गति-शक्ति योजना से खेती-किसानी को मिलेगा बल
गति-शक्ति योजना के तहत राज्य सरकार भी एक लाख करोड़ तक खर्च कर सकती है. यह व्यवस्था खेती और ग्रामीण व्यवस्था के सुधार के लिए बेहतर साबित हो सकती है.
इस बजट में कृषि के संबंध में बहुत ज्यादा बातें नहीं हुई हैं. बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक बात जो बहुत स्पष्टता से कही है, वह यह कि धान और गेहूं की एमएसपी पर 2.37 लाख करोड़ खर्च किये जायेंगे. धान और गेहूं के एमएसपी के आमद में 2.37 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान बहुत बड़ी रकम है. यह बहुत प्रोडक्टिव भी नहीं है. इससे सभी जगह के किसानों को लाभ नहीं मिलनेवाला है.
इसमें कुछ खास जगह के किसानों को ही सही तरीके से लाभ पहुंच पाता है. पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों को. इसलिए यह खर्च बहुत अच्छा नहीं कहा जायेगा, जबकि सरकारी की जो डीसीपी प्रणाली यानी डिसेंट्रलाइज्ड सीरियल प्रोक्योरमेंट सिस्टम है, उसके तहत बिहार जैसे राज्य भी किसानों से खरीद कर सकते हैं और वहां के किसान भी लाभान्वित हो सकते हैं, लेकिन इस प्रणाली से खरीद हमारे यहां बहुत कम है.
डीसीपी प्रणाली के तहत प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के अंतर्गत आपको जितना अनाज आवंटन करना है या आंगनबाड़ी योजना के लिए जितने अनाज का वितरण करना है, उतने की खरीद सरकार अपने राज्य के किसानों से कर सकती है. दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो पाता और इस बार भी यह कमी रह गयी है.
एक और बात, यहां के किसानों की जो बहुत-सी समस्याएं हैं, वो ज्यादातर मजदूरों की समस्याएं हैं. इन राज्यों में जो खेतिहर मजदूर हैं, उनका कौशल विकास ठीक तरीके से नहीं हुआ है, जिससे कि वे मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में जा सकें, अच्छा रोजगार प्राप्त कर सकें. इसके लिए बहुत सारी व्यवस्था की गयी है. कौशल विकास पर काफी ध्यान दिया गया है, जैसे- मैन्युफैक्चरिंग, विशेष कर इंटरमीडिएट मैन्युफैक्चरिंग को काफी बढ़ावा मिला है.
एक प्रावधान जो इस बजट में किया गया है, वह है प्रधानमंत्री गति-शक्ति योजना के तहत राज्य सरकार भी एक लाख करोड़ तक संबंधित खर्च कर सकती है. यह व्यवस्था खेती और ग्रामीण व्यवस्था के सुधार के लिए बेहतर साबित हो सकती है. यह एक अच्छा कदम है. प्रधानमंत्री गति-शक्ति योजना से संबंधित लॉजिस्टिक्स, कम्युनिकेशन गांवों एवं किसानों तक पहुंच सकती है. इस एक लाख करोड़ के बजट को यदि बिहार सरकार भी ठीक से इस्तेमाल करेगी, तो खेती और ग्रामीण व्यवस्था में सुधार दर्ज हाेगा.
डिजिटल और हाइटेक सेवाओं की जहां तक बात है, तो इससे सभी को लाभ होगा. लेकिन दिक्कत है कि अभी तक हमारे सभी गांवों का ठीक से डिजिटलाइजेशन हुआ ही नहीं है. हालांकि सरकार कह रही है कि 2023 तक हर गांव तक फाइबर पहुंचाने की व्यवस्था होगी. यह अच्छी बात है. लेकिन, वर्तमान में डिजिटलाइजेशन और कम्युनिकेशन से जुड़ी सेवाओं का लाभ वहां के लोगों को ज्यादा मिलेगा, जहां फाइबर का नेटवर्क है.
जीरो बजट या प्राकृतिक खेती की बात भी बजट में हुई है. यह वहां के किसानों के लिए बहुत अच्छी बात है, जिन्होंने अपने खेतों में बहुत अधिक खाद व पानी डाला है और उस कारण उनके खेत की हालत बहुत खराब हो चुकी है. उदाहरण के लिए पंजाब के किसानों के लिए यह अच्छा है. बिहार या इस जैसे ही बाढ़ग्रस्त क्षेत्राें की बात करें, तो वहां खेतों में बहुत ज्यादा खाद नहीं डाली जाती है.
वहां प्राकृतिक खेती ही हाेती है. क्योंकि यदि खेतों में खाद डाली जायेगी, तो सब बाढ़ में बह जायेगी. हो सकता है कि दूसरे मौसम में यहां के किसान भी खाद का प्रयोग करते हाें, लेकिन यहां बहुत हद तक प्राकृतिक खेती ही होती है. एक बात और, प्राकृतिक खेती को लेकर जो माना जाता है कि इससे बहुत ज्यादा आमदनी बढ़नेवाली है, ऐसा कम से कम मुझे नहीं लगता है. वो उन जमीनों के लिए अच्छा है जहां किसानों ने पहले से ही बहुत अधिक खाद डाली हुई है.
जहां तक फसल के आकलन के लिए ड्रोन के इस्तेमाल की बात है, तो उससे बीमा वालों को लाभ मिलेगा. जिन्होंने बीमा कराया हुआ है वे इसका इस्तेमाल कर सकते हैं. हो सकता है किसानों को कॉस्ट ऑफ इंश्योरेंस कम देना पड़े. लेकिन, कीटनाशक के छिड़काव के लिए ड्रोन का इस्तेमाल बड़े किसान व बड़ी जाेतवालों के लिए ही फायदेमंद साबित होगा. जो पूर्वांचल के किसान हैं, उनके पास छोटी-छोटी जमीनें हैं, वहां पर ड्रोन का उतना लाभ नहीं होगा.
भूमि रिकॉर्ड के लिए ड्रोन के इस्तेमाल की आज बहुत आवश्यकता है. इसमें भी राज्य सरकार की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है. कुछ राज्य तो इस मामले में बहुत अच्छा काम कर रहे हैं और किया है. लेकिन, बिहार समेत कुछ ऐसे राज्य भी हैं जो भूमि रिकॉर्ड को लेकर अच्छा काम नहीं कर पाये हैं.
ऐसे में ड्रोन के जरिये यह काम बहुत अच्छी तरीके से हो सकता है. क्योंकि यहां जमीन बहुत छोटी जोत के हो गये हैं. बहुत से लोग रोजगार के लिए अपने गांवों से पलायन कर चुके हैं, कई कर रहे हैं, पर उन्हें पता ही नहीं है कि उनकी जमीन की देखभाल कौन करेगा, उन पर ठीक से खेती हो पायेगी या नहीं. ऐसे में यह एक अच्छा कदम है.
ग्रामीण विकास की बात करें, तो प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घरों का निर्माण हुआ है और हो रहा है. सरकार एक अच्छा ध्येय लेकर चल रही है. इस बजट में भी 80 लाख घरों के निर्माण की बात कही गयी है. प्रधानमंत्री आवास योजना का मनरेगा के साथ कन्वर्जेंस होता है. मनरेगा के मजदूर 95 दिन तक पीएम आवास योजना में काम कर सकते हैं. यह एक कल्याणकारी योजना है और बहुत से लोग लाभान्वित भी हुए हैं. अंतिम बात, कृषि और ग्रामीण व्यवस्था के लिहाज से यह बजट अद्भुत नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि कृषि और ग्रामीण क्षेत्र के लिए इस बजट में बहुत कम पहल की गयी है.