गांधी के अपमान का अधिकार नहीं
गांधी के सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों ने न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया के लोगों को अपने अधिकारों और अपनी मुक्ति के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी.
हमारे देश में महात्मा गांधी को गाली देने का चलन-सा बन गया है. आपको जल्द सस्ते प्रचार की भूख हो, तो उन्हें किसी मंच से अपमानित कर दें, उन पर बकवास लेख या किताब लिख कर सुर्खियां बटोर लें, पर गांधी का व्यक्तित्व इतना बड़ा है कि उस पर खरोंच भी नहीं आनी है. हाल में गांधी को अपशब्द कहनेवाले धर्मगुरु कालीचरण महाराज को मध्य प्रदेश से गिरफ्तार किया गया.
पिछले दिनों छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आयोजित धर्म संसद में उसने गांधी के बारे में अनाप-शनाप कहा था. कालीचरण ने गांधी जी की हत्या को जायज ठहराते हुए नाथूराम गोडसे को खुले मंच नमस्कार भी किया था. हालांकि इसी आयोजन में संत रामसुंदर दास ने कालीचरण के वक्तव्य का विरोध करते हुए कहा था कि जिस मंच से बापू का अपमान होगा, वह धर्म का मंच नहीं होगा. इससे नाराज होकर उन्होंने धर्म संसद से खुद को अलग कर लिया था, लेकिन कालीचरण रुके नहीं हैं. उन्होंने एक बयान में कहा है कि उन्हें कोई पश्चाताप नहीं है. उन्हें गांधी से नफरत है और उन्होंने उनके हत्यारे गोडसे को महात्मा बताया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महात्मा गांधी पर अपार श्रद्धा है तथा उन्होंने हमेशा गांधीवादी मूल्यों को अपनाने और उन्हें जीवन का हिस्सा बनाने पर जोर दिया है. वे अक्सर अपने भाषणों में महात्मा गांधी की शिक्षाओं का उल्लेख करते हैं. विदेश यात्राओं में भी वे महात्मा गांधी को श्रद्धा सुमन अर्पित करने से नहीं चूकते हैं. कुछ समय पूर्व जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान उन्होंने इटली में गांधी प्रतिमा को पुष्पांजलि दी थी.
फरवरी, 2019 में प्रधानमंत्री मोदी ने दक्षिण कोरिया के एक विश्वविद्यालय में गांधी प्रतिमा का अनावरण करते हुए कहा था कि बापू के विचारों एवं आदर्शों में आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन के खतरे को दूर करने में हमारी मदद करने की शक्ति है. उन्होंने अमेरिका के वाशिंगटन में महात्मा गांधी को पुष्पांजलि अर्पित की थी.
ऑस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन में उन्होंने महात्मा गांधी की एक प्रतिमा का अनावरण किया था और कहा था कि दो अक्टूबर, 1869 को पोरबंदर में एक व्यक्ति पैदा नहीं हुआ था, बल्कि एक युग का जन्म हुआ था. नवंबर, 2015 में ब्रिटेन दौरे में प्रधानमंत्री मोदी ने ब्रिटिश संसद के बाहर महात्मा गांधी की प्रतिमा पर श्रद्धांजलि अर्पित की थी.
जुलाई, 2016 में दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने फीनिक्स सेटलमेंट में जाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी थी, जो कभी महात्मा गांधी का निवास स्थान हुआ करता था. प्रधानमंत्री मोदी ने वहां उस रेल मार्ग पर यात्रा भी की थी, जिसमें महात्मा गांधी को रंगभेद के कारण बाहर फेंक दिया गया था. कहने का आशय यह है कि प्रधानमंत्री मोदी किसी भी अवसर पर गांधी को याद करना नहीं भूलते हैं.
सर्वोच्च न्यायालय ने 2015 में कहा था कि गांधी को अपशब्द नहीं कहे जा सकते हैं और न ही उनके चित्रण के दौरान अश्लील शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता है. एक मराठी कविता में गांधी पर आपत्तिजनक शब्दों के इस्तेमाल पर अदालत ने कहा था कि कलात्मक स्वतंत्रता के नाम पर राष्ट्रपिता को कहे गये अपशब्दों को सही नहीं ठहराया जा सकता है.
उस फैसले में कहा गया था कि ऐतिहासिक महापुरुषों की आलोचना गलत नहीं है, लेकिन इसके लिए आपत्तिजनक या अभद्र भाषा का इस्तेमाल करना गलत है. अगर महात्मा गांधी के बारे में अपशब्द लिखते हैं, तो वह अपराध की श्रेणी में भी आता है. जब आप गांधी जी के बारे में अपशब्द लिखते हैं, तो वहां आपकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार खत्म हो जाता है.
गांधी का जीवन और उनका कार्य विस्तृत है. उनसे असहमतियां हो सकती हैं, लेकिन उनमें इतनी खूबियां हैं कि केवल असहमतियों या कमियों के सहारे उन्हें खारिज कर देने से हम उनकी विरासत को नष्ट कर देंगे. गांधी के आलोचक अक्सर तथ्यों की परवाह नहीं करते हैं. ऐसा लग रहा है कि गांधी के आलोचकों की एक ऐसी पीढ़ी तैयार हो रही है, जिसकी जानकारी का स्रोत व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी है. ऐसे लोग असत्य जानकारियों के आधार पर अपनी धारणा बनाते हैं, जो अब सोशल मीडिया में बड़े पैमाने पर उपलब्ध हैं.
सार्वजनिक जीवन वाले हर शख्स का कठोर मूल्यांकन होता रहा है. महात्मा गांधी भी इससे अछूते नहीं रहे हैं. किसी भी व्यक्ति की सभी मुद्दों पर राय या फैसले सौ फीसदी सही नहीं हो सकते हैं, लेकिन उनकी मंशा को जानना भी जरूरी है. जाति व्यवस्था जैसे मुद्दे हैं, जिस पर गांधी की आलोचना होती रही है, लेकिन इसका आशय यह नहीं है कि आप गांधी को सिरे से ही खारिज कर दें.
माना जाता है कि महात्मा गांधी को समझना आसान भी है और मुश्किल भी. गांधी की बातें बहुत सरल व सहज लगती हैं, पर उनका अनुसरण करना बेहद कठिन होता है. हम सभी जानते हैं कि महात्मा गांधी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख नेता थे. आप उनकी सक्रियता का अंदाज इस बात से लगा सकते हैं कि दो अक्तूबर, 1869 में उनका जन्म हुआ और 30 जनवरी, 1948 को उनकी दुखद हत्या हो गयी. इस दौरान उन्होंने जो लिखा और विचार व्यक्त किये, उसे भारत सरकार ने 100 खंडों में प्रकाशित किया है.
भारी व्यस्तताओं के बावजूद वे हर रोज अनेक लोगों को पत्र लिखते थे और हर पत्र में कोई विचार होता था. गांधी ने अपनी आत्मकथा भी लिखी- सत्य के साथ मेरे प्रयोग. इसके अलावा सत्याग्रह और हिंद स्वराज जैसी पुस्तकें लिखीं. उन्होंने शाकाहार, भोजन और स्वास्थ्य, धर्म, सामाजिक सुधार आदि जीवन के हर प्रश्न पर विस्तार से लिखा. ऐसे भी लोग हैं, जो गांधी को आज अप्रासंगिक मान बैठे हैं.
उनका तर्क है कि गांधी एक विशेष कालखंड की उपज थे, लेकिन जीवन का कोई ऐसा विषय या सामाजिक व्यवस्था का कोई ऐसा प्रश्न नहीं है, जिस पर महात्मा गांधी ने प्रयोग न किये हों और हल निकालने का प्रयास न किया हो.
उनके पास अहिंसा, सत्याग्रह और स्वराज नाम के तीन हथियार थे. सत्याग्रह और अहिंसा के उनके सिद्धांतों ने न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया के लोगों को अपने अधिकारों और अपनी मुक्ति के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी. यही वजह है कि इतिहास का सबसे बड़ा आंदोलन अहिंसा के आधार पर लड़ा गया.
वर्ष 1944 को महात्मा गांधी के जन्मदिवस के अवसर पर जाने-माने वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपने संदेश में कहा था- आने वाली नस्लें शायद मुश्किल से ही विश्वास करेंगी कि हाड़ मांस से बना हुआ कोई ऐसा व्यक्ति भी धरती पर चलता फिरता था. यह वाक्य गांधी को जानने-समझने के लिए काफी है.