधानमंत्री द्वारा किया जा रहा है. जनजातीय समुदायों के बलिदानों एवं योगदानों को सम्मान देते हुए भारत सरकार ने 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में घोषित किया है.

इस तिथि को भगवान बिरसा मुंडा की जयंती होती है. यह वाकई जनजातीय समुदायों के लिए एक मार्मिक क्षण है, जब देश भर में जनजातीय समुदायों के बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष को आखिरकार स्वीकार किया गया है. देश के विभिन्न हिस्सों में 15 नवंबर से लेकर 22 नवंबर तक सप्ताह भर चलनेवाले समारोहों के दौरान बड़ी संख्या में गतिविधियों का आयोजन किया जा रहा है.

जनजातीय गौरव दिवस मनाने के इस ऐतिहासिक अवसर पर देश विभिन्न इलाकों के अपने उन नेताओं एवं योद्धाओं को याद करता है, जिन्होंने औपनिवेशिक शासन के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी और अपने प्राणों की आहुति दी. हम सभी देश के लिए उनकी निःस्वार्थ सेवा और बलिदान को सलाम करते हैं.

समूचा भारत इस वर्ष आजादी के 75वें वर्ष के उपलक्ष्य में ‘अमृत महोत्सव’ मना रहा है और यह आयोजन उन असंख्य जनजातीय समुदाय के लोगों एवं नायकों के योगदान को याद किये बिना पूरा नहीं होगा, जिन्होंने मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिये. वर्ष 1857 के संग्राम से बहुत पहले जनजातीय समुदाय ने औपनिवेशिक शक्ति के खिलाफ विद्रोह किया. चुआर और हलबा समुदाय के लोग 1770 के दशक के शुरू में उठ खड़े हुए.

स्वतंत्रता हासिल करने तक जनजातीय समुदाय अंग्रेजों से लड़ते रहे. चाहे पूर्वी क्षेत्र में संताल, कोल, हो, पहाड़िया, मुंडा, उरांव, चेरो, लेपचा, भूटिया, भुइयां जनजाति के लोग हों या पूर्वोत्तर क्षेत्र में खासी, नागा, अहोम, मेमारिया, अबोर, न्याशी, जयंतिया, गारो, मिजो, सिंघपो, कुकी और लुशाई आदि जनजाति के लोग हों या दक्षिण में पद्यगार, कुरिच्य, बेड़ा, गोंड और महान अंडमानी जनजाति के लोग हों या मध्य भारत में हलबा, कोल, मुरिया, कोई जनजाति के लोग हों या पश्चिम में डांग भील, मैर, नाइका, कोली, मीना, दुबला जनजाति के लोग हों, इन सबने अपने दुस्साहसी हमलों और निर्भीक लड़ाइयों से ब्रिटिश राज को असमंजस में डाले रखा.

आदिवासी माताओं और बहनों ने भी दिलेरी और साहस भरे आंदोलनों का नेतृत्व किया. रानी गैडिनल्यू, फूलो एवं झानो मुर्मू, हेलेन लेप्चा एवं पुतली माया तमांग के योगदान आनेवाली पीढ़ियों को प्रेरित करेंगे. इस वर्ष 15 नवंबर से 22 नवंबर तक होनेवाले विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा जनजातीय समुदाय के महान स्वतंत्रता सेनानियों की याद में कई तरह के आयोजन हो रहे हैं. यह उन बहादुर सेनानियों को याद करने और खुद को राष्ट्र के लिए समर्पित करने का एक अवसर है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें